धर्मगुरु पोप फ्रांसिस ने हाल ही मे जारी हुए एक बयान में कहा कि दुनिया मे तृतीय विश्‍वयुद्ध शुरु हो गया है। पिछले कुछ म‍हीनो मे यूरोप में हुये आतंकवादी हमलों के बाद उनका यह बयान जारी हुआ था। पूरी दुनिया मे अशांति का माहौल है। जहां एक ओर भारत मे हुए उरी अटैक के बाद भारत द्वारा की गई सर्जिकल स्‍ट्राइक है वहीं नार्थ कोरिया साउथ कोरिया और अमेरिका पर कहर बरपाने का एक भी मौका नहीं छोड़ता है। इराकी सेनाएं इस्‍लामिक स्‍टेट के खिलाफ लड़ रही हैं। सीरिया लीबिया जैसे देशों मे तनाव बड़ता जा रहा है। इन सब को देख कर तो यही कहा जा रहा है कि तीसरा विश्‍व युद्ध शुरु हो गया है।


2- चीन का सागर क्षेत्र मे तनावएशिया मे चीन भी युद्ध की ओर बढ़ रहा है। चीन सागर के उन क्षेत्रों मे अपना अधिकार जमा रहा है जहां अमेरिका का कब्जा है। उन जगहों पर तेल के भंड़ार और ट्रांसपोटेशन पर ताकतें अपना कब्जा जमाना चाहती हैं। चीन एनर्जी सिक्योरिटी मे अमेरिका की खिलाफत कर रहा है। वहीं अमेरिका फिलिपिंस, ताईवान, मलेशिया, वियेतनाम, ब्रुनोई के साथ है। जार्ज डब्लू बुश ने खुद कहा था कि अमेरिकी सेना ने इराक मे हमला कर के तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत कर दी है। बुश ने कहा था कि गल्फ वॉर उनके पिता ने 1990 मे शुरु किया था।4- क्रीमिया का मुद्दा अटका


रशिया और यूक्रेन के बीच अभी भी तनाव बरकरार है। क्योंकि रशिया ने क्रीमिया पर कब्जा कर रखा है। क्रीमिया को छोड़ने के लिए रशिया तैयार नही है। रशियन आर्मी लगातार वहां अपनी मौजूदगी बनाए हुए है। प्रथम विश्व युद्ध से पहले भी दो देशों के बीच एक ही चीज पर कब्जा करने को लेकर जंग छिड़ी थी। विश्व के सभी महाद्वीपों और देशों मे ऐसे लीडर्स प्रभावी हैं जो बहुत ही गुस्सैल माने जाते हैं। उन्हें अपने पड़ोसी पर रहम नहीं आता है। फिर चाहे वो रशियन राष्ट्रपति व्लादमीर पुतिन हो या नार्थ कोरिया का तानाशाह किम जोंग उन हो। 6-  जगह की भूखपहले दो विश्व युद्ध जमीन पर कब्जे को लेकर हुए। अब अपनी सैन्य ताकत के जरिए सेनाएं कब्जा कर रहीं है। रशिया यूक्रेन मे हावी है तो चीन ताईवान और चीनी सागर मे अपनी धाक जमाने के लिए युद्ध के लिए तैयार है। वहीं प्रथम विश्व युद्ध के बाद लीग ऑफ नेशन्स को इस तर्ज पर बनाया गया था कि यह सबसे ज्यादा प्रभावी होगा। सेंकेड वर्ल्ड वॉर के बाद यूनाइटेड नेशन्स की स्थापना की गई। अफ्रीका और मिडिल ईस्ट मे बढ़ रहे तनाव मे यूएन रोक लगाने में नाकाम है। चीन, रशिया और साऊदी अरब के लिए ह्यूमन राइट्स कमीशन कुछ भी करने से अपने हाथ पीछे खींच रहा है। 8- तेल के लिए जंग

प्रथम विश्व युद्ध और द्वतीय विश्व युद्ध दोनों ही ऊर्जा यनी तेल के भंडार के लिए हुए। जिन देशों मे भी युद्ध मे हिस्सा लिया उन्हें ऊर्जा की जरूरत थी। 1990 मे जग गल्फ वॉर शुरु हुआ तब बहुत सारे देशों ने यह साफ कर दिया कि उनकी लड़ाई तेल के लिए है। अमेरिका ने तेल पर कब्जा करने के लिए अपनी सैन्य शक्ति भी झौंक दी। तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत का सबसे बड़ा कारण हैं 2016 मे हथियारों की खरीद फरोख्त। इस साल 100 बिलियन सिर्फ हथियारों की खरीद मे लगा दिए गए। यह पहली बार है जब हथियारों का सौदा इतने बड़े स्तर पर पहुंच गया है। 10- अदृश्य युद्ध या साइबर वॉरतृतीय विश्व युद्ध बिना किसी की जानकारी के लड़ा जा रहा है। जो इंटरनेट की सहायता से हो रहा है। अब देश एक दूसरे पर ऑनलाइन हमला कर रहे हैं। कभी कोई किसी की सैन्य जानकारी चुराता है तो कहीं से सैन्य प्रोग्रामों की सूचनाएं लीक हो रही हैं। डिजिटल वार मे कोई विक्टम नहीं है। सैन्य सूचनाओं को चुरा कर एक बड़े युद्ध क्षेत्र का आगाज हो गया है। म्यूनिख समझौते के बाद यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली और जर्मनी के बीच 1938 में हस्ताक्षर किए गए उनकी परियोजना यूरोप मे नाजियों को लाने की थी। हिटलर और यूरोपीय लोकतंत्रों की तरह वर्तमान लोकतांत्रिक देशों के नेताओं भी जंग के लिए अपनी जमीनें देनों को तैयार बैठे हैं।

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Posted By: Prabha Punj Mishra