'स्लीपिंग सिकनेस' की बीमारी मक्खियों के काटने से होती है और इससे दिमाग सूज जाता है. इसके मरीजों को अक्सर बुखार सिर दर्द ठीक से नींद न आने जैसी शिकायतें होती हैं.


वक्त पर इलाज न मिले तो यह जानलेवा भी साबित हो सकती है. लेकिन वैज्ञानिकों ने अब 'स्लीपिंग' सिकनेस के इलाज की दिशा में कुछ कदम आगे बढ़ाए हैं.मनुष्य के शरीर में संक्रमण से लड़ने के लिए प्रतिरोधक प्रणाली एक तरह का प्रोटीन पैदा करती है. शरीर में मौजूद 'ट्राइपानोसोमा' परजीवी की 'गैम्बीयन' नस्ल इस प्रोटीन को नुकसान पहुँचाती है.बेल्जियन के अनुसंधानकर्ताओं ने आनुवांशिकीय फेरबदल करके अब एक ऐसा प्रोटीन तैयार किया है जिसके बारे में शुरुआती परीक्षणों से पता चला है कि उससे ट्राइपानोसोमा परजीवियों के कई प्रकारों को खत्म किया जा सकता है.इसमें गैम्बियन नस्ल का ट्राइपानोसोमा परजीवी भी है. यह अध्ययन जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है.पश्चिमी और मध्य अफ्रीका में पाई जाने वाली स्लीपिंग सिकनेस की बीमारी के 97 फीसदी मामले गैम्बीयन नस्ल के ट्राइपानोसोमा परजीवियों के वजह से होते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के मुताबिक साल 2012 में स्लीपिंग सिकनेस के 7,197 मामले प्रकाश में आए थे.प्रतिरक्षा प्रणालीयह परजीवी सेटसी मक्खियों की वजह से फैलता है.मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली 'अपोलवन प्रोटीन' का उत्पादन करती है जो इन परजीवियों पर हमला करने की कोशिश करती है.


बेल्जियम के ब्रक्सेलेस यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने अध्ययन में इस बात की ओर इशारा किया है कि गैम्बियन अपोलवन प्रोटीन के खिलाफ तीन हिस्सों वाली प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित कर लेता है.अपोलवन प्रोटीन को सामान्यतया ट्राइपानोसोमा परजीवी ग्रहण कर लेते हैं. दरअसल अपोलवन इन परजीवियों को यह भरोसा दिलाने में कामयाब हो जाता है कि वह उनके लिए फायदेमंद है.इसके बाद यह प्रोटीन आँत की झिल्लियों की दीवारों पर बैठ जाता है जहाँ वह इन परजीवियों को खत्म कर देता है.अध्ययन दल की अगुवाई करने वाले प्रोफेसर एतियन पेज कहते हैं, "गैम्बियन की प्रतिरक्षा प्रणाली के पहले चरण में वह एक प्रोटीन पैदा करता है जो अपोलवन प्रोटीन के विरुद्ध झिल्लियों की दीवारों को सख्त कर लेता है.""गैम्बीयन की प्रतिरक्षा प्रणाली के पहले चरण में वह एक प्रोटीन पैदा करता है जो अपोलवन प्रोटीन के विरुद्ध झिल्लियों की दीवारों को सख्त कर लेता है."-प्रोफेसर एतियन पेजआनुवांशिकीय संरचनाप्रोफेसर पेज के मुताबिक यह एक बाधा की तरह ही है. दूसरे चरण में ट्राइपानोसोमा परजीवी के लिए प्रोटीन अवशोषित करना मुश्किल कर दिया जाता है.

और आखिरकार अगर प्रोटीन इन सभी बाधाओं को पार करने में कामयाब हो जाता है तो गैम्बियन परजीवी के किसी अन्य स्वरूप के बनिस्बत कहीं तेजी से अपोलवन प्रोटीन को पचा लेने में सक्षम होते हैं ताकि झिल्लियाँ उसे न ग्रहण कर सकें.प्रोफेसर पेज कहते हैं, "सबसे अहम यह है कि अपोलवन प्रोटीन अभी भी वहीं मौजूद है. इसे अवशोषित नहीं किया गया है. इसका इस्तेमाल अभी भी उस परजीवी को खत्म करने में कया जा सकता है."इस प्रक्रिया में प्रोफेसर पेज और उनकी टीम को अपोलवन प्रोटीन की आनुवांशिकीय संरचना में फेरबदल करके इसके नए स्वरूप को विकसित करने का रास्ता मिला. यह न केवल गैम्बियन को खत्म करता है बल्कि ट्राइपानोसोम परजीवियों को खत्म करता है.हालांकि प्रोफेसर पेज यह साफ करते हैं कि अनुसंधान अभी शुरुआती चरण में हैं. वह कहते हैं, "कहने की जरूरत नहीं है कि यह उम्मीदें जगाने वाली खोज है."

Posted By: Satyendra Kumar Singh