भोपाल स्लटवाक परेड़ में नही जुटी भीड़. लोगों को आपत्ति है ‘स्लटवाक’ और ‘बेशर्मीमोर्चा’ जैसे नामों से. फेसबुक पर हुए थे 5000 रेजिस्ट्रेशन मगर पहुंचे केवल 50. इंडिया में पहली बार हो रही थी यह परेड़.


कहते हैं कि ‘जैसा देश वैसा भेष’. टोरंटो से शुरू हुए स्लटवाक के इंडिया पहुंचते पहुंचते कई रूप बदले और हर जगह अपनी पहचान बना चुके इस मार्च ने इंडिया आकर अपनी इस पहचान को ही खो दिया. इसका एक नजारा देखने को मिला भोपाल में हुए स्लटमार्च में. इंडिया की पहली स्लटवाक कराने की होड़ के चलते यह पापुलर शो बदल गया फ्लाप शो में.

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पहले 25 जून को दिल्ली में इंडिया की पहली स्लटवाक परेड होनी थी. इसको दिल्ली की एक स्टूडेंट उमंग सबरवाल आर्गनाइज करा रही थीं. बाद में इसे पर्याप्त पब्लिक सपोर्ट न मिलने के चलते पोस्टपोन्ड कर दिया गया. बताया जा रहा था कि परेड़ में लड़कियां कम कपड़े पहन कर रेप विक्टिम्स को रिप्रजेन्ट करेंगी यह जतायेंगी कि 'वे स्लट हैं और वे चाहती है कि उनका रेप हो'. मगर बाद में इंडियन कल्चर को ध्यान में रखकर इसमें कई सारे बदलाव किये गये. स्लटवाक को इंडिया में बेशर्मीमोर्चा कहा गया. साथ ही ड्रेसकोड को भी बदलकर रूटीनक्लादिंग कर दिया गया. यह परेड अब दिल्ली में 31 जुलाई को होनी है.

भोपाल में स्लटवाक आर्गनाइज कराने वाली ला स्टूडेंट राधिका कहती हैं, “दिल्ली स्लटवाक के पोस्टपोन्ड हो जाने और मुम्बई में अगले महीने स्लटवाक शेड्यूल होने पर हमने सोचा कि क्यू न हम भोपाल से इसकी शुरूआत कर दें”. राधिका की पहल ने भोपाल को स्लटवाक आर्गनाइज कराने वाला पहला इंडियन सिटी तो बना दिया मगर यह प्रोटेस्ट लोगों को जुटान में नाकाम रहा. आर्गनाइजर्स की माने तो केवल 60-70 लोगों ने ही पार्टिसिपेट किया और महिलाओं के खिलाफ हो रहे सेक्सुल वाइलेंस पर अपना विरोध जताया.

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इसी साल कनाडा से शुरु हुए इस प्रोटेस्ट की वजह टोरंटो के एक पुलिस अधिकारी का कमेंट बताया जा रहा है जिसमे उन्होने कहा था कि अगर ‘महिलाएँ पीड़ित होने से बचना चाहती हैं तो उन्हें प्रास्टीट्यूट के तरह कपड़े पहनने से बचना चाहिए.’ इसके अगेंस्ट कनाडा, अमेरिका, यूरोप, एशिया और ऑस्ट्रेलिया में प्रोटेस्ट हुए हैं. इनका मोटिव है कि रेप या मालेस्टेशन के डर से आखिर कब तक महिलायें बिना अपने मन मुताबिक कपड़े पहन पाएँ.

Posted By: Divyanshu Bhard