घर-घर पर जाकर अब ज्यादा नहीं लगते स्टिकर और बैनर

साइलेंट तरीके से सोशल मीडिया पर कर रहे हैं अधिक प्रचार

Meerut. हाईटेक जमाने में अब चुनाव प्रचार का तरीका भी बदल गया है. नेताओं में तो चुनाव को लेकर तो खूब उत्साह है, लेकिन पब्लिक साइलेंट मोड में है. हालत यह है कि चुनाव प्रचार के तरीके में भी खासा बदलाव देखने को मिल रहा है. अब गली नुक्कड़, बाजारों में वो चुनावी बहस नहीं दिखाई देती है. चुनाव का समूचा प्रचार मोबाइल फोन सेंट्रिक होता नजर आ रहा है. प्रत्याशी भी मतदाताओं को लुभावने के लिए सोशल मीडिया पर सक्रियता बढ़ा रहे हैं.

चुनाव प्रचार के तरीके बदले

आगामी 11 अप्रैल को पहले चरण के लोकसभा चुनाव का आगाज होना है. ऐसे में प्रत्याशियों व पार्टी ने अपने बदलते जमाने के चलते चुनाव प्रचार के तरीके ही बदल दिए है, अब सोशल मीडिया पर प्रचार करने में ज्यादा फोकस किया जा रहा है, क्योंकि जमाना भी अब सोशल मीडिया का है, जिसके चलते अब फेसबुक, ट्विटर, वाट्सऐप, इंस्ट्राग्राम पर ही प्रचार जोर है.

लगाते थे गेट पर स्टीकर

बीते साल तक जहां पहले प्रत्याशी व उनके सहयोगी घर-घर जाकर वोट मांगते थे. इसके अलावा वे गली नुक्कड़ मोहल्ले में घरों के गेट पर स्टीकर चिपकाकर प्रचार करते थे. वहीं कुछ पार्टी तो बकायदा अपने पार्टी के पहचान चिन्ह के बिल्ले बनवाकर घर-घर बांटते थे. जिनसे प्रचार हुआ करता था. लेकिन अब वो तरीके नाम मात्र को ही अपनाए जा रहे हैं, जिसके चलते चुनाव का शोर गली मोहल्लों में कम ही दिख रहा है. वहीं अब प्रत्याशियों व पार्टी ने अपने नारों, मुद्दों व पार्टी के प्रचार को फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर व इंस्ट्राग्राम पर केंद्रित कर दिया है, बकायदा ऐसे में कार्यकत्र्ताओं द्वारा अपने पर्सनल सेव नम्बर पर मैसेज फारवर्ड कर प्रचार किया जा रहा है.

पिछले साल फिर भी हमारे मोहल्ले में कुछ प्रचार करने वाले आए थे, पोस्टर भी लगाए गए थे, लेकिन इस बार तो अभी तक कोई नहीं आया है.

अंशु्र, बेगमबाग

मेरे मोहल्ले में तो अभी तक एक भी स्टिकर नहीं लगा है, पहले हर घर में कई बार पोस्टर लगाए जाते थे, लेकिन इस बार एक भी पोस्टर नहीं लगा है.

प्रज्ञा, दिल्ली रोड

स्टिकर क्या अभी तक तो एक झंडा तक हमारे ब्लॉक में नहीं लगा है, कई ब्लॉक में है लेकिन बहुत ही कम है.

प्रियंका, शास्त्रीनगर

हमारे यहां तो चुनाव का कुछ पता ही नहीं लग रहा है. शहर में इस बार बाहर ही प्रचार हो रहा है शायद, गलियों में कोई नहीं आ रहा है.

शिवानी , रजबन

Posted By: Lekhchand Singh