रुढ़िवादी विचारों वाले बांग्लादेश में समलैंगिकता हमेशा ही एक ऐसा शब्द रहा है जिसे छिपाया जाता है.


बांग्लादेश में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के बाद से ही समलैंगिक संबंध बनाने पर 10 साल की सज़ा का प्रावधान है. बांग्लादेश में व्यवस्थित तरीके से समलैंगिकों के ख़िलाफ़ मुकदमे चलाए जाने के मामले देखने को नहीं मिलते लेकिन इस मुद्दे पर समाज में खुलकर बात नहीं होती.लेकिन मुस्लिम बहुल इस देश में अब युवा समलैंगिक एक दूसरे से संपर्क कर रहे हैं, सोशल मीडिया पर बातचीत कर रहे हैं और धीरे-धीरे ये लोग अपनी पहचान के लिए अभियान चला रहे हैं.इस मुद्दे पर अधिक जानकारी के लिए बीबीसी की बांग्ला सेवा की फरहाना परवीन ने ऐसे ही कुछ समलैंगिक युवाओं से बात की.अस्वीकार्यसुमोन और पलाश राजधानी ढाका के पास एक बाज़ार में किराये के अपार्टमेंट में रहते हैं. वे चार साल पहले मिले और उन्होंने साथ रहने का फ़ैसला कर लिया.


सुमोन, जो कि उनका वास्तविक नाम नहीं है, कहते हैं, ''पलाश से मिलने से पहले मेरा एक और लड़के के साथ रिश्ता था. लेकिन समाज से छुपाकर किसी एक रिश्ते में रहना बहुत मुश्किल होता है.''एक रेडियो स्टेशन समलैंगिकों के लिए

एक और समलैंगिक आरिफ़ ने बीबीसी के साथ अपने अनुभवों को साझा किया. वो समुद्र किनारे बसे चिटगांव से हैं लेकिन ढाका में रहते हैं. उनके मुताबिक जब वो स्कूल में थे तब उहोंने खुद में परिवर्तन महसूस करना शुरू कर दिया था.अब जबकि बांग्लादेश में पुरुष समलैंगिक अपनी जिंदगी के बारे में बात करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं, वहां कई महिला समलैंगिक ऐसा नहीं कर पा रही हैं.बीबीसी संवाददाता ने ऐसी ही कुछ महिला समलैंगिकों से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने बात करने से मना कर दिया.जब कि दूसरी तरफ बांग्लादेश में पुरुष समलैंगिक खुद को संगठित कर रहे हैं. लगभग 10 साल पहले पुरूष समलैंगिकों के एक ग्रुप ने 'बॉयज़ ऑफ बंग्लादेश' नाम से एक वेबसाइट बनाई."हमारा उद्देश्य समलैंगिकों का विरोध करने वाले कानूनों को निरस्त करने के लिए सरकार को राज़ी करना और समलैंगिको को बाकी लोगों की तरह ही समान अधिकार दिलाना है."-तनवीर आलम, प्रवक्ता, 'बॉयज़ ऑफ बांग्लादेश'वेबसाइट के प्रवक्ता तनवीर आलम कहते हैं कि इस संगठन ने समलैंगिकों को एक दूसरे से जुड़ने और बांग्लादेश में उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाने में सहायता की है.संविधान में समान अधिकार

तनवीर कहते हैं, ''साल 2005 में हमने एक मीटिंग बुलाई थी, जिसने बाद में वार्षिक समारोह का रूप ले लिया और ज़्यादा से ज्यादा समलैंगिकों ने उसमें भाग लेना शुरू कर दिया.''आलम के मुताबिक,''हमारा उद्देश्य समलैंगिकों का विरोध करने वाले कानूनों को निरस्त करने के लिए सरकार को राज़ी करना और समलैंगिकों को बाकी लोगों की तरह ही समान अधिकार दिलाना था.''वो कहते हैं, ''सबसे पहले हम अपने अस्तित्व की पहचान चाहते हैं. सबसे बढ़कर, एक इंसान को इंसान की तरह ही देखा जाना चाहिए न कि उनके यौन उन्मुखीकरण के आधार पर.''तनवीर आलम के फ़ेसबुक पर हजारों फॉलोअर हैं. वे नियमित रूप से इवेंट आयोजित करते हैं.वहीं बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट की वकील सनाया अंसारी समलैंगिकों पर बने कानून पर कहती हैं, ''देश के संविधान में लिंग, भेद, जाति, धर्म के आधार पर सबको समान अधिकार दिए गए हैं. लेकिन दंड संहिता में ऐसा नहीं है.''पहचान के लिए संघर्षअंसारी के अनुसार, ''बांग्लादेश की दंड संहिता में समलैंगिकता को अप्राकृतिक और अपराध बताया गया है. किसी महिला या पुरुष के समान सेक्स के व्यक्ति के साथ संबंध बनाने को इसमें प्रकृति के विरुद्ध बताया गया है. इस अपराध के लिए दंड संहिता में 10 साल की सज़ा का प्रावधान है.''
इस समय बांग्लादेश में बड़ी संख्या में गैर सरकारी संस्थाएं समलैंगिकों के लिए काम कर रही हैं. जिनमें विशेष तौर पर स्वास्थ्य मुद्दे और एचआईवी से बचाव शामिल है.लोगों के इस मुद्दे पर चुप रहने के कारण बांग्लादेश में पुरुष समलैंगिकता का अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल है. सुमोन और पलाश जैसे युवाओं ने खुद को लोगों के सामने पेश करने का तरीका खोज लिया है.लेकिन अब भी बड़ी संख्या में समलैंगिकों के लिए अपनी पहचान के साथ समाज में रहना बहुत मुश्किल है.

Posted By: Subhesh Sharma