Ranchi : न तो वे शाहजहां थे और न उनकी बेगम मुमताज. लेकिन उनके ख्यालों में प्रेम का प्रतीक एक ताजमहल तो तैरता ही था जो वे अपनी बेगम के लिए बनवाना चाहते थे. जब उनकी यह तमन्ना जमीन पर उतरी तो रांची की धरती ने वो आलीशान इमारत देखी जो अपनी स्कॉटिश कैसल स्टायल और खूबसूरती के लिए तब की रांची में चर्चा का विषय बन गई. ये और बात थी कि इमाम साहब का ताजमहल संगमरमर से न बनकर लाल ईंटों और सुर्खी चूने से बना था.

लेकिन यह कैसल की खूबसूरती थी, जिसने लोगों को इसका मुरीद बन दिया था। लोग तो यहां तक कहते थे कि इमाम साहब ने विला नहीं, बल्कि लाल किला बनवाया है और रांची क्या इस जोड़ की कोई दूसरी इमारत पूरे बिहार में नहीं है। बिहार इसलिए, क्योंकि जब यह इमारत बनी थी तो झारखंड अविभाजित बिहार का हिस्सा था। 100 साल से भी ज्यादा समय से वक्त के थपेड़े सहती इस इमारत की खूबसूरती आज भी बरकरार है।

प्रेम की गवाह है कोठी
जानकार बताते हैं कि इमाम कोठी प्यार के रंगों में रंगी कोठी है। कोठी में  और इसे ब्रिटिश हुकूमत के पहले बिहारी बैरिस्टर और हैदराबाद डेक्कन के प्राइम मिनिस्टर सर सैयद अली इमाम ने अपनी बेगम अनीस फातिमा के लिए बनवाया था। अनीस बेगम सर सैयद अली इमाम की तीसरी बेगम थी और उन्हीं के लिए उन्होंने रांची में यह इमारत बनवाई थी। उनकी चाहत तो यह थी कि मरने के बाद उनकी और उनकी बेगम की कब्र साथ रहे, जिससे वे मरकर भी जुदा न हों। लेकिन उनकी यह चाहत पूरी न हो सकी।

अनीस कैसल है इमारत का नाम
सर अली इमाम के पोते बुलु इमाम कहते हैं कि अली इमाम और अनीस फातिमा की प्रेम कहानी एक जिंदादिल वाइफ हसबैंड की प्रेम कहानी है। अनीस बेगम उनके मदर के भाई की बेटी थी और रिश्ते में वह उनकी कजन थी। उनकी सेकेंड वाइफ का नाम मरियम था और मरियम के इंतकाल के बाद उन्होंने अनीस करीम से शादी की थी। संभवत: वह अनीस से सबसे ज्यादा प्यार करते थे, इसलिए उन्होंने इस विला का नाम अनीस विला रखा। इसे उन्होंने स्कॉटलैंड के स्कैंडेनेवियन आर्किटेक्ट स्टाइल में बनवाया था और इसे बनने में 20 साल लगे थे। इसका निर्माण सन 1913 में शुरू हुआ था और 1932 में कंप्लीट हुआ। उस समय इसे बनाने में 20-30 लाख रुपए लगे होंगे, पर आज यह बिल्डिंग और इसकी जमीन करीब सौ करोड़ की होगी। यह अनीस कैसल 21 एकड़ जमीन में था और यहां 500 लीची और आम के पेड़ थे, लेकिन आज यह जगह सिमटकर 3 एकड़ में रह गई है। सर अली इमाम को फाउंडर ऑफ मॉडर्न बिहार कह जाता है, क्योंकि उन्होंने ही 1911 में बंगाल से   अलग करके अलग बिहार को जन्म दिया था।

पार्टियों की शान थीं अनीस  
इंटैक के कन्वेनर और अनीस कैसल के इतिहास पर नजर रखनेवाले श्रीदेव सिंह बताते हैं कि सर सैयद अली इमाम की तीसरी वाइफ बहुत जिंदादिल महिला थी। वब पटना में पार्टियों में शान मानी जाती थी। जिस पार्टी में वह चली जाती थीं, उस पार्टी का मेजबान उनको अपने बीच पाकर धन्य समझता था।

120 कमरे हैं कोठी में
तीन तल्लेवाली इस कोठी में 120 कमरे हैं और इसमें प्रवेश करने के लिए छह दिशाओं से दरवाजे बने हुए हैं। इसमें जिस संगमरमर का यूज हुआ है, वे जर्मनी से मंगाया गया था। मार्बल जर्मनी से इंपोर्ट होकर पहले कोलकाता और फिर कोलकाता से रांची आया। जब तक इमाम साहब जीवित रहे, इस कोठी की शान बनी रही। उनके समय में इस कोठी में अंग्रेज ऑफिसर्स भी आया-जाया करते थे, लेकिन 1932 में उनके इंतकाल के बाद इस कोठी की रौनक घटने लगी। सर अली इमाम चाहते थे कि मरने के बाद उनकी वाइफ की कब्र भी उनके कब्र के करीब बने। उन्होंने अनीस कैसल के पास दो कब्रें बनवाई थीं। एक कब्र में 1932 में अली इमाम के इंतकाल के बाद उन्हें दफना दिया गया, पर दूसरी कब्र आज तक खाली पड़ी है। अंतिम समय में लेडी इमाम पटना आईं और पटना में ही उनका इंतकाल हुआ। इंतकाल के बाद उन्हें पटना में ही दफना दिया गया।

Posted By: Inextlive