देश से ही नहीं विदेशों से भी संत आए हुए हैं. कोई नागा बना हुआ है तो एक युवती ऐसी है जो मल्टीनेशनल कंपनी की जॉब छोड़कर कुंभ में लाइफ के फंडे भी सीख रही है.

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PRAYAGRAJ :कुंभ-2019 में संगम की धरती पर संतों का रेला उमड़ा हुआ है। देश से ही नहीं, विदेशों से भी संत आए हुए हैं। कोई नागा बना हुआ है तो एक युवती ऐसी है जो मल्टीनेशनल कंपनी की जॉब छोड़कर कुंभ में लाइफ के फंडे भी सीख रही है।

1. इस नागा को मां-बाप ने कर दिया दान
खेलने की उम्र थी और पढ़ाई में भी खूब मन लग रहा था। लेकिन सात साल की उम्र में दिशा ही बदल गई। अचानक मां-बाप के दिल में धर्म रक्षा को लेकर बेटे को संन्यासी बनाने का ख्याल आया और बेटे को नागा को दान दे दिया। शिवराज को पता भी नहीं था कि उनके साथ क्या हो रहा है और ऊपर वाले ने उनकी किस्मत में क्या लिख रखा है। उम्र बढ़ती गई और धर्म अध्यात्म में मन रमता गया। एक समय ऐसा आया जब शिवराज शिव बाबा नागा बन गए और सनातन धर्म की रक्षा में लग गए।

अब तो संसार ही मां बाप
शिवराज से शिव नागा बाबा के सफर को अब वह याद नहीं करना चाहते हैं। उनका बस यही कहना है कि प्रभु को जो मंजूर होता है वह इंसान से कराता है। मुझे सनातन धर्म की रक्षा के लिए नागा बनाना था बना दिया। अब तो पूरा संसार ही अपना परिवार और सनातन धर्म प्राण से बढ़कर है। वह अपने घर-परिवार और गांव जिला का नाम बताने के बजाए बस इतना कहते हैं कि संन्यासी की जात और घर नहीं पूछा जाता है। शिव का सेवक हूं और पूरा संसार अपना घर। बाबा जहां गए वहीं ठिकाना बन जाता है।

2. नहीं भाया ट्रम्प का देश, धर लिया शिव का भेष
गले में रुद्राक्ष की माला और भभूत में लिपटी काया जॉन और जिनी की पहचान बन गई है। अब तो तन तपस्या की भट्टी में जलता है और मन शिव की भक्ति में लीन रहता है। योग और साधना के सहारे मोक्ष की तलाश कर रहे अमेरिकन भाई-बहन शिव-पार्वती बन गए हैं। फास्ट लाइफ स्टाइल से निकलकर नागा बनने का सफर शांति की तलाश में शुरू हुआ जो आज सफल हो रहा है। आस्था के महाकुंभ में डुबकी लगाने आए शिव पार्वती के आगे हर कोई शीश झुकाकर मनचाहा वर मांग रहा है।

20 साल पहले आए थे इंडिया
जॉन और जिनी सगे भाई बहन हैं। 20 साल पहले वह अमेरिका से इंडिया घूमने आए थे। भारत का सनातन धर्म और यहां की संस्कृति दोनों को बहुत भाई। शांति के लिए उन्हें इससे बेहतर मार्ग कोई नहीं दिख। फिर क्या था, वह इसी धर्म के हो गए। भटकते हुए पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी पहुंचे और यहां दोनों ने नागा संन्यासी की दीक्षा लेकर नया जीवन शुरु कर दिया। दोनों के जीवन का उद्देश्य अब मोक्ष ही है।

80 तरह का आसान करते हैं शिव
नागा शिव 80 तरह का आसन करते हैं। कुंभ में उनका आसन ही आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। धूनी के पास बैठकर साधना करते-करते जब मन आनंदित होता है तो आसन लगा देते हैं। घंटों सिर के बल खड़े रहने के साथ वह कई जटिल आसनों से लोगों के लिए आस्था का केंद्र बन जाते हैं।

3. एमएनसी की जॉब छोड़ कर रहीं संतों की सेवा

ऐसी है प्रोफाइल

स्निग्धा अग्रवाल, कानपुर

पढ़ाई: क्राइस्ट यूनिवर्सिटी से बीबीएम (बैचलर ऑफ मैनेजमेंट)

जॉब: कंपनी अनर्स एंड यंग ऑडिटर बेंगलुरू (छह महीने पहले छोड़ दी)

पिता: नवीन अग्रवाल, डिस्पोजल कंपनी के ओनर

भाई: अंकित अग्रवाल, सॉफ्टवेयर डेवलपर, शिएटल, यूएस

मल्टीनेशनल ऑडिट कंपनी में अच्छी जॉब छोड़कर आई कानपुर की स्निग्धा अग्रवाल मन संतों की सेवा में रम गया है। पिता नवीन अग्रवाल से बात तो होती है, लेकिन जब वह वापस आने को कहते है तो स्निग्धा उन्हें मना कर देती हैं। उनका बस एक ही जवाब रहता है, वापस अब कुंभ मेला खत्म करने के बाद ही आएंगी। स्निग्धा बताती हैं कि सनातन धर्म की गूढ़ जानकारियां हासिल करने का उनके पास यह सुनहरा मौका है।

ऐसे आया बदलाव
स्निग्धा के जीवन में आया बदलाव काफी महत्वपूर्ण है। जब वह बंगलुरू से जॉब छोड़कर घर पहुंची थीं, उसी दौरान पिता ने यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ के दौरान स्निग्धा को महामंडलेश्वर प्रखर जी महाराज के सान्निध्य में आने का मौका मिला। इसके बाद कई बार मुलाकात हुई। इसी बीच जब कुंभ के आयोजन की जानकारी हुई तो महामंडलेश्वर प्रखर जी महाराज से भी चर्चा हुई। इसके बाद उन्होंने प्रयागराज आने का डिसीजन लिया। स्निग्धा बताती हैं कि उनका फ्चूयर प्लान था कि वह अपने रेस्टोरेंट की चेन शुरू करें। इसमें इनवेस्ट करने के लिए उनके फादर भी तैयार थे। लेकिन जब कुंभ में आने का मौका मिला तो फ्यूचर प्लान को होल्ड कर दिया।

 

 

Posted By: Inextlive