यह तो हम सभी जानते हैं कि जब दो सत्ताएं आध्यात्मिक सत्ता जिसका प्रतिनिधित्व आत्मा करती है और भौतिक सत्ता जिसका प्रतिनिधित्व शरीर करता है मिल जाती हैं तो मानव बनता है।

अनेक समस्याओं से जूझता हुआ आज का मनुष्य जब किसी आध्यात्मिकता प्रिय व्यक्ति से यह सुनता है कि सभी समस्याओं का हल जीवन में आध्यात्मिक खुशबू भरने से हो सकता है तो वह प्रश्न कर उठता है कि आध्यात्मिकता ही क्यों? क्या मानव और मानव का बौद्धिक ज्ञान इन समस्याओं को हल करने में पूर्णत: असमर्थ है? इस प्रश्न के उत्तर में हमें यह विश्लेषण करना होगा कि मानव कौन है? मानव के अंदर कौन-कौन सी शक्तियां कार्यरत हैं?

यह तो हम सभी जानते हैं कि जब दो सत्ताएं, आध्यात्मिक सत्ता जिसका प्रतिनिधित्व आत्मा करती है और भौतिक सत्ता जिसका प्रतिनिधित्व शरीर करता है, मिल जाती हैं तो मानव बनता है। अब प्रश्न उठता है कि यह आध्यात्मिकता क्या है? कैसे मिलती है? आध्यात्मिकता शब्द लोगों के मन में बड़ी जिज्ञासा और रहस्य की भावना उत्पन्न करता है क्योंकि धर्म की भेंट में आध्यात्मिकता की कोई एकल या व्यापक रूप से स्वीकृत परिभाषा उपलब्ध नहीं है जिसका लोग अनुसरण करें। सरल भाषा में परिभाषित करना हो तो आध्यात्मिकता माने आत्मा और परमात्मा का संबंध जुटना ताकि उसमें शक्तियों और गुणों का प्रवाह हो सके।

अब यह सुनकर कई लोगों के मन में यह प्रश्न उठेगा कि प्यार, शांति, आनंद मनुष्यों से भी तो मिल सकते हैं, इसके लिए परमात्मा ही क्यों आवश्यकता है? इसमें कोई संदेह नहीं कि मनुष्य प्यार, स्नेह देने में समर्थ है परंतु यह प्राप्ति अल्पकाल के लिए होती है और यथाशक्ति होती है, क्योंकि कोई भी मनुष्य संपूर्ण सुखी, संपूर्ण आनंद और गुण स्वरूप नहीं है। जब वह स्वयं ही संपूर्ण नहीं तो दूसरों को क्या बनाएगा। जैसे सूखी नहर का संबंध आपने किसी छोटी सी नदी से जोड़ दिया तो उसमें पानी तो अवश्य आ जाएगा पर ज्योंही उसका साधन खत्म होगा, उसकी भी समाप्ति हो जाएगी। परंतु यदि उसका संबंध सागर से जोड़ दिया जाए तो वह कभी भी सूखेगी नहीं। ठीक इसी प्रकार आत्मा को भी सही रूप में लाने के लिए उसको अविनाशी गुणों के भंडार परमात्मा से जोड़ना होगा और जब वह अपने में पूर्ण आध्यात्मिकता भर लेगी और शरीर को साधन मानकर इसे चलाएगी तो जीवन जीने की क्रिया सही अर्थों में शुरू हो जाएगी।

स्मरण रहे! आध्यात्मिकता के अभाव में प्रेम, सुख, शांति, आनंद से रहित जीवन सारहीन हो जाता है। अत: सुखी व शांतिमय जीवन के लिए आध्यात्मिकता को जोड़ना अत्यंत आवश्यक है। अमूमन लोगों की यह मान्यता होती है कि घर-बार छोड़े बिना आत्मज्ञान प्राप्त करना संभव नहीं है परंतु आध्यात्मिक तत्वज्ञान के अनुसार मन की शांति या आत्मबोध की प्राप्ति के लिए घर-बार छोड़कर कहीं दूर जंगल में जाने की आवश्यकता ही नहीं है,

बल्कि अपने ही घर-संसार में रहते हुए अपनी समस्त मानसिक कमजोरियों का त्याग कर स्वयं को आंतरिक स्तर पर स्थिर करके भीतर से जो आदेश मिले उसका पालन करके हम अपनी आत्मा को प्रबुद्ध कर सकते हैं।

आध्यात्मवाद की चर्चा

समाज के अंदर आज आध्यात्मवाद की चर्चा तो बहुत बड़े पैमाने पर होती है, परंतु उसकी वास्तविकता का लोप हो रहा है, यह भी हमें मानना होगा। हमें यह किंचित भी भूलना नहीं चाहिए कि हमारा व्यक्तिगत और सामूहिक कल्याण सच्चे आध्यात्मवाद पर ही निर्भर है। अत: हमें सच्चे आध्यात्मवाद की तलाश करनी चाहिए और उसे ही अपनाना चाहिए।

— राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंजजी

आत्मिक उलझन को सुलझाना ही है ध्यान, तो जानें समाधि क्या है?

'आत्मा' है हमारे जीवन का 'ऑपरेटर' और इसे समझना ही है 'आत्म योग'

Posted By: Kartikeya Tiwari