-आधी दुनिया के मौसम को रूपांतरित करता है वातावरण का शक्तिशाली फिनोमिना

मोदीपुरम: मौसम में हो रहे अचानक बदलावों को लेकर मौसम वैज्ञानिक भी हतप्रभ है। प्रशांत महासागर के पेरू और इक्वाडोर देशों के रीजन में पनपने वाले अल नीनो इफेक्ट को भारत के विभन्न क्षेत्रों विशेष रूप से उत्तरी भागों में हो रहे परिवर्तन के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है।

कृषि पर पड़ने वाले प्रभावों को आधार मान कर मौसम पर पैनी नजर रखने वाले वैज्ञानिकों का कहना है वर्तमान में यह इफेक्ट अपनी तीव्रता का साठ प्रतिशत सक्रिय है। जिसके चलते मौसम चक्र रूपांतरित हो रहा है।

क्या है अल नीनो

अल नीनो एक स्पेनिश शब्द है। इसका अर्थ होता है ब्वाय चाइल्ड। इस शब्द का प्रयोग ईसा मसीह के जन्म के परिप्रेक्ष्य में किया गया था। उनके जन्म के समय भी अचानक मौसम में बदलाव आ गया था। बाद में मौसम वैज्ञानिकों ने आधी दुनिया के मौसम को नियंत्रित करने वाले अति शक्तिशाली प्रभाव की खोज की जिसे बाद में इल नीनो के रूप में जाना गया। यह प्रशांत सागर के पेरू और इक्वाडोर रीजन में समुद्र की सतह का तापमान बढ़ने के चलते उत्पन्न होता है। भारत में इसका प्रभाव हर तीसरे या चौथे साल देखने को मिलता है। समय के साथ इसके तीव्रता बदलती जाती है।

भारत में सितंबर 2010 से सक्रिय

आईआईएफएसआर के मौसम कृषि वैज्ञानिक डा। एम शमीम ने बताया कि इसकी सक्रियता से मौसम में जबरदस्त रूपांतरण (अल्ट्रेशन) होते हैं। वर्तमान में अल नीनो सितंबर 2014 से सक्रिय है। इससे पहले 2002 और 2009 से 2010 के बीच सक्रिय था। इन दोनो सालों में सूखा पड़ा था। वर्ष 2014 से भारत में सक्रिय अल नीनो की तीव्रता पहले 70 प्रतिशत थी और अब साठ प्रतिशत है। विशेषज्ञों के अनुसार मौसम को नियंत्रित करने शक्तिशाली फिनोमिना के चलते इस बार ठंड का सीजन लंबा खिंचा है और अप्रैल और मई माह में मूसलाधार बारिश देखने को मिल रही है। यह वर्षा, हवा और हवा को जबरदस्त रूप से प्रभावित करता है। इसकी अति सक्रियता के चलते मानसून के सीजन में बारिश नहीं होती और सूखे की स्थिति आ जाती है। डा। एमएम शमीम ने बताया कि वर्तमान में अल नीनो की सक्रियता साठ प्रतिशत है। जुलाई से आरंभ होने वाले मानसून सीजन तक इसकी सक्रियता तीस प्रतिशत रह जाने के आसार हैं। जिससे मानसून सीजन के प्रभावित होने के आसार नहीं हैं।

Posted By: Inextlive