ऐसे प्रोडक्ट्स को दुनिया के सामने बेचना जिन्हें अभी भी हमारी इंडियन सोसाइटी में टैबू माना जाता है रिचा कर के लिए आसान नहीं था। लेकिन उन्होंने दुनिया की न सुनकर सिर्फ अपने दिल की बात सुनी और उसी का नतीजा है कि आज वो सक्सेसफुल हैं और इंडिया का पहला ऑनलाइन लॉन्जरी सेलिंग पोर्टल जिवामी डॉट कॉम रन कर रही हैं। इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रिचा ने बिजनेस की बारीकियां सीखीं और चल पड़ीं कुछ नया करने। कैसे आया उन्हें ये यूनीक आइडिया और कैसे इसे एग्जीक्यूट करके आज वो इस मुकाम पर पहुंचीं आइए जानते हैं...


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KANPUR : इंडिया में लॉन्जरी के बारे में बात करना ही अपने आप में शर्म की बात मानी जाती है, वहां सिर्फ लॉन्जरी पर बेस्ड एक फुल-फ्लेज्ड वेबसाइट को लॉन्च करना बेहद चैलेंजिंग काम था। जब रिचा ने इस आइडिया को अपने घर में और फ्रेंड्स के साथ डिसकस किया तो इसका अपोज होना जाहिर था। इसलिए नहीं, क्योंकि इसमें कोई कमी थी, बल्कि इसलिए क्योंकि इससे रिचा के परिवार की बदनामी हो सकती थी। जी हां, सुनने में थोड़ा हैरानी भरा लग सकता है पर सच यही है कि जब उन्होंने इस बारे में अपने घर में बताया तो उनकी मां ने कहा कि अगर वो लॉन्जरी बेचेंगी तो वो अपनी फ्रेंड्स को क्या बताएंगी कि उनकी बेटी यही काम करती हैं। क्या सोचेंगी वो। लेकिन रिचा को ये बातें निराश नहीं कर पाईं, क्योंकि उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें क्या करना है। इंटरेस्टिंग बात ये है कि उनके पिता को तो ये बात समझ भी नहीं आया कि वो कौन सा काम करना चाहती हैं।साधारण रिचा पर असाधारण सोच

रिचा जमशेदपुर के साधारण परिवार की हैं। उन्होंने बिट्स पिलानी से बीटेक करने के बाद एक आईटी कंपनी में काम करना शुरू कर दिया। फिर उन्होंने एमबीए भी किया। सैप और स्पेंसर्स जैसी कंपनीज में काम करके उन्होंने रीटेल बिजनेस में एक्सपीरियंस गेन किया। इसी दौरान उन्हें एक लॉन्जरी कंपनी के साथ काम करने का मौका मिला। तभी रिसर्च के दौरान उन्होंने रियलाइज किया कि लॉन्जरी की शॉपिंग करना इंडियन विमेन के लिए कितनी टेढ़ी खीर है। न तो उन्हें सही मेजरमेंट की प्रॉपर इंफॉर्मेशन होती है और न ही कंफर्टेबली वो उसे खरीद सकती हैं। बस यहीं से उन्हें आइडिया आया इस प्रॉब्लम को इंटरेस्टिंग तरीके से सॉल्व करने का। रिचा कहती हैं कि ज्यादातर महिलाओं को लॉन्जरी के बारे में सही इंफॉर्मेशन न होने पर वो गलत साइजेस यूज करती हैं। लेकिन उनकी वेबसाइट पर महिलाओं की लॉन्जरी से रिलेटेड हर न केवल हर प्रॉब्लम का सॉल्यूशन है, बल्कि उन्हें उनकी पसंद की वैराइटी भी मिल जाती है। वो बिना हिचकिचाहट के अपने लिए सही लांजरी परचेज कर सकती हैं।यूं शुरू हुआ जिवामी

जिवामी नाम एक हीब्रू वर्ड से लिया गया है। 'जीवा' यानी चमक और 'मी' यानि मैं, पूरा मतलब कि मैं चमकती रहूं। रिचा ने जिवामी की शुरुआत कपिल कारेकर के साथ मिलकर की। कपिल को इनमोबी, ईएसपीएन और याहू जैसी कंपनियों में काम करने का 10 साल से भी ज्यादा का एक्सपीरियंस था। इनके साथ मिलकर रिचा ने अपने काम की शुरुआत की और आज वो अपने स्टार्टअप को बखूबी रन कर रही हैं।जगह ढूंढऩे में हुई प्रॉब्लमलोगों को जब उनके इस बिजनेस के बारे में पता चला तो वो इस पर हंसते थे। शुरुआती दौर में जब भी वह कहीं किराए पर मकान लेने जातीं तो मकान मालिक के बिजनेस के बारे में पूछने पर वो उससे इतना ही कहती थीं कि वो ऑनलाइन कपड़े बेचती हैं।
जिवामे में  5 हजार से भी ज्यादा स्टाइल्स, लगभग 50 ब्रांड  और 100 साइज अवेलेबल हैं। कंपनी ट्राई एट होम, फिट कंसल्टेंट और बेंगलुरु में फिटिंग लाउंज जैसी फेसिलिटीज भी देती है। आज उनकी कंपनी हर मिनट में एक प्रोडक्ट बेच रही है। रिचा ने जिवामी की शुरुआत 35 लाख रुपये में की जो उन्होंने दोस्तों और परिवार वालों से जुटाया था। इसमें उनकी अपनी सेविंग्स भी शामिल थी। आज टाटा, यूनीलेजर वेंचर्स, जोडियस टेक्नोलॉजी फंड  जैसे कई वेंचर्स इसमें इनवेस्ट कर चुके हैं। कंपनी का टर्नओवर 270 करोड़ से ऊपर जा चुका है। रिया ने जो प्रोडक्ट चुना वो भले ही टैबू माना जाता हो पर इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि उनके इस आइडिया ने महिलाओं के लिए लांजरी की खरीदारी में बड़ा चेंज लाने का काम किया है। शुरू में मैं जब अपने काम के लिए रेंट पर कोई जगह लेती थी तो मुझे उन्हें बस यही बताना पड़ता था कि मैं ऑनलाइन कपड़े बेच रही हूं, क्या बेचती हूं, ये नहीं।- रिचा करस्टार्टअप आइडियाबच्चे का नामकरण हो गया ईजी एंड इंटरेस्टिंग अपने बच्चे का नाम रखना किसी के लिए आसान काम नहीं होता। कई लोगों से पूछा जाता है, गूगल किया जाता है, तब जाकर एक नाम पक्का किया जाता है। लेकिन 'नेम आर न्यूबॉर्न' ने इस काम को काफी आसान बना दिया है...बच्चे के लिए नाम चुनना बड़ी जद्दोजहद का काम होता है लेकिन रत्नाकर पोडुरी और श्रीकांत पोडुरी ने इस काम को बेहद आसान बना दिया है। नेम आर न्यूबॉर्न नाम की वेबसाइट पर आपको बर्थ स्टार, न्यूमरोलॉजी, पर्टिकुलर एल्फाबेट या क्रॉस कल्चरल नामों की कई वैराइटीज मिल जाएंगी।इंटरेस्टिंग कॉन्सेप्ट
बच्चे के नाम के लिए वेबसाइट पर फीस के साथ एक फॉर्म फिल करना होता है। यह एक कॉन्टेस्ट है जो एक से दो हफ्ते के लिए चलता है। जब आप इसमें अपनी रिक्वॉयरमेंट्स सबमिट कर देते हैं, तब उस पर सजेशंस आने लगते हैं। फैमिली जिस भी नाम को सिलेक्ट करती है, उस नाम को सजेस्ट करने वाला विनर डिक्लेयर होता है और उसे कंपनी की तरफ से प्राइज भी मिलता है।यूं आया आइडियारत्नाकर और श्रीकांत दोनों भाई हैं और यूएस में रहते हैं। दोनों एक बार एक फैमिली बेबी शावर में गए जहां बेबी के नाम के लिए एक कॉन्टेस्ट रखा गया। बस फिर क्या था, दोनों को ये आइडिया इंटरेस्टिंग लगा और इन्होंने इसे स्टार्टअप का रूप दे दिया। वेबसाइट पर होने वाले कॉन्टेस्ट का खर्च 25 से 80 डॉलर्स तक का होता है और कुछ हिस्सा कंपनी भी अपने पास रखती है। यह आइडिया लोगों की एक बड़ी प्रॉब्लम को सॉल्व करता है।QnAमैं जानना चाहता हूं कि मुझे अपनी कंपनी सी कॉरपोरेशन, एस कॉरपोरेशन, एएलसी, पार्टनरशिप या प्रोपराइटरशिप में से किस फॉर्म में शुरू करनी चाहिए?- मयंक भर्तियाजब तक आपको कॉमन स्टॉक और प्रिफर्ड स्टॉक इश्यू न करना हो, आपको इसे एस कॉरपोरेशन के तौर पर शुरू करना चाहिए। अगर ये दोनों स्टॉक इश्यू करने होंगे तो आपको अपनी कंपनी सी कॉरपोरेशन के तौर पर शुरू करनी होगी। वहीं एक एस कॉरपोरेशन को आगे चलकर सी कॉरपोरेशन में आसानी से कन्वर्ट किया जा सकता है। एलएलसी भी पॉपुलर हैं लेकिन वो कुछ ज्यादा ही कॉम्प्लिकेटेड होती हैं। पार्टनरशिप्स और सोल प्रोपराइटरशिप को अवॉयड करना चाहिए क्योंकि इसमें बिजनेस ऑनर्स की पर्सनल लायबिलिटीज भी शामिल होती हैं। पेटेंट फेसिलिटेटर्स जो स्टार्टअप्स को सर्विसेज देते हैं, रीइंबर्समेंट के लिए कैसे क्लेम कर सकते हैं?-मनीष राणापेटेंट ऑफिस जब पेटेंट एप्लिकेशन रिसीव कर ले, तब फेसिलिटेटर को एसआईपीपी यानि स्टार्टअप्स इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी स्कीम के शेड्यूल के मुताबिक फीस क्लेम को सब्मिट कर देना चाहिए। इसमें एक लेटर रिस्पेक्टिव पेटेंट ऑफिस के हेड ऑफिस को लिखना चाहिए जिसमें क्लेम की हुई फीस की डीटेल्स के साथ रेजिस्टर्ड पेटेंट एजेंट का आईडी प्रूफ भी हेाना चाहिए।Quick Guideसमझें अपने टीजी कोस्टार्टअप की रेस में इन दिनों कई यंगस्टर्स हैं। कई लोगों के पास यूनिक आइडियाज भी हैं, लेकिन एक सक्सेसफुल स्टार्टअप के लिए केवल आइडियाज ही काफी नहीं, आपके पास एक अच्छा प्लान भी होना चाहिए और यह प्लान अच्छा तभी बन पाएगा, जब आपने अपने प्रोडक्ट या सर्विस के लिए टार्गेट ग्रुप को अच्छी तरह डिफाइन किया है। मतलब कि आप जिसके लिए यह प्रोडक्ट बनाना चाहते हैं या सर्विस देना चाहते हैं, क्या उन्हें इसकी जरूरत है? इस सवाल का जवाब आपके पास होना चाहिए। बेहतर यह होगा कि एक छोटे से सर्वे के माध्यम से अपने टीजी की पसंद-नापसंद जानने की कोशिश करें और अपने प्रोडक्ट या सर्विस को उसी अनुसार डेवलप करें, तो सक्सेस के चांसेस काफी बढ़ जाएंगे।

Posted By: Satyendra Kumar Singh