RANCHI:झारखंड बनने के साथ ही राजधानी में हज हाउस बनाने की मांग होने लगी थी। लेकिन, कई सालों तक यह मांग नहीं सुनी गई। अंतत: 17 जुलाई 2007 को तत्कालीन सीएम मधु कोड़ा ने कडरू में हज हाउस निर्माण को लेकर शिलान्यास किया। 2008 में निर्माण काम भी शुरू हो गया। लेकिन, आज 2015 में भी हज हाउस बन कर तैयार नहीं है। इस दौरान कई बार बजट भी बढ़ाया गया। लेकिन पांच लाख के शुरुआती बजट वाला यह निर्माण आज 12 करोड़ खर्च होने के बावजूद भी किसी काम का नहीं है। इतना खर्च होने के बावजूद हज हाउस की छत से आज भी पानी टपक रहा है। सीढि़यां हिल रही हैं। खिड़की में आज भी शीशा नहीं लग पाया है। ऐसे में यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि हज हाउस के नाम पर करोड़ों रुपए फूंक कर मंत्री, अध्यक्ष, इंजीनियर और ठेकेदारों ने कबाड़ बना दिया है।

भवन निर्माण विभाग द्वारा अब नए ठेकेदार को काम दिया गया है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से कंपनी द्वारा काम भी बंद कर दिया गया है। ठेकेदार का कहना है कि फेस्टिवल होने के कारण एक तो लेबर काम पर नहीं आ रहे हैं, वहीं राज्य हज कमेटी के अध्यक्ष ने फिलहाल काम करने से रोक दिया है। वो डिजाइन में कुछ चेंज करवाना चाहते हैं, इसलिए काम नहीं हो पा रहा है।

वर्जन

हमलोग तो कई साल से बस यह देख रहे हैं कि हज हाउस बन रहा है। लेकिन कब बनेगा, पता ही नहीं चलता। जब भी हाजी लोग यहां हज के समय आते हैं, उनको बहुत परेशानी होती है। ऐसे में हज हाउस कब बन पाएगा, यह बताना हमलोगों के लिए बताना काफी मुश्किल है।

-मौलाना सनाउल्ला, पेश ईमाम, कडरू मस्जिद

हज हाउस की बदहाली एवं घटिया मेटेरियल यूज करने वाले ठेकेदार और इंजीनियर पर कार्रवाई होनी चाहिए। 2009 में छज्जा गिरने वाले जिम्मेवार इंजीनियर ठेकेदार पर भी कार्रवाई हो। इसको लेकर हमलोग सीएम से भी मिले हैं, अगर जल्दी इस पर निर्णय नहीं लिया जाता है तो हमलोग अनशन पर बैठने की तैयारी में हैं।

मो असगर अली, सचिव, रणधीर वर्मा मेमोरियल फाउंडेशन।

एक तो फेस्टिवल होने के कारण काम पर लेबर नहीं आ रहे हैं, वहीं राज्य हज कमेटी के अध्यक्ष ने भी काम करने से रोक दिया है। वह इसके डिजाइन में कुछ चेंज करवाना चाहते हैं। इसीलिए काम बंद पड़ा हुआ है।

ललीत कुमार, ठेकेदार,

2007 में सीएम मधु कोड़ा ने किया था शिलान्यास

17 जुलाई 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने हज हाउस निर्माण का शिलान्यास किया था। मौके पर उस समय के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी भी मौजूद थे। सीएम ने कहा था कि एक साल के अंदर ही यह भवन बन कर तैयार हो जाएगा और राज्य के लोग जो हज करने के लिए हर साल जाते हैं, उनको यहां ठहरने की सुविधा मिल जाएगी। 2008 में यह निर्माण काम शुरू तो हुआ, लेकिन सात साल बाद भी आज हज हाउस की स्थिति भयावह है।

आवास विभाग से छीना काम, भवन निर्माण विभाग को मिली जिम्मेवारी

2007 में जब इस भवन का शिलान्यास किया गया था, उस समय 4 करोड़ 88 लाख इस भवन को तैयार करने का बजट था। काम आवास विभाग की देखरेख में हो रहा था। लेकिन सात साल में भी यह भवन तैयार नहीं हुआ। 2013 में आवास विभाग से यह काम छीन कर भवन निर्माण विभाग को सौंप दिया गया। इसके बाद भवन निर्माण विभाग ने 2013 में टेंडर निकाला और 6 करोड 82 लाख रुपए की लागत का प्रोजेक्ट बना। पहले छह करोड़ और अब सात करोड़ में हज हाउस बन रहा है।

की जा रही है रि-मॉडलिंग

कुल 12 हजार वर्ग फीट एरिया में बने इस हज हाउस के हर फ्लोर पर चार टॉयलेट और चार बाथरूम बनने थे। सीढ़ी और लिफ्ट भी लगना था, लेकिन भवन निर्माण विभाग ने जो नया डिजाइन बनाया है, उसके अनुसार तीनों फ्लोर में 18:18 टॉयलेट और बाथरूम बन रहा है। सामने के पोर्टिको को भी तोड़कर बनाया जा रहा है। दोनों सीढि़यां भी तोड़ कई नए सिरे से बनाई जा रही हैं।

हज हाउस निर्माण के नाम पर शुरू से ही हो रहा खिलवाड़

हज हाउस के निर्माण में शुरू से ही खिलवाड़ किया जाता रहा है। मंत्री 5 करोड़ रुपए तक की योजना को प्रशासनिक स्वीकृति दे सकता है, इसलिए इस योजना का डीपीआर 4.88 करोड़ का ही बनाया गया। तत्कालीन मंत्री जोबा मांझी ने योजना को विभागीय स्वीकृति देते हुए आवास बोर्ड को इंप्लीमेंटिंग एजेंसी बनाया था। तब आवास बोर्ड के अध्यक्ष नजम अंसारी थे, उन्होंने बिना टेंडर किए विभागीय स्तर से काम करने की जिम्मेवार जमशेदपुर के ठेकेदार कैसर खान को दे दी। इस निर्माण में इंजीनियर उस समय के राज्य हज कमेटी के अध्यक्ष और तत्कालीन मंत्री हाजी हुसैन अंसारी के बेटे साबिर हुसैन अंसारी थे।

बिना शीशे की खिड़कियां, हिलती सीढि़यां खतरे का कर रहीं इशारा

आधे अधूरे बने भवन में ही आजमीन-ए-हज ठहरने को मजबूर थे। उन्हें इस हज हाउस में कोई सुविधा नहीं मिलती है। राज्य भर से यहां जुटे हज यात्री हर साल अव्यवस्था के शिकार हो रहे हैं। कभी बारिश होने पर छत से पानी टपकता है। जो सीढि़यां बनी हुई हैं वह चढ़ने-उतरने पर हिलने लगती हैं। इससे हमेशा खतरा बना रहता है। वहीं, जो खिड़कियां बनी हैं, उनमें भी आज तक शीशा नहीं लग पाया है।

छज्जा गिरा, घायल हुए मजदूर फिर भी कार्रवाई नहीं।

2009 में ईद से एक दिन पहले हज हाउस का छज्जा गिर गया था। इसमें कई मजदूर घायल हो गए थे, इसे लेकर इलाके के अल्पसंख्यक समुदाय ने कड़ा विरोध भी जताया था। उस समय हाजी हुसैन अंसारी राज्य हज कमेटी के अध्यक्ष थे लोगों ने सड़क पर उनका विरोध किया था। उस समय राष्ट्रपति शासन के दौरान गवर्नर केआर नारायणन ने इसकी जांच का जिम्मा निगरानी को सौंप दिया था। जांच में कई गड़बडि़यां सामने आई, आज तक उन दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।

नए ठेकेदार ने बंद कर दिया है काम

Posted By: Inextlive