DEHRADUN :यह तो महज कुछ एग्जांपल हैं कि कैसे छोटी-छोटी बातों पर बच्चे पैरेंट्स से बगावत कर रहे हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या गलती सिर्फ बच्चों की है पैरेंट्स की नहीं? आरुषि मर्डर केस में आए फैसले ने इस बात को और बल दिया है. यहां सवाल एंगर मैनेजमेंट का है. बच्चे बात-बात पर उग्र हो जा रहे हैं तो पैरेंट्स का गुस्सा होना भी आम बात हो चुकी है. मीडिया के साथ तमाम सोशल साइड पर लोग तरह-तरह की टिप्पणी कर रहे हैं. पर सबसे अधिक चर्चा पैरेंट्स के एग्रेसिव नेचर और बच्चों के खुलेपन पर हो रही है. सवाल बेटर पैरेंटिंग से भी जुड़ा है. जानकारों की मानें तो इसके लिए जितने दोषी बच्चे हैं उतने ही दोषी पैरेंट्स भी हैैं. एक साल में 29 मामले


Case 1 -

मम्मी-पापा ठीक नहीं हैं, वे भैया की अपेक्षा मुझे कम प्यार करते हैं. मैं उनके साथ नहीं रहना चाहती. यह कंपलेन है सिटी के आउटर एरिया में रहने वाली क्लास सिक्स की छात्रा की. इस बच्ची को कई बार की काउंसलिंग के बाद पैरेंट्स के साथ रहने के लिए तैयार किया गया.

Case २.
घर में खाना ठीक नहीं मिलता. मुझे पैरेंट्स से अलग रहना है. यह शिकायत है सिटी के एक प्राइवेट स्कूल में पढऩे वाले ग्यारहवीं के स्टूडेंट की. जिसने महज इसलिए पैरेंट्स की शिकायत पुलिस से कर डाली, क्योंकि घर में तीन दिन से लौकी की सब्जी बन रही थी. उसका आरोप था कि मम्मी वही सब्जी बनाती है जो मार्केट में सस्ती होती है. हालांकि किसी तरह उसे समझाकर पैरेंट्स के साथ रहने के लिए तैयार किया गया.

Case ३.
क्यों फिजुलखर्जी करते हो. चंद कदम की दूरी के लिए विक्रम में जाने के बजाय पैदल क्यों नहीं जाते. सुबह जो पैैसे दिए थे, वो कहां गए. पैरेंट्स की बात-बात पर हिसाब मांगने की आदत बी-टेक  स्टूडेंट को इस कदर खली कि वह पैरेंट्स से बगावत कर अलग रहने लगा. मामला महिला प्रोटेक्शन अधिकारी के पास पहुंचा, तो उन्होंने स्टूडेंट के साथ पैरेंट्स की अलग अलग काउंसलिंग कर केस को सॉल्व किया.

दरअसल, बदलते दौर में हर एक चीज बदली है. बात बच्चों की हो तो वे भी पहले की अपेक्षा अधिक एडवांस हो चुके हैं. इंटरनेट और सोशल साइड के जरिए वो हर एक मुद्दे पर बेबाक टिप्पणी कर रहे हैं. बच्चे हर उस बात को जानने में दिलचस्पी ले रहे हैैं जो बात पैरेंट्स उनसे छुपाने में भलाई समझते हैं. जिस कारण पैरेंट्स और बच्चों के बीच एकऐसी दूरी पैदा हो रही है, जिसे भरने के लिए कड़ाई से नहीं, बल्कि प्यार से काम लेने की जरूरत है. बच्चे भी पैरेंट्स को हिटलर की भूमिका में नहीं बल्कि दोस्त की के तौर पर देखना पसंद करते हैैं. जिससे वे अपनी हर प्रॉब्लम शेयर कर सकें. यह बात जो लोग समझ जाते हैैं वे बच्चों को सही तरह से गाइड करने में कामयाब हो जाते हैैं और जो इस बात को नजरअंदाज करते हैं उनके बच्चे राह भटक कर बगावत पर उतर जाते हैं. पिछले एक साल में 29 बच्चों ने वूमन प्रोटेक्शन ऑफिसर के पास पैरेंट्स की शिकायत दर्ज कर इस बात पर मुहर लगाई है.
ये हैं कारण
सही गाइडेंस का अभाव- पैरेंट्स बच्चों को सही गाइड नहीं कर पाते. उन्हें इस बात का पता नहीं चल पाता है कि उनके लिए क्या गलत है और क्या सही. जिस कारण वे गलत राह चुन लेते हैैं.
हॉर्मोनिक चेंज- डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक 12 साल की उम्र से बच्चों में हॉर्मोनिक बदलाव आने शुरू हो जाते हैं. जिस कारण वे अपोजिट सेक्स की तरफ अट्रैक्ट होने लगते हैं. ऐसी स्थिति में उन्हें सही गाइडेंस न मिले तो वे अनजाने में गलती कर देते हैैं.
मम्मी पापा के रिलेशन - मम्मी पापा का आपसी व्यवहार भी बच्चों पर असर डालता है. यदि पैरेंट्स का आपसी व्यवहार सही है तो बच्चे भी खुलकर अपनी प्रॉब्लम उनसे शेयर कर सकते हैं, लेकिन यदि दोनों की आपस में लड़ाई होती है तो  बच्चे में नेक्लेजेंसी आती है जो उसके लिए ठीक नहीं होती.
मॉनिटरिंग का अभाव: स्कूलिंग से आगे बढ़ते ही बच्चे खुद को खुला हुआ महसूस करते हैं, लेकिन जानकार बताते हैैं कि बच्चे कॉलेज गोइंग उम्र में सबसे अधिक बिगड़ते हैैं क्योंकि उन पर कोई बंदिश नहीं होती. जिस कारण वे राह भटक कर ड्रग्स के साथ अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करने लगते हैैं जो बात पैरेंट्स को बाद में पता चलती है. बेहतर यही है कि पैरेंट्स बच्चे पर नजर रखें.
बेवजह प्रेशर: जो सपने पैरेंट्स खुद पूरा नहीं कर सके उनको पूरा करने की अपेक्षा वे बच्चों से रखते हैैं और उन पर उन्हें पूरा करने का प्रेशर बनाना शुरू कर देते हैं. जो बच्चे उन्हें पूरा करने में नाकाम साबित होते हैैं वे पैरेंट्स की नजर में खुद को गिरा हुआ महसूस करते हैं. यहीं से डिप्रेशन का शिकार होकर वे कई बार सुसाइड अटैम्ट कर लेते हैं.
हमारे पास लगातार ऐसी शिकायतें बच्चों द्वारा की जा रही है जिसमें अपने पैरेंट्स की बगावत साफ झलकती है. बच्चों की बगावत के पीछे कई कारण होते हैं. सबसे अधिक जिम्मेदार पैरेंट्स ही होते हैं, क्योंकि वे बच्चों को सही गाइड नहीं कर पाते. यदि बच्चा राह भटक कर गलत राह चुन लेता है तो परिजन कड़ाई से पेश आने शुरू कर देते जाते हैैं. नतीजा बच्चे बगावत पर उतर आते हैैं. ऐसे मामलों को कड़ाई से नहीं बल्कि प्यार से सुलझाना चाहिए.
रविंद्री मंद्रवाल, वूमन प्रोटेक्शन ऑफिसर
एंगर मैनेजमेंट के लिए डेमोक्रेटिव माहौल जरूरी
न्यूक्लियर फैमिली के दौर में आज बच्चे तमाम तरह के गैजेट्स के साथ बड़े हो रहे हैं. ज्यादातर फैमिलीज में मम्मी-पापा दोनों वर्किंग हैं. ऐसे में पैरेंट्स का प्यार और टाइम न मिलने के कारण बच्चे खुद ही अपनी वैल्यूज बनाने लगे हैं. ऐसे में बच्चों को गलत रास्ते में जाने में भी देर नहीं लग रही है. बच्चे भी एग्रेसिव होते जा रहे हैं और पैरेंट्स भी अपना गुस्सा उतार रहे हैं. ऐसे में बेटर पैरेंटिंग में एंगर मैनेजमेंट का पार्ट सबसे बड़ा हो जाता है. सिटी की सीनियर साइकोलोजिस्ट की मानें तो पैरेंट्स और बच्चों के बीच ऐसा रिलेशन होना चाहिए कि वे दोनों एक-दूसरे के साथ कोई भी बात खुलकर शेयर करें.
बैटर पैरेटिंग के लिए
- पैरेंट्स बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं
- बच्चों के साथ कम्यूनिकेशन गेप न हो
- बच्चों के फ्रेंड्स बनने की कोशिश करें
- घर में डेमोक्रेटिव माहौल बनाएं
- बच्चों को ज्यादा रोके-टोके नहीं
- अपने ड्रीम बच्चों पर न थोपे
- पैरेंट्स अपनी गाइडेंस के साथ बच्चों को एक्सपेरीमेंट करने दें
- बच्चों से तुरंत बदलाव की उम्मीद न करें
- किसी भी हैबिट में बदलाव के लिए बच्चों को दो-तीन मंथ का समय दें
ऐसे करें एंगर मैनेजमेंट
- गुस्सा आने पर डीप ब्रीथ लें
- सिचुवेशन को चेंज करने की कोशिश करें
- ऑप्शन क्रियेट करें
- रेगुलर ब्रीथ एक्ससाइज करें
- फीलिंग शेयरिंग करने की बनाएं हैबिट
हर घर में डेमोक्रेटिव माहौल होना जरूरी है. जब घर में ऐसा वातावरण होगा तो बच्चे और पैरेंट्स एक-दूसरे से खुलकर अपनी बात शेयर कर सकेंगे. एंगर का एक मेन कॉज प्रॉब्लम को अपने अंदर दबाना भी होता है. इस कारण व्यक्ति स्ट्रेस, डिप्रेशन का शिकार हो जाता है. पैरेंट्स को अपनी गाइडेंस में बच्चों को एक्सपेरीमेंट करने की परमिशन देनी चाहिए.
डॉ. वीना कृष्ण्नन, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट
अगर पैरेंट्स बच्चे की किसी हैबिट में बदलाव करना चाहते हैं तो उससे तुरंत बदलाव की उम्मीद कभी नहीं करनी चाहिए. क्योंकि किसी भी हैबिट को चेंज करने में हर किसी को समय लगता है. फिर चाहे वे बच्चे हों या बड़े. पैरेंट्स को इसके लिए बच्चों को कम से कम दो-तीन मंथ का समय देना चाहिए. साथ ही इस पीरियड के दौरान बच्चों को उस गलत हैबिट के हर पहलू के बारे में खुलकर बताना चाहिए.
डॉ. मुकुल शर्मा, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट

 

Posted By: Ravi Pal