जिंदगी के चाहे जिस रास्ते पर हम कदम बढ़ा रहे हों अगर हम यकीन के साथ कदम नहीं बढ़ा रहे हैं तो मंजिल हमें मिलेगी ही इसकी गुंजाइश कम है. श्री रामकृष्ण परमहंस की एक छोटी सी कहानी से हम इस बात को आसानी से समझ सकते हैं.

एक आदमी को एक कुएं की जरूरत थी. इसके लिए उसने खुद कुआं खोदने का डिसीजन लिया और एक सही जगह देखकर खुदाई शुरू कर दी. 20 फीट की खुदाई के बाद जब उसे पानी नहीं मिला तो उसने जगह बदल दी और फिर नए सिरे से कुएं की खुदाई करने लगा.  अबकि बार उसने 20 फीट से ज्यादा खुदाई की लेकिन फिर भी पानी मिलने की कोई गुंजाइश नहीं होने पर उसने फिर से एक दूसरी जगह खुदाई शुरू कर दी. इस तरह उसने तीन जगहों पर खुदाई की लेकिन पानी नहीं आया. अंत में उसने कुआं खोदने का इरादा ही छोड़ दिया.
अगर देखा जाए तो उसने तीन जगह जितनी खुदाई की थी उसका टोटल 100 फीट से कुछ ही कम था. अगर वह अपने टोटल अटेम्प्ट का आधा यानी पचास फीट की खुदाई भी अपने पहले अटेम्प्ट में करता तो वह अपने मकसद में कामयाब हो सकता था. लेकिन पेशेंस की कमी और सिंगल ऑब्जेक्ट पर यकीन नहीं कर पाने की वजह से अपन अपना गोल अचीव नहीं कर पाया. 
कहने का मतलब साफ है कि हम जो काम करते हैं अगर उस पर यकीन ना हो या अपने यकीन पर ही शक हो तो हम अपने मकसद से दूर हो जाते हैं.

(Courtesy: www.writespirit.net/)

 

 

Posted By: Surabhi Yadav