शाह और 'साहेब' की नींद उड़ानेवाले सिंघल कौन हैं?
एक ही साल पहले भारतीय पुलिस सेवा में आए सिंघल इसके बाद गुजरात पुलिस के चहेते बन गए और फिर एक के बाद एक कई अहम पदों पर रहे. आज वही गिरीश सिंघल गुजरात के पूर्व गृह मंत्री अमित शाह और उनके 'साहेब' की नींद उड़ा चुके हैं.मुठभेड़ की रणनीति बनाने में माहिर और मोदी सरकार के भरोसेमंद और चहेते अफ़सरों में से एक, सिंघल सत्तासीन लोगों की नींद उड़ाने का ज़रिया कैसे बन गए? सिंघल को फ़रवरी 2013 में इशरत जहां फ़र्जी मुठभेड़ मामले में गिरफ्तार किया गया. फिलहाल वो ज़मानत पर जेल से बाहर हैं. उनके खिलाफ़ और भी कई आरोप हैं.
गुजरात में 2002 के मुसलमान विरोधी दंगों की जांच के लिए गठित विशेष टीम ने आरोप लगाया कि अहमदाबाद अपराध शाखा में काम करते समय सिंघल ने महत्वपूर्ण सबूत मिटाए. उन पर ये भी आरोप लगा कि मिटाए गए सबूतों में आईपीएस अधिकारी राहुल शर्मा की दंगों के दौरान के कॉल रिकॉर्ड पर तैयार की गई सीडी शामिल थी.
उन पर 'इशरत जहां फ़र्ज़ी मुठभेड़' मामले में सच्चाई छिपाने का आरोप भी लगा था. इशरत जहां एक 19 वर्षीय कॉलेज छात्रा थीं जिन्हें पुलिस ने तीन अन्य लोगों के साथ एक कथित पुलिस मुठभेड़ में 15 जून 2004 को अहमदाबाद के पास मार दिया था. उनके परिवार का दावा है कि वे सामान्य छात्रा थीं और निर्दोष थीं.न्यायिक जाँच
उनका कहना है कि उनकी पत्नी का इलाज चल रहा था और बेटी अहमदाबाद के एक होटल में ठहरी हुई थी, इसलिए वो अपनी बेटी के लिए फिक्रमंद थे. पिता के अनुसार इसी वजह से उन्होंने अपने पारिवारिक मित्र और गुजरात के मुख्यमंत्री से अपनी बच्ची की देखरेख की गुज़ारिश की थी.उधर, कांग्रेस और महिला आधिकारों के कई कार्यकर्ता मांग कर रहे हैं कि ये स्पष्ट किया जाए कि क्या मोदी सरकार ने इस 'निगरानी' कार्रवाई से पहले काग़ज़ी कार्रवाई और वैध प्रक्रिया पूरी की थी या नहीं.इशरत पर एफ़आईआर?
उन दिनों सिंघल पुलिस अधीक्षक के रूप में खेड़ा जिले में तैनात थे. उनके बेटे ने अहमदाबाद में अपने कमरे में छत से खुद को लटका लिया और सिंघल के दोस्तों का मानना है कि इस घटना ने सिंघल को झकझोर कर रख दिया. सिंघल ने अहमदाबाद में अपना बंगला खाली कर दिया.और शहर के बाहरी इलाके में एक नए घर में पत्नी और बेटी के साथ रहने लगे. इससे पहले सिंघल अक्षरधाम हमले के बाद सरकार द्वारा सम्मानित होकर और अहम पदों पर रहने के कारण गुजरात में खासे 'सफल' पुलिस अधिकारी माने जाते थे.हालाँकि अक्षरधाम हमला, जिसमें 34 लोग मारे गए और 81 घायल हुए, सिघल के गांधीनगर के उप पुलिस अधीक्षक रहते हुए घटा था. हमले के दौरान हमलावरों का सामना करते समय कार्रवाई की कमान संभालने के लिए उनकी सराहना हुई थी.जब एक साल तक मामले के दोषियों को पकड़ा न जा सका तो इसकी जाँच का काम सिघल को सौंपा गया था. वर्ष 2003 में अहमदाबाद अपराध शाखा को मामला सौंपे जाने के अगले ही दिन पाँच लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया.पोटा अदालत में जब ये मामला गया तो अदालत ने जाँच पर सवाल उठाया और पूछा कि जब अन्य पुलिस एजेंसियाँ 12 महीने तक किसी को नहीं पकड़ पाईं तो अब 24 घंटे के भीतर सिंघल ने ये कैसे कर दिया?