आगरा. छात्रसंघ चुनाव को लेकर यूनिवर्सिटी में सियासत गरमा गई है. चुनाव में नॉमिनेशन से लेकर प्रचार तक छात्र नेताओं ने मिलकर कई 'खेलÓ खेले हैं. छात्र संगठनों ने प्रत्याशियों को टिकट देने के नाम पर गुपचुप तरीके से सेटिंग-गेटिंग का खेल खेला है. एक-एक नहीं बल्कि कमोबेश सभी छात्र संगठनों के कर्ता-धर्ताओं ने जेब गरम करने में सक्षम स्टूडेंट को ही अपना कैंडिडेट बनाया है. ऐसा नहीं है कि संगठनों के हाईकमान को इसकी नॉलेज नहीं है बल्कि इस सेटिंग-गेटिंग के 'खेलÓ में बड़े-बड़े भी शामिल हैं.


तीन लाख में अदला-बदलीसूत्र बताते हैं कि देश के जाने-माने छात्र संगठन ने अध्यक्ष पद के दावेदार से लाखों की डीलिंग की है। जिसने कर्ता-धर्ताओं की जितनी ज्यादा जेब गरम की उसे उसी लेवल का टिकट फाइनल कर दिया गया। सिचुएशन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हाल ही में बड़े छात्र संगठन की ओर से चेंज किए गए एक कैंडिडेट से तीन लाख रुपए की डील की। ऐसे हुआ 'खेलÓइस बार चुनाव में इस बड़े छात्र संगठन के अध्यक्ष पद के लिए दो दावेदार थे। इनमें एक प्रत्याशी पिछले दो साल से चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहा था। सूत्रों का कहना है कि कैंडिडेट का टिकट प्रदेश प्रभारी और जिला प्रभारी के लेवल से फाइनल किया गया था। लेकिन चुनाव नजदीक आते ही पार्टी ने एक रसूखदार दावेदार से तीन लाख रुपए लेकर अपना कैंडिडेट डिक्लेयर कर दिया।


टिकट तो दे दी पर भीड़ नहीं

पार्टी ने पैसे लेकर दावेदार को टिकट तो दे दी, लेकिन प्रत्याशी को लेकर वोटर्स में उत्साह नजर नहीं आ रहा है। कैंपस में हर कोई दबी जुबान से इस 'खेलÓ की बात को स्वीकार कर रहा है। इस 'खेलÓ में पार्टी जिलाध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय कमेटी के लोग शामिल हैं। इससे वोटर का रुझान पार्टी की ओर से कम हो रहा है। मना किया तो काटी टिकटसूत्र बताते हैं कि  पार्टी ने पुराने दावेदार की टिकट इसलिए फाइनल नहीं की क्योंकि उसने टिकट फाइनल कराने में अहम भूमिका निभाने वाले कई नेताओं को पैसा देने से मना कर दिया। उन्हें डर था कि अगर दावेदार को टिकट मिल गया तो वह पार्टी में अंदर चल रहे 'खेलÓ को खत्म कर देगा। साथ ही उनकी पोल खुल जाएगी। खेल को मात देंगे निर्दलीय संगठन ने जिस कैंडिडेट का टिकट काटा उस दावेदार ने निर्दलीय के रूप में अपना पर्चा दाखिला कर दिया। यही नहीं, सेटिंग के खेल को करारी मात देने के लिए अध्यक्ष पद के कैंडिडेट के साथ ही साथ अन्य चार ने भी निर्दलीय चुनाव लडऩे की बात कही है। अन्य पार्टी कर रहीं सेटिंगपैसे लेकर जिस कैंडिडेट को मैदान से हटाने की कोशिश की गयी थी उसे सपोर्ट के लिए कई दलों के छात्र संगठन आगे आ रहे हैं। कुछ कैंडिडेट्स का तो यहां तक दावा है कि सत्ताधारी दल का छात्र संगठन भी इस सेटिंग-गेटिंग के खेल का फायदा उठाने में जुट गया है। कैंडिडेट को भीतर ही भीतर ये संंगठन भी सपोर्ट का भरोसा दे रहा है।

डीलिंग अभी जारी है पैसे के दम पर कैंडिडेट चेंज करने और अंदर ही अंदर एक दूसरे के लिए सपोर्ट का खेल अभी खत्म नहीं हुआ है। हाईकमान और स्थानीय स्तर के तमाम जिम्मेदार नेता इस खेल में शामिल हैैं। सूत्रों का कहना है कि कई कैंडिडेट्स पर मैदान से हटने के लिए प्रेशर तक बनाया जा रहा है। दबाव बनाया जा रहा है.

पैसे लेने का दस्तूर पुराना है आगरा। छात्रसंघ चुनाव में पैसे के बदले कैंडिडेट बदलने की परम्परा कोई नई नहीं है। डॉ। बीआर अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के फस्र्ट इलेक्शन 2003 में हुए थे। उस समय इलेक्शन स्टार्ट होने के पहले मौके पर ही प्रेसीडेंट अलावा दूसरे पद के कैंडिडेट्स रातोंरात बदल दिए गए थे। दो लाख में बदला था कैंडिडेट छात्रसंघ चुनाव 2003 में एक नेशनल पार्टी ने अपने प्रेसीडेंट पद के डिक्लेयर कैंडिडेट बदलने के बदले दो लाख रुपए का लेन-देन हुआ था। हालांकि नेशनल पार्टी के जिम्मेदार लोगों ने जिस कैंडिडेट को हटाया था उसे मैदान से हटाने में सक्सेज नहीं हो पाए थे। नतीजा उस कैंडिडेट ने निर्दलीय के रूप में फाइट की थी।

Posted By: Inextlive