वैधानिक चैतावनीइस स्कूल/कॉलेज का किसी भी एक्सिस्टिंग स्कूल/कॉलेज से कोई लेना देना नहीं है। यह सच मानकर इस स्कूल का गूगल सर्च शुरू न कीजिये ये दुनिया आपको दुनिया में कहीं नहीं मिलेगी।

कहानी
प्रो कबड्डी रिंग में जो जीता वही सिकंदर

रेटिंग : डेढ़ स्टार

समीक्षा
अगर मैं इस स्कूल में स्टूडेंट होता तो पक्का फेल हो जाता और मेरे पिताजी मुझे बाहर निकाल देते और घर पर मेरी तुड़इया जो होती वो अलग से।।।खैर जाने दीजिये, भगवान् का आशीर्वाद है कि मैं एक ऐसे स्कूल में पढ़ा हूँ जहां पढ़ाई होती थी। पर ये जगह अजब अतरंगी है, गरीबों का स्कूल हो या जगत में अनोखा सेंट टेरेसा स्कूल/कॉलेज , कहीं कोई पढता लिखता दिखता ही नहीं है, गरीब लोग इतने गरीब हैं फिर भी बड़े आराम से माचो बने रहते हैं। पूरी फिल्म में एक दुसरे की कुटाई करते रहते हैं।

घोड़े जैसे दिखने वाले ये स्टूडेंट कौन सी क्लास में पढ़ते हैं और कौन से बोर्ड के स्टूडेंट हैं, ये हम फिल्म के अंत तक पता नहीं लगा सकते। फिल्म एक सेट फॉर्मेट पर चलती है। एक लम्बा फाइट सीक्वेंस, एक कॉमेडी सीक्वेंस, फिर एक नाच गाना सीक्वेंस और फिर रिपीट, ऐसे ही 3-4 फिल्में निकल जाती है और फिल्म अपने मुद्दे पर ही नहीं आ पाती, फिर फिल्म के आखरी आधे घंटे में होता है स्पोर्टस मीट जिससे फैसला होता है स्टूडेंट ऑफ द ईयर का। धर्मा कैंप के रूमी यानी पुनीत मल्होत्रा जैसे कहना चाहते हैं, ' रियलिटी से दूर कहीं एक स्कूल है, वहीं मिलूंगा मैं तुम्हे'। फिल्म की स्टोरी बेहद झंड है और डायलॉग तो पूछो ही मत, कुछ डायलॉग तो इतने बेचारे हैं कि लगता है, डायलॉग राइटर डिप्रेशन में है। फिल्म में करोडों के कपडे लत्ते हैं जो इस फिल्म का अकेला हाई पॉइंट है।

अदाकारी
टाइगर मेरे भाई , ये क्यों कर रहे हो अपने साथ। अच्छे एक्टर हो, मेहनती हो, क्यों नहीं कोई ढंग की फिल्म चुनते हो अपने लिए? इस फिल्म में भी टाइगर वही करते हैं जो वो हर फिल्म में करते हैं। आदित्य सील को पता नहीं क्यों 7० के दशक का गेटअप दिया है, अजीब लगता है। तारा एक्सप्रेशन विहीन हैं, पूरी फिल्म में बड़ी क्लूलेस सी दिखती हैं, जैसे उन्हें फिल्म की स्क्रिप्ट दिखाई ही नहीं गई। अभिषेक बजाज का काम बाकियों के मुकाबले काफी अच्छा है।

 

 

अनन्या पाण्डे
अब आ जाते हैं फिल्म के मेन मुद्दे पर, वो यह है कि अनन्या जो कि चंकी पांडे की बेटी हैं। अनन्या अच्छी एक्ट्रेस, चेहरे पर सही एक्सप्रेशन आते हैं और अगर एक आध ढंग की फिल्म में वो आ गईं तो वो कमाल भी कर सकती हैं।

वर्डिक्ट
बड़ी छिछली स्क्रिप्ट पर बनी बड़ी ही दिशाहीन सी फिल्म है जिसमे सब कुछ रंगापुता हुआ है, कुछ भी रियल नहीं है पर फिर भी अगर अनन्या के बढ़िया डेब्यू को देखना चाहते हों या मार धाड़ और नाच गाने के शौकीन हों तो देखिये स्टूडेंट ऑफ द ईयर- पार्ट 2। ।।।वर्ना भाग लो वही बेहतर है।

Review by : Yohaann Bhaargava

Posted By: Chandramohan Mishra