पहले हमें नियम और अनुशासन के बीच के फर्क को समझना पड़ेगा। सूरज सुबह पूर्व से ही उदय होगा और पश्चिम में अस्त होगा। यह प्रकृति का नियम है। इसमें कुछ नहीं बदलेगा कभी भी परंतु हम इंसान जिंदगी में कई नियम बनाते हैं और उस नियम को नहीं मानते हैं।

नमस्कार, हम इस वर्ष के तृतीय महीने में पहुंच गए हैं। अगले महीने वित्तीय साल का पहला महीना होगा। नई शुरुआत होगी व्यावसायिक वर्ष की और स्कूल में नए क्लास की। स्कूल की बात छेड़ने पर पहली बात जो दिमाग में आती है, वह है- अनुशासन यानी डिसिप्लिन। क्या अनुशासन केवल बच्चों के लिए है? आज चर्चा करेंगे अनुशासन के विषय में।

पहले हमें नियम और अनुशासन के बीच के फर्क को समझना पड़ेगा। सूरज सुबह पूर्व से ही उदय होगा और पश्चिम में अस्त होगा। यह प्रकृति का नियम है। इसमें कुछ नहीं बदलेगा कभी भी परंतु हम इंसान जिंदगी में कई नियम बनाते हैं और उस नियम को नहीं मानते हैं। बनाए हुए नियम को मानना और नहीं तोड़ना अनुशासन कहलाता है। उस वक्त जब कोई आपको देख नहीं रहा है और आप फिर भी कानून नहीं तोड़ते हो, स्वशासन या सेल्फ डिसिप्लिन कहलाता है।

एक छोटा उदाहरण लीजिए। अगर पुलिस ने स्कूटर या मोटरसाइकिल सवारी के लिए हेलमेट पहनने का नियम बनाया है तो अधिकतर लोग तब तक हेलमेट का प्रयोग नहीं करते, जब तक पुलिस पकड़कर जुर्माना नहीं करती है। अनुशासन होना चाहिए कि मुझे अपने सिर को किसी दुर्घटना से बचाने के लिए स्कूटर या मोटरसाइकिल की सवारी करते वक्त हेलमेट जरूर पहनना चाहिए। पुलिस के नियम जारी करने या न करने पर हमारा निर्णय और बर्ताव एक ही रहेगा। अक्सर हमने ऐसे लोगों को अनुशासन भंग करते देखा है जोकि खुद को दूसरे से सीनियर या पॉवरफुल समझता है। पुलिस की गाड़ी कई बार मुझे रास्ते में उलटी दिशा में आती हुई मिली है। ऑफिस में बॉस देर से आते हैं। छोटे मोटे वीआईपी अक्सर लाइन में खड़े नहीं होते हैं। बुजुर्ग, बच्चों को ज्ञान देते हैं कि हमने बचपन में ऐसा किया या नहीं किया है।

आपने बचपन में क्या किया या नहीं किया, उससे आपके बच्चे को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह इस वक्त जो आपको करते हुए देखता है, उसे सीख उसी से मिलती है। मैं अनुशासन का भक्त हूं और उसके महत्व को समझता हूं। ऐसा नहीं है कि मैं अनुशासन नहीं तोड़ता परंतु कुछ विषय और मामले में ऐसा करने से बचता हूं। जैसे मैं गाड़ी की पिछली सीट पर बैठने समय भी सीट बेल्ट जरूर बांधता हूं। ऑफिस पहुंचने में अगर देर हो जाए तो, मैं अपनी टीम को पहले से ही इतिल्ला कर देता हूं। इस संदर्भ में यह बताना जरूरी है कि समय पर ऑफिस पहुंचना अनुशासन है। किस जगह मैं अनुशासन तोड़ता हूं? खाने के विषय में। ऐसा खाना खा लेता हूं जो सेहत के लिए सही नहीं है या ज्यादा खा लेता हूं।

पिछले हफ्ते मैं जयपुर में एमबीए के बच्चों को जिंदगी में सफलता पाने के विषय में समझा रहा था। मैं उनके अनुशासन से मुग्ध हो गया और उन्हें यह समझाया कि अगर वो इसको बरकरार रखें तो उनको अपनी मंजिल तक पहुंचने से कोई नहीं रोक पाएगा। इरादे और अनुशासन दोनों जरूरी हैं सफलता के लिए। एक इंजन है तो दूसरा ईंधन। इन बच्चों के अनुशासन का श्रेय कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. मंजु नायर और उनकी टीम को जाता है। इस टीम के अनुशासन से हम सब प्रेरणा ले सकते हैं। जिंदगी में अनुशासन लाना चाहते हैं? छोटी -छोटी चीजों से शुरू कीजिए। अपनी और परिवार की सावधानी के लिए जिस अनुशासन की जरूरत है, उसी से शुरू कीजिए। उम्मीद करता हूं कि इसका महत्व आप समझते हैं। अगली बार जब मिलूंगा वित्तीय या पढ़ाई के नए साल में। जहां आप अपने दिन का सबसे ज़्यादा समय बिताते हैं, वहां तो अनुशासन को अपना अभिन्न अंग जरूर बनाइए। सफलता आपकी होगी। यही दुआ करता हूं। स्वस्थ रहिए और सावधानी से जिंदगी गुजारिए। इसी में हम सबका मंगल है।

— दीपक प्रमाणिक (Writer is a Motivator, Teacher & Trainer)

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Posted By: Kartikeya Tiwari