यदि आप किसी कारणवश अपना लक्ष्य प्राप्त करने में विफल हुए हों तो निराशा के समंदर में गोते लगाने की बजाय यह विचार मन में लाएं कि विफलता में ही सफलता के सूत्र छिपे हैं। माता अमृतानंदमयी का चिंतन..

 

यदि आप किसी कारणवश अपना लक्ष्य प्राप्त करने में विफल हुए हों, तो निराशा के समंदर में गोते लगाने की बजाय यह विचार मन में लाएं कि विफलता में ही सफलता के सूत्र छिपे हैं। माता अमृतानंदमयी का चिंतन.. 

कभी-कभी मेरे पास कुछ ऐसे युवा आते हैं, जो कहते हैं, 'मैंने जीवन में कभी कुछ-भी गलत नहीं किया, फि र भी लक्ष्य पाने के लिए मैं लगातार संघर्ष कर रहा हूं। बार-बार मुझे असफलता ही मिल रही है। दूसरी ओर, हमारे पड़ोसी लगातार गलत कार्य करते रहते हैं। यहां तक कि कुछ लोग बिना मेहनत किए ही वह सब कुछ हासिल कर रहे हैं, जिन्हें पाने की वे इच्छा करते हैं। वे कभी प्रार्थना भी नहीं करते हैं, फिर भी वे संपन्न हैं। हमने ईश्वर पर विश्वास खो दिया है।' 

युवाओं की तरह कुछ बच्चों को भी पढ़ाई-लिखाई में असफलता मिलती है या किसी गलती पर उन्हें बड़ों की डांट मिल जाती है, तो वे हताश-निराश हो जाते हैं। कुंठित होकर वे कुछ गलत कदम भी उठा लेते हैं। यह सही नहीं है। बच्चों के मामले में मां-पिता की जिम्मेदारी बनती है कि वे छोटी उम्र से ही बच्चों के मन में यह बात बिठाना शुरू कर दें कि मानव जीवन अनमोल है और हर व्यक्ति को कुछ विशेष करने के लिए ही यह जीवन मिला है। असफलता या सफलता के पीछे अपना जीवन व्यर्थ न करें। 

जीवन को सोच विचार में न गंवाएं


कई ऐसे महापुरुष हुए हैं, जो बचपन में अति साधारण थे। बड़े होकर उन्होंने देश-समाज के लिए विशेष कार्य किया। कुछ लोग थोड़ी-सी असफलता मिलने पर घबरा जाते हैं और उनमें नकारात्मक सोच जन्म लेने लगती है। हमें जीवन को सोच-विचार में नहीं गंवाना चाहिए, बल्कि निरंतर कर्म करते रहना चाहिए। हमें अवसाद का शिकार नहीं होना चाहिए। यदि जीवन है, तो हमें सुख और दुख दोनों से साक्षात्कार करना होगा। जीवन घड़ी की पेंडुलम की तरह है। यह झूलता है। कभी उठान, तो कभी ढलान मिलना तय है। यदि आप इन दोनों के बीच संतुलन बना पाए या ढलान-उठान के बीच निर्विकार बने रहे, तो आपका जीवन सफल हो जाएगा। आपको विफलता में भी सफलता के सूत्र नजर आने लगेंगे। 

जीवन में संतुलन स्थापित करना ही अध्यात्म का उद्देश्य

जीवन के झूलते पेंडुलम के बीच संतुलन स्थापित करना ही अध्यात्म का उद्देश्य है। हमारा मन एक पुरानी घड़ी की तरह है। इसे जारी रखने के लिए इसे समय-समय पर धक्का देना पड़ता है। इसके लिए हमें अपने दिमाग को नियमित रूप से सत्संग यानी अच्छे विचारों की खुराक देनी पड़ती है। तभी हमारा विवेक जाग्रत होता है। हमारे विचार दो प्रकार से समृद्ध होते हैं। एक तो अनुभव से, तो दूसरा किताबों के अध्ययन या सत्संग से ये परिपक्व होते हैं। दोनों के संयोग से पोषित हुए विचारों से हममें आंतरिक परिवर्तन होता है। अध्यात्म और आध्यात्मिक ज्ञान इस कार्य में हमारी मदद करते हैं। यदि हम आध्यात्मिक समझ के माध्यम से विकास और परिपक्वता प्राप्त करते हैं, तो हम कभी-भी अपने जीवन को समाप्त करने के बारे में नहीं सोच सकते हैं। आध्यात्मिक ज्ञान की ताकत से हमें इस परिपक्वता को विकसित करना चाहिए।

आज मनोरंजन और आनंद के लिए कई कृत्रिम रास्ते हैं, लेकिन स्वयं सहजता से मुस्कराना और दूसरों के चेहरे पर सच्ची मुस्कराहट लाना दुर्लभ हो गया है। आज मुस्कुराहट महंगे आभूषण के समान हो गई है, जिसे खरीदा और बेचा जा रहा है। यहां ऐसे स्कूल भी हैं, जहां चेहरे पर मुस्कान (कृत्रिम) लाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। परोपकार तथा दूसरों के प्रति दया के भाव प्रकट करना तो दूर की बात है, ऐसी संस्थाएं वह शांति और सांत्वना प्रदान करने में असमर्थ हैं, जो दिल से निकले शब्दों या सच्चे प्यार की बदौलत स्वाभाविक रूप से चेहरे पर मुस्कान ले आएं। 

विफलता शिक्षक के समान

एक बार एक आदमी नदी पर बने पुल पर खड़ा था। वह किसी काम में विफल हुआ था, इसलिए उसके मन में बहुत कड़वाहट थी। उसे अपने जीवन से घृणा हो गई थी। वह सोच रहा था कि वह पुल से कूद कर मर जाए। अगले पल उसके मन में एक विचार आया, 'पूरे जीवन में क्या कभी किसी ने मेरी मदद की है? क्या कोई कभी मेरी ओर देखकर मुस्कराया है? यदि अभी कोई मेरी ओर देखकर मुस्कराता है या मदद के लिए मेरी ओर हाथ बढ़ाता है, तो मैं अपनी जान देने के निर्णय पर दोबारा विचार कर सकता हूं।' यह कहानी हम सबके लिए है। इसका अंत कैसा होगा, यह हम पर निर्भर करता है। हमें अपने-आप से यह जरूर पूछना चाहिए कि क्या हम कभी किसी को देखकर मुस्कराए हैं या हमने कभी किसी की मदद की है? यदि आप ऐसा करने का विचार करते हैं, तो आप पाएंगे कि दूसरे लोग भी आपकी मदद करने के लिए आगे आ रहे हैं। इस पर जरूर विचार करें कि आपकी मुस्कराहट या आपकी छोटी-सी मदद किसी के जीवन को बचा सकती है। 

वहीं जब भी आप स्वयं को विफल महसूस करें तो यह जरूर सोचें कि कोई आपसे भी निम्न स्थिति में रह रहा है या काम कर रहा है। हमारे आसपास ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें एक वक्त का भोजन भी नसीब नहीं होता है। कुछ लोग तो असहनीय व्यक्तिगत समस्याओं के नीचे दबे होते हैं। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनके आसपास के लोग उन्हें कभी सांत्वना नहीं देते। उन्हें निरंतर प्रयत्न करते रहने की प्रेरणा भी नहीं दे पाते हैं। जो लोग हाल में विफल हुए हैं या कुछ पाने की आशा बिल्कुल खो चुके हैं, तो वे निराशा के समंदर में गोते लगाने या आत्महत्या जैसे कायरतापूर्ण कार्य को अंजाम देने की सोचने की बजाय वे यह समझें कि यह समाधान नहीं है। यदि हम गौर करेंगे, तो पाएंगे कि विफलता हमारे लिए शिक्षक के समान हैं। हमने जो पूर्व में गलतियां की हैं, उन पर विचार करने के लिए वे प्रेरित करती हैं।

अगर मानेंगे ये बात तो नहीं रूकेगा आपका कोई काम
कामयाब कॅरियर के लिए टॉपर होना जरूरी नहीं, यकीन न हो तो खुद देख लो Posted By: Vandana Sharma