28 साल बाद दोबारा वर्ल्ड कप जीतने के एक साल पूरे हो गए. आज के दिन हम आपको एक ऐसे शख्स की आपबीती सुना रहे हैं जो इंडियन क्रिकेट के जबर्दस्त फैन है. जी हां हम सुधीर कुमार की बात कर रहे हैं.

खासकर सचिन तेंदुलकर के प्रति उनका जुनून फेमस है. वर्ल्ड कप की जीत के बाद सुधीर ड्रेसिंग रूम जाने में सफल रहे, एक ऐसी जगह जहां के बारे में हर भारतीय जानना चाहता है. सुधीर ड्रेसिंग रूम में आम आदमी के एंबेसेडर के रूप में मौजूद था. पूरे शरीर पर इंडियन ट्राइकलर पेंट कराकर मैच देखने वाले सुधीर ने जीत के बाद  सचिन के साथ बिताए पलों को आई नेक्स्ट के साथ शेयर किया था.

सुधीर की जुबानी
मैंने इस पल का गवाह बनने के लिए न जाने कितना लंबा वक्त गुजारा है. मैं शहर-दर-शहर भटका हूं. सैटरडे को जब हम वर्ल्ड चैंपियन बन चुके थे तो बार-बार लग रहा था, कहीं कोई सपना तो नहीं देख रहा हूं. कोई आसपास ऐसा नहीं था जिसके आंखों से आंसू नहीं छलक रहे थे. वानखेड़े स्टेडियम में कोई आंसू नहीं छिपा रहा था, दरअसल ये खुशी के आंसू थे. यकीन मानिए, इन आंसुओं को तब छिपाया था जब 2003 में फाईनल में हार गये थे. 2007 में हमारी टीम पहले राउंड में बाहर हो गई थी.  लेकिन आज नहीं.
 
खूब रोया

पल भर के लिए पता नहीं, मैं कहां खो गया था. होश गुम हो गए थे. रात के लगभग 12 बज गए थे. दीवाली छह महीने पहले पूरे देश में आ चुकी थी. मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा था? अचानक खुली आंखों से देख रहा हकीकत का सपना टूटा और फिर याद आया मेरा वह खुद से किया गया वादा कि अगर वानखेड़े में भारत जीत गया तो फिर मैं अपने भगवान से मिलकर उस कप को उठाना चाहूंगा जिसे पाने का सपना हमारे भगवान ने भी देखा था.

सैटरडे की रात, मैं स्टेडियम के एक कोने में जहां से पैवेलियन का रास्ता जाता है वहां खड़ा था. खिलाडिय़ों के जश्न मनाने की आवाज बाहर आ रही थी. मैं अंदर जाना चाह रहा था. लेकिन तभी दो सिक्योरिटी गार्ड ने मुझे धक्के देकर बाहर निकलने का ऑर्डर दे दिया, लेकिन मैंने तय कर लिया था कि बिना भगवान से मिले बाहर नहींजाउंगा, फिर चाहे इसकी कोई कीमत चुकानी पड़ी. ये मेरी जिद थी, अपने भगवान से मिलने की.
तभी एक आवाज ने वहां सबको चौंका दिया.
मुझे मेरे भगवान बुला रहे थे.
मुझे तो पलभर के लिए विश्वास नहीं हुआ. सचिन खुद आए. मुझे गले लगाया और ले गए अंदर. मेरा जीवन सार्थक हो चला था. अंदर सारे खिलाड़ी मस्ती के आलम में डूबे हुए थे. हरभजन मेरे साथ भांगड़ा करने लगे. जहीर शांत होकर मुस्कुरा रहे थे. आशीष नेहरा की पत्नी भी वहां थी. सचिन के दोनों बच्चे चहक रहे थे. मैंने देखा जैसे हम लोग पूरे देश में जुनून और पागलपन के साथ एक सुर में जीत का जश्न मना रहे थे ठीक वही भावना यहां भी थी.
सचिन ने फिर मुझे अपने पास बुलाया. अपने हाथों से केक खिलाया. मेरे आंख से आंसू गिरने लगे. वह मेरे लिए भगवान हैं. आज मैंने एक इंसान को भगवान के रूप में देखा, मेरा भगवान सरल और सहज था. जहीर ने मुझे हौसला दिया. मेरे आंखों से आंसू छलक आए. सचिन ने मुझे रोता देखा तो कहा कि अब तुम भी वल्र्ड कप उठाओ. यह कप सबका है पूरे देश का है..मैंने कप उठाने की कोशिश की, लेकिन 15 किलो का कप मुझसे अकेले नहीं उठाया जा सका. मैंने जहीर और अपने भगवान के साथ मिलकर कप उठाया.

जश्न की रात
तडक़े तीन बजे तक सभी जश्न में डूबे रहे. उनके साथ जश्न मनाते हुए मुझे ऐसा लग रहा थ जैसे मैं बिहार में अपने घर में अपने दोस्तों के बीच मस्ती कर रहा हूं. दूरियां खत्म हो चुकी. शनिवार की रात मेरे सपने के हकीकत में बदलने की थी, मेरी आंखों से खुशी के आंसू थम नहीं रहे थे.

Posted By: Kushal Mishra