ALLAHABAD: कांच भी मोती है डायमंड भी मोती है. डायमंड की अगर समझ आ जाए तो लोग कांच के मोती के पास नहीं जाते हैं. सूफी का एक अलग अंदाज है. वैसे भी म्यूजिक वही है जो रूह को शकुन दे. संगीत तो दिलों को जोड़ता है. ये मानना है सूफी सिंगर हंसराज हंस का. इलाहाबाद पहुंचे हंसराज हंस ने आई नेक्स्ट से शेयर की संगीत और बॉलीवुड से जुड़ी खास बातें.


दो वजह से ही जानता हूं इलाहाबाद कोपहली बार इलाहाबाद आया हूं। यहां की संस्कृति के बारे में काफी सुना है। मैं तो केवल दो चीजें ही सिटी के बारे में जानता था। एक तो इलाहाबाद में महानायक अमिताभ बच्चन पैदा हुए और दूसरा यहां पर संगम है। मौका मिला तो मैं जरूर संगम जाऊंगा। बहुत सुन रखा है संगम के बारे में। शुकून देता है संगीतआज के दौर में लाउड म्यूजिक सिरदर्द का कारण बन रहा है। लाउड म्यूजिक को अहिस्ता-अहिस्ता छोडऩा पड़ जाएगा। संगीत वही है जो दिल का शुकून दे और रूह में बसे। संगीत तो दिल में बसता है ये दिलों को जोडऩे के लिए है तोडऩे के लिए नहीं। संगीत कैसा भी हो वह सुर में होना चाहिए।मुझे तो जीनियस लोगोंं ने गवाया
लोग आज भी सूफी को सुनना चाहते हैं। दूसरे गीत सफर कर रहे हैं लेकिन सूफी जैसा का वैसा ही है। मैं कभी मुम्बई में नहीं रहा। मुझे जीनियस लोगों ने बुलाया। सबसे पहले नुसरत फतेह अली खान ने कच्चे धागे मूवी में 'अश्क है पानी, अश्क है कतरागीत गवाया। इसके बाद एआर रहमान ने नायक मूवी और फिर हाल में ही आई मौसम में भी संगीत दिया।  मैं तो महबूब के लिए गाता हूं


मैं उस महबूब के लिए गाता हूं जिसे मैं देख नहीं सकता। अगर इस महसूस के साथ संगीत गाया जाए तो उसकी बात ही कुछ और है। मैंने नुसरत अली खान साहब के साथ गाया। इसके अलावा लता मंगेशकर ने जन्मदिन पर मुझे बुलाया। इसके अलावा युसूफ खान यानि दिलीप कुमार जी ने पहली बार जन्मदिन मनाया। पूरी इंडस्ट्री मौजूद थी लेकिन वहां पर केवल हंसराज ने परफॉर्मेंस दी। उसका संगीत लुधियाना में डीआईजी मेरे इलाहाबादी दोस्त फैयाज मो। फारूकी ने लिखा था। सूफी संगीत 'एक हकीकत है फसाना है कहानी कोईÓ दिलीप जी के जन्म दिन पर पसंद किया गया था।गुरु-शिष्य की परंपरा भी जरूरी हैवैसे तो म्यूजिक की डिग्री तो स्कूल में मिल जाती है। इससे जॉब तो मिल जाती है पर सुरों का ज्ञान नहीं होता। जो बात घराने की गुरु शिष्य परंपरा में हैं वह कही नहीं। मेरा पटियाला घराना है। मेरे गुरु कहते थे कि रियाज करें या न करें लेकिन सुर मिलते रहने चाहिए। सूफी का ही बना रहा एलबम

संगीत तो उन दरगाहों में पेश किया जाता है जहां पर सूफी गायक की महफिल जमती है। मैं मुम्बई केवल बुलाने पर ही जाता हूं। मैं अपने संगीत से खुश हूं। लोग भी मेरे संगीत से संतुष्ट है। संगीत किसी को बोर न करे तो ठीक है। मेरा नेक्स्ट एलबम कबीर, मीरा पर है जो लोगों को पसंद आएगा। मेरे आइडियल लता मंगेशकर और जगजीत सिंह हैं। मैंने जगजीत सिंह के साथ रिएलिटीज शो भी किया है।

Posted By: Inextlive