The Cabinet Committee on Economic Affairs CCEA has now partially decontrolled the Rs 80000 crore sugar industry.


चीनी उद्योग को उसकी मुंहमांगी मुराद मिल गई है. उस पर अब गवर्नमेंट का कंट्रोल नहीं रह गया है.  अब न मिलों से लेवी चीनी वसूली जाएगी और न ही ओपन मार्केट में चीनी बेचने पर कोई रोक-टोक होगी. राशन सिस्टम की सस्ती चीनी का बोझ सेंट्रल गवर्नमेंट खुद उठाएगी. इसका कुछ बोझ बाद में राज्यों को भी उठाना पड़ेगा. गवर्नमेंट के इस कदम से चीनी उद्योग को 3,000 करोड़ रुपये का सीधा फायदा होगा. मगर इसका खामियाजा उपभोक्ताओं को ज्यादा कीमत चुकाकर भुगतना पड़ेगा.


प्राइम मिनिस्टर मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में खाद्य मंत्रालय के मसौदे पर मुहर लग गई है. यह डिसीजन चालू पेराई सेशन अक्टूबर 2012 से ही लागू हो गया है. इस डिसीजन की जानकारी देते हुए केंद्रीय खाद्य राज्य मंत्री केवी थॉमस ने बताया कि मिलों से उनके कुल उत्पादन का 10 परसेंट लेवी के रूप में रियायती दर पर वसूला जाता था.

यह चीनी राशन प्रणाली के मार्फत गरीब उपभोक्ताओं को 13.50 रुपये प्रति किलो की दर से बेची जाती है. गवर्नमेंट ने लेवी सिस्टम को हटा लिया है. स्टेट अब अपनी खपत के हिसाब से खुले बाजार से चीनी 32 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदकर 13.50 रुपये की दर से राशन दुकानों से बेच सकेंगे. मूल्यों के बीच के इस अंतर की भरपाई सेंटर गवर्नमेंट करेगी. ओपन मार्केट से चीनी खरीदने का 32 रुपये प्रति किलो का यह मूल्य अगले दो सालों के लिए फिक्स है. इन दो सालों में केंद्र पर कुल 5300 करोड़ रुपये का बोझ आने का अनुमान है. बाजार में चीनी के मूल्य बढऩे पर आने वाला एक्सट्रा चार्ज स्टेट्स को वहन करना होगा. ओपन मार्केट में मिलों को चीनी बेचने पर लगी पाबंदी भी हटा ली गई है. अब वे मार्केट में डिमांड व सप्लाई के आधार पर अपने मनमाफिक चीनी बेच सकेंगे. चीनी उद्योग की यह बहुत पुरानी मांग थी, जिसे गवर्नमेंट ने मान लिया है. गन्ना क्षेत्र आरक्षण के प्रावधान को स्टेट गवर्नमेंट पर छोड़ दिया गया है.

Posted By: Garima Shukla