क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ: सदर अस्पताल सिटी की लाइफलाइन मानी जाती है, लेकिन रांची का सुपरस्पेशियलिटी सदर अस्पताल खुद बीमाड़ पड़ गया है. नतीजन, किसी भी घटना-दुर्घटना के बाद इलाज के लिए सबसे पहले इस अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों को भारी परेशानी हो रही है. न इमरजेंसी में बेहतर सुविधाएं मिल रही हैं और न इंडोर में. आईसीयू नहीं है, लेकिन हर दिन दर्जनों सिजेरियन डिलीवरी करवाई जा रही है. लिफ्ट खराब हैं, नतीजन प्रेग्नेंट महिलाएं सीढि़यां चढ़ने को मजबूर हैं. ऐसे में सवाल है कि आखिर राजधानी की इस लाइफलाइन में व्यवस्थाएं कब दुरुस्त होंगी?

बिना आईसीयू डेली दर्जनों ऑपरेशन

सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार, किसी भी हॉस्पिटल के संचालन के लिए आईसीयू होना जरूरी है. लेकिन इतने बड़े हॉस्पिटल में आजतक आईसीयू नहीं बनाया गया है. इसके बावजूद हर दिन दर्जनों सिजेरियन डिलीवरी कराई जा रही है. इस बीच अगर मरीज की स्थिति बिगड़ जाए तो तत्काल उसे लाइफ सपोर्ट भी नहीं मिल पाएगा. वहीं उसे दूसरे हॉस्पिटल रेफर करना होगा.

तीन शिफ्ट में मात्र 42 डॉक्टर

हॉस्पिटल में 42 डॉक्टरों की टीम है. इनमें से 70 परसेंट डॉक्टर महिला और पेडियाट्रिक विभाग में हैं. बाकी के डॉक्टर जेनरल, मेडिसीन, ईएनटी, आई, स्किन, आर्थो व इमरजेंसी में तैनात रहते र्ह. इनकी ड्यूटी सुबह से रात तक तीन शिफ्ट में होती है. वहीं ओपीडी में आने वाले डॉक्टर तीन बजे के बाद नजर नहीं आते. जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि डॉक्टर मरीजों का कितना ध्यान रख सकेंगे.

लिफ्ट खराब, सीढि़यों पर गर्भवती का फूल रहा दम

हॉस्पिटल के उद्घाटन के बाद लोगों को उम्मीद जगी थी कि यहां पर प्राइवेट हॉस्पिटलों जैसी सुविधाएं मिलेंगी. लेकिन दो साल बीत जाने के बाद भी आजतक बेसिक सुविधाएं भी मरीजों को नहीं मिल रही है. वहीं दो लिफ्ट भी आजतक मरीजों के लिए चालू नहीं हो पाई हैं. ऐसे में प्रेग्नेंट महिलाओं को भी सीढि़यां चढ़नी पड़ रही हैं. वहीं कई मरीजों को तो परिजन सहारा देकर फ्लोर पर ले जा रहे हैं.

ओपीडी में 700 मरीज, 3 बजे के बाद डॉक्टर गायब

हॉस्पिटल के ओपीडी में हर दिन 700 मरीज इलाज के लिए आते हैं. वहीं, ओपीडी में तीन बजे के बाद डॉक्टर गायब हो जाते हैं. वहीं 100 से अधिक पेशेंट्स सुपरस्पेशियलिटी से लेकर जेनरल वार्ड में हर वक्त एडमिट रहते हैं. लेकिन वहां भी मरीजों के लिए सुविधाएं नहीं हैं.

दवा वितरण केंद्र में मात्र 3 दर्जन दवाएं

डॉक्टर से दिखाने के बाद मरीजों को दवा प्रेस्क्राइब की जाती है. लेकिन उसमें लिखी आधी दवाएं भी मरीजों को नहीं मिल पातीं. चूंकि हॉस्पिटल के दवा वितरण केंद्र में तीन दर्जन दवाएं ही अवेलेबल हैं. ऐसे में केंद्र में आने वाले मरीजों को निराशा ही हाथ लग रही है.

नॉर्मल स्लाइन भी खरीद रहे मरीज

सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल में प्रसूता महिलाओं के इलाज में जरूरत पड़ने वाली दवाएं तो हैं, लेकिन उसमें भी कई दवाएं बाहर से मंगवानी पड़ रही है. वहीं जेनरल इंडोर में 34 दवाओं से काम चलाया जा रहा है. स्थिति यह है कि नार्मल स्लाइन भी मरीज खुद खरीदकर ला रहे हैं.

पानी के लिए परिजनों की दौड़

मरीज कोई भी हो, उसे पानी की जरूरत पड़ती ही है. लेकिन जेनरल वार्ड में पीने के पानी की व्यवस्था ही नहीं है. ऐसे में बूंद-बूंद पानी के लिए परिजनों को दौड़ लगानी पड़ रही है. वहीं सुपरस्पेशियलिटी में भी पानी नहीं आने पर मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ रही है.

वर्जन

हमलोग हॉस्पिटल की व्यवस्था सुधारने को लेकर काम कर रहे हैं. काफी चीजें पहले से चली आ रही हैं. जिसमें बदलाव करना होगा. छोटी-छोटी चीजें हैं, जिसकी वजह से सदर की छवि खराब होती है. इसे हम बेहतर बना लेंगे. दवाओं का आर्डर दिया गया है. मरीजों की सुविधाओं को भी दुरुस्त करने को कहा गया है.

डॉ. सव्यसाची मंडल, डीएस, सदर

Posted By: Prabhat Gopal Jha