केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यूआइडीएआइ द्वारा जारी किए जा रहे आधार कार्ड हासिल करना वैकल्पिक है. उसने सभी नागरिकों के पास इसका होना अनिवार्य नहीं किया है.


बहुत सारे कामों के लिए आधार अनिवार्यकुछ राज्य सरकारों ने वेतन, भविष्य निधि भुगतान, विवाह पंजीयन और संपत्ति के निबंधन जैसे बहुत सारे कामों के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने का निर्णय लिया है. सुप्रीम कोर्ट इनके खिलाफ दायर ढेर सारी याचिकाओं की एक साथ सुनवाई कर रहा है. शीर्ष अदालत ने केंद्र को कहा कि अवैध रूप से देश में रहने वालों को आधार कार्ड जारी नहीं करें क्योंकि इससे  उनके भारत में रहने को वैधता मिल जाएगी. व्यक्ति की सहमति अनिवार्य
केंद्र सरकार ने कहा है कि आधार कार्ड के लिए किसी व्यक्ति की सहमति अनिवार्य है. इसकी शुरुआत समाज के वंचित तबके के समावेशन को बढ़ावा देने और उनके लाभ के लिए किया गया है, जिनके पास औपचारिक तौर पर पहचान का कोई प्रमाण नहीं है. यूआइडीएआइ और केंद्र के वकीलों ने याचिकाकर्ताओं के दलीलों का जवाब दिया. इन्होंने कहा कि भारत में आधार कार्ड स्वैच्छिक है. न्यायमूर्ति बीएस चौहान और एसए बाबडे की पीठ के समक्ष थोड़ी देर की सुनवाई के दौरान बताया गया कि इस सचाई के बावजूद कि आधार कार्ड प्रकृति से स्वैच्छिक है, बांबे हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार की ओर से राज्य सरकार के एक आदेश का अनुसरण करते हुए एक आदेश जारी किया गया है कि यह न्यायाधीशों और कर्मचारियों के वेतन भुगतान के लिए जरूरी होगा.बुनियादी अधिकारों का उल्लंघनवरिष्ठ अधिवक्ता अनिल दीवान ने कर्नाटक हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश केएस पुट्टास्वामी के लिए बहस करते हुए कहा ‘यह योजना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 21 (जीवन और स्वाधीनता का अधिकार) में दिए गए बुनियादी अधिकारों का पूरी तरह से उल्लंघन है. सरकार दावा करती है कि यह योजना स्वैच्छिक है लेकिन ऐसा नहीं है. महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में कहा है कि यदि आधार कार्ड नहीं रहने पर किसी भी शादी का पंजीयन नहीं होगा. जस्टिस पुट्टास्वामी ने भी अपनी लोकहित याचिका में इस योजना के लागू करने पर रोक लगाने की मांग की है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh