Meerut : नन्ही सी जान को नौ माह तक अपने पेट में पालना और फिर उसे किसी और के हवाले कर देना. आसान तो नही. फिर भी कुछ महिलाएं ऐसा कर रही हैं. इसमें अधिकांश ऐसी हैं जिनके सामने अपने परिवार का पेट पाल पाना बड़ी चुनौती है.


कौन क्या कहता है क्या सुनता है इस बात से उन्हें कोई सरोकार नहीं। बस इतना ही काफी है कि, उनके प्रयास से दूसरे के आंगन में खुशियों की किलकारी गूंजती है और इसके एवज में मिले रुपए से जरूरत पूरी हो जाती है।सरोगेट मदरफिल्म चोरी-चोरी चुपके-चुपके तो आपको याद ही होगी। प्रीति जिंटा ने इसमें एक सरोगेट मदर का रोल प्ले किया था। ऐसी ही सरोगेट मदर हमारी सिटी में भी हैं, जो किसी परिवार की ख्वाहिश पूरी करती हैं और बदले में कुछ पैसे की दरकार उन्हें होती है। ऐसी ही एक सरोगेट मदर तमन्ना (बदला हुआ नाम) से आई नेक्स्ट की बातचीत हुई, जिसमें हमने जाना कि कैसे शहर में ये एक कारोबार की शक्ल में बढ़ रहा हैजिंदगी बसर करने के लिए


तमन्ना की एज करीब 30 साल हैं। उनके चार बच्चे हैं। वह अनपढ़ है । तीन साल पहले एक हादसे में उनके पति की मौत हो गई। जिसके बाद बच्चों की परवरिश तमन्ना के लिए बड़ी चुनौती बन गई। इस बीच महिला को किराए की कोख के बारे में पता चला। पहली बार तमन्ना ने भारी मन से इस काम के लिए हां की, जिसके एवज में उसे काफी पैसा मिला। तमन्ना इस काम को अपना प्रोफेशन बनाने की पूरी तैयारी कर चुकी है। वो कहती है अगर एक गुमनाम जिंदगी मुझे और मेरे बच्चों को पैसा दिला सकती है तो मुझे ये मंजूर है। आखिर क्या है सरोगेसीसरोगेट मदर की अवधारणा के तहत एक औरत किसी दूसरे कपल के बच्चे को अपनी कोख में पालती है और जन्म देती है। सरोगेसी प्रक्रिया की दो कैटेगरी होती हैं। जस्टेशनल और जेनेटिक सरोगसी। जस्टेशनल सरोगेसी में हसबैंड के स्पर्म और वाइफ के एग लेकर लैबोरेटरी में आईवीएफ तकनीक की मदद से भ्र्रूण विकसित किया जाता है। इसके बाद इस भ्रूण को सरोगेट मदर के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। जेनेटिक सरोगेसी तब एडॉप्ट की जाती है जब वाइफ अंडे उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होती है, तो हसबैंड के स्पर्म को ही सरोगेट मदर के गर्भ में इंजेक्ट कर दिया जाता है। दो तरह की सरोगेट मदर

एक समय वो भी था जब इंडियन सोसाइटी में किराए की कोख का लेन-देन गुप-चुप तरीके से चलता था। काफी हद तक इसके पीछे मदद की भावना रहती थी, लेकिन अब यह बिजनेस का रूप ले चुका है। ऐसे में कमर्शियल और एल्क्रस्टीक सरोगेसी दो ऑप्शंस मौजूद हैं। कमर्शियल सरोगेसी में किराए की कोख उपलब्ध करवाने वाली महिला के साथ डेढ़ साल से लेकर दो साल का कांट्रेक्ट होता है। ये महिला शुरू से अंत तक परिवार के साथ ही रहती है। ऐसे में उसका सारा खर्च कपल को उठाना पड़ता है। सोर्स के मुताबिक इसका खर्च 2 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक जाता है। एलक्रस्टीक कैटेगरी में सरोगेट मदर जितना खर्च एक्चुअल में होता है उतना ही चार्ज करती है। सरोगेट मदर बनने के लिए फिजिकली फिट होना जरूरी है। डॉक्टर्स एक बार मां बन चुकी महिलाओं को ही सरोगेसी के लिए प्रिफर करते हैं। इसलिए बढ़ रही सरोगेसी यूं तो सरोगेसी मेडिकली अनफिट होने की वजह से नि:संतान कपल के लिए वरदान से कम नहीं, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू ये भी है कि आजकल की हाईटेक और प्रोफेशनल लाइफस्टाइल के चलते लेडीज पे्रग्नेंसी का लांग ड्यूरेशन सस्टेन नहीं करना चाहती हैं। ऐसे में सरोगेसी सटीक ऑप्शन है। बिना कॉम्प्लीकेशन के परिवार बढ़ जाता है। इसलिए व्यापार का रूप ले चुकी सरोगेसी अब ट्रेंड बन गई है। इस संबंध में नहीं है कानून

आपको जानकर हैरानी होगी कि इंडिया में सरोगसी के संबंध में कोई कानून नहीं है। इंडिया में किराए की कोख के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं। यही कारण है कि फॉरनर कपल सरोगेसी के लिए इंडिया का रुख करते हैं। हालांकि अब कोलकाता, दिल्ली जैसे शहर सरोगेसी के लिए जाने जाते हैं, मगर अब मेरठ में भी इसकी रिक्वायरमेंट बढ़ रही है। ऑफ दि रिकॉर्ड बात करते हुए टेस्टट्यूब बेबी सेंटर चला रही डॉक्टर ने बताया कि सरोगेसी के लिए हर मंथ अमूमन 20 से ज्यादा पेशेंट उनसे संपर्क करते हैं। "ये बात बिल्कुल ठीक है कि सरोगेसी का ट्रेंड शहर में बढ़ा है। अब इस सिलसिले में 10 परसेंट क्वेरीज हमारे पास आती हैं। जो कपल पूरी तरह से अनफिट हैं उनके लिए ये वरदान से कम नहीं है." -डॉ। अनिरूद्ध सिंह, सिंह टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर

Posted By: Inextlive