नेपाल में भारतीय कंपनी आईटीसी लिमिटेड ऑफ इंडिया की सब्सिडियरी कंपनी सूर्या नेपाल ने कंपनी का कामकाज बंद करने की घोषणा की है.

सूर्या नेपाल ने मज़दूरों के विद्रोह के कारण ये फ़ैसला किया है। नेपाल के बिराटनगर में स्थित कंपनी कपड़े बनाने का काम करती है लेकिन मज़दूरों की हड़ताल के कारण कंपनी एक्सपोर्ट के अपने ऑर्डरों को पूरा नहीं कर पा रही है।

कंपनी पिछले दो महीने से बंद है क्योंकि मज़दूर अपनी हड़ताल के दौरान की तनख्वाह की मांग कर रहे हैं। कुछ समय पहले प्रबंधन और मज़दूरों के बीच हुई झड़प के दौरान मज़दूरों के एक गुट ने प्रबंधन और प्रशासनिक स्टाफ को बंद कर दिया था जिसके बाद पुलिस को हस्तक्षेप करना पडा था।

सूर्या नेपाल के उपाध्यक्ष रबि केसी का कहना था, ‘‘ इस घटना के बाद हमने बातचीत करने की कोशिश की औऱ मामले को सुलझाने की लेकिन कुछ नहीं हुआ। दस दिन पहले हमारे आयातकों ने ऑर्डर कैंसल कर दिया.हमारे पास कंपनी को बंद करने के अलावा कोई और चारा नहीं रहा.’’

इस कपड़ा फैक्ट्री को लगाने में 40 करोड़ रुपए रुपए का भारतीय निवेश था और इसमें होने वाले उत्पादन का 90 प्रतिशत हिस्सा भारत और यूरोप जाता था। कंपनी के 600 से अधिक कर्मचारियों का 95 प्रतिशत हिस्सा महिलाएं थीं। इससे पहले डाबर नेपाल और यूनीलीवर नेपाल को भी मज़दूरों की हड़ताल का सामना करना पडा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि सूर्या नेपाल की घटना दिखाती है कि नेपाल में मज़दूरों की हड़तालों से औद्योगिक स्तर पर कितना नुकसान हो रहा है। नेपाल के निजी उद्योगों की संस्था एफएनसीसीआई के वरिष्ठ उपाध्यक्ष भास्कर राज राजकर्नीकर कहते हैं कि देश में मज़दूरों की हड़ताल पिछले तीन वर्षों में भयंकर रुप ले चुकी है और 80 प्रतिशत वो फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं जिनमें उत्पादन का काम होता था।

आर्थिक जानकारों का कहना है कि ऐसी घटनाओं से विदेशी ही नहीं देश के निवेशक भी पूंजी लगाने से कतराने लगे हैं। हालांकि ट्रेड यूनियनें ये मानने को तैयार नहीं है कि ग़लती मज़दूरों की है। ट्रेड यूनियनों का कहना है कि अधिकतर मामलों में प्रबंधन की ग़लती होती है लेकिन मज़दूर कभी कभी ही अति करते हैं।

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल यूएमल से जुड़े नेपाल ट्रेन यूनियन फेडरेशन के नेता रमेश बादल कहते हैं, ‘‘ आप देखिए कि किस तरह उद्योगपति बात बात में सुप्रीम कोर्ट का रुख कर रहे हैं और न्यूनतम वेतन की बढ़ोतरी के मामले पर स्टे आर्डर ले आते हैं.इसी से आपको अंदाज़ा हो जाएगा.’’

विशेषज्ञों का कहना है कि मज़दूर संघर्ष ही नहीं बल्कि राजनीतिक अस्थिरता और ऊर्जा संकट के कारण भी अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब हो रही है।

Posted By: Inextlive