राहुल गाँधी अपनी माँ सोनिया गाँधी के साथ अमरीका के एक अस्पताल में कुछ दिन बिताने के बाद भारत लौट आए हैं.


उन्होंनें प्रधानमंत्री और वरिष्ठ पार्टी नेताओं को सोनिया के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ज़रूर दी है लेकिन भारतवासियों को अभी तक पता नहीं है कि उनको दरअसल बीमारी क्या है। उनकी पार्टी की तरफ़ से महज़ एक वकतव्य जारी किया गया था कि हाल ही में उनकी बीमारी के बारे में पता चला है जिसके लिए उनकी सर्जरी होनी ज़रूरी है। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उनकी निजता का सम्मान किया जाना चाहिए।


भारत के संचार माध्यमों ने मोटे तौर पर उनके इस अनुरोध का लिहाज़ भी किया है। लेकिन सोनिया गाँधी भारत की सबसे प्रभावी राजनीतिज्ञ हैं और एक ऐसी पार्टी की नेता हैं जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को चला रही है। उनके इलाज और उसमें बरती जा रही गोपनीयता से सवाल उठ खड़े हुए हैं कि एक मशहूर हस्ती की निजता को किस हद तक सार्वजनिक न किया जाए।

भारत में कई बार ऐसा हुआ है कि एक बड़ी शख़्सियत के अस्पताल में भर्ती होने के बाद ख़ुद अस्पताल ने उनके स्वास्थ्य के हालात पर समय-समय पर मेडिकल बुलेटिन जारी किए हैं याद कीजिए जब तीन दशक पहले सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को पेट में चोट लग जाने के बाद मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उनके स्वास्थ्य के एक एक मिनट की ख़बर अख़बारों और टेलीविज़न में दी जाती थी।रोनल्ड रीगन ने अपनी बीमारी का ऐलान ख़ुद कियारोनल्ड रीगन ने अमरीका के राष्ट्रपति का पद छोड़ने के छह साल बाद अमरीकावासियों को एक पत्र लिख कर यह घोषणा की थी कि उन्हें अलज़ाइमर बीमारी है। इसके ठीक उलट पूर्व सोवियत संघ में राजनीतिक नेताओं की बीमारी को इस लिए छिपा कर रखा जाता था कि अगर यह जगज़ाहिर हो गई तो इससे केंद्रीय सत्ता की ताक़त कमज़ोर होगी।1953 से 1964 तक सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता रहे निकिता ख़ुर्शचेव का जब 1971 में निधन हुआ तो इसकी घोषणा तुरंत इसलिए नहीं की गई कि कहीं इससे लोगों को तत्कालीन सत्ता के ख़िलाफ़ खड़े होने का बहाना न मिल जाए। इसी तरह बाद में सर्वोच्च नेता ब्रेझनेव के बिगड़ते स्वास्थ्य के बारे में न सिर्फ़ सोवियत जनता बल्कि पूरी दुनिया को भी अँधेरे में रखा गया।

अमरीका में भी बहुत कम लोगों को पता था कि उनके लोकप्रिय राष्ट्रपति जॉन एफ़ केनेडी को पीठ के दर्द की शिकायत थी। इस बारे में उस समय के मीडिया ने कभी कोई ख़बर नहीं दी और इसके बारे में लोगों को उनकी हत्या के कई सालों बाद पता चला। आजकल हर अमरीकी राष्ट्रपति का हर साल नियम से मेडिकल चेक अप किया जाता है और उसकी रिपोर्ट बाक़ायदा सार्वजनिक की जाती है। अपने नेताओं की बीमारी के बारे में चर्चा करने से ब्रिटिश मीडिया भी बचता रहा है। इस बारे में बहुत कम लिखा गया है कि पूर्व प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर 2002 से लगातार अपनी याददाश्त खोती जा रही हैं। लेकिन दो साल पहले उनकी पुत्री केरोल ने ही घोषणा की कि उनकी माँ को डिमेन्शिया है।चावेज़ की बीमारीकभी कभी बीमारी को छिपाने से अफवाहों को जन्म मिलता है। वेनेजुएला के राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज़ की बीमारी को जब छिपाया गया, तो उनकी ग़ैरमौजूदगी के बारे में इस क़दर अफवाहें फैलीं कि उनको सरकारी टेलीविज़न पर यह स्वीकार करना पड़ा कि वह कैंसर के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ रहे हैं।
कई बार बीमारी छिपाने ने इतिहास को भी बदलने में भी मदद की है। फ़्रीडम ऐट मिडनाइट के लेखक डोमिनिक लापियरे और लैरी कोलिंस की मानी जाए तो अगर लोगों को पता होता कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को टीबी की गंभीर बीमारी है तो भारतीय उपमहाद्वीप का इतिहास कुछ और ही होता। पाकिस्तान के आज़ाद होने के 13 महीनों के अंदर ही उनकी इस बीमारी से मौत हो गई थी।

Posted By: Inextlive