Bareilly: होली आने से पहले ही हेल्थ की वाट लगाने के लिए सिंथेटिक मावा बाजार में उतरने लगा है। रंगों का त्यौहार होने के कारण घरों में पकवान बनने की तैयारियां पूरे जोर-शोर पर हैं. इस मौके पर गुझिया व अधिकांश स्वीट्स में मावे का प्रयोग किया जाता है. मावे की इसी डिमांड को पूरा करने के लिए मिलावटखोर सक्रिय हो जाते हैं और दूध के मावे की जगह लोगों को सिंथेटिक मावा स्वीट प्वाइजन दे देते हैं. हालांकि फूड सेफ्टी एंड ड्रग अथॉरिटी एफएसडीए ने इसे रोकने के लिए प्लानिंग कर रखी है और अब तक कई सैंपल भी लिए हैं. वैसे अधिकारियों तो दावा कर रहे हैं कि मार्केट में मिलावटी सामान नहीं बिकने दिया जाएगा.


कैसे बनता है synthetic मावानकली मावा तैयार करने के लिए पिसे आलू, शकरकंद, आरारोट और रिफाइंड ऑयल में 20 परसेंट असली मावा मिक्स किया जाता है। इसके साथ ही क्रीम निकाले गए दूध में भी इसे मिलाया जाता है। जिससे कि यह देखने में असली मावे जैसा लगता है। जब यह नकली मावा दूर-दराज से तैयार करके बाजार में लाया जाता है तो इसे असली मावे में मिक्स करने के बाद ही देशी घी की केमिकल फ्रेगरेंस डालकर पिंडी बना दी जाती है। इन्हें चिकना दिखाने के लिए रिफाइंड ऑयल लगाया जाता है और सफेदी के लिए आरारोट लगाया जाता है। इतना ही नहीं इसका टच स्पंज की तरह हो, इसके लिए खाने वाला सोडा भी डाला जाता है।Double हो जाता है profit
मार्केट में सामान्य तौर पर नकली मावा ही उपलब्ध रहता है क्योंकि डिमांड के एकॉर्डिंग दूध का मावा उपलब्ध नहीं हो पाता और नहीं लोग पहचान ही कर पाते हैं। इसकी कीमत 80 रुपये से लेकर 220 रुपये प्रति किलो तक है। इस मावे की एक पिंडी की थोक रेट 50-120 रुपये तक है। इसके हिसाब से एक पिंडी पर मैक्सिमम 100 रुपये तक का मुनाफा कमाया जा रहा है। वहीं एक किलो शुद्ध दूध की कीमत 40 रुपये है। ऐसे में 1 किलो मावा तैयार करने के लिए 5 लीटर दूध की जरूरत होती है। ऐसे में शुद्ध मावा 250-300 रुपये तक खर्च करके भी मुश्किल से ही मिल रहा है। इसमें मैक्सिमम मुनाफा 50 रुपये का ही हो पाता है।Outskirts से कारोबारसिटी के अंदर कई बार नकली मावा के कारोबार पर लगाम लगाने के लिए छापेमारी होने के बाद यह कारोबार सिटी आउटस्कट्र्स से धड़ल्ले से चलाया जा रहा है। सिटी में मावे सबसे बड़ी मंडी कुतुबखाना और दूसरी शहामतगंज में है। आंवला, भमौरा, देवचरा, सरदारनगर, फतेहगंज पश्चिमी, मीरगंज, नरियावल से इस तरह के मावे की सप्लाई की जाती है। सुबह 4 बजे से ही कवायद शुरू की जाती है। इसके लिए दूर-दराज से आने वाले सप्लायर्स चौपुला से आकर कुतुबखाना मंडी में पहुंचते हैं, इस मंडी में पहले से ही ठहरने की पूरी व्यवस्था रहती है। यहां सुबह 6 बजे तक ही यह काम पूरा हो जाता है।तो कहां से आ रहा मावा


सिटी में दूध की खपत की बात करें तो रोजमर्रा में दूध की जरूरत 80 हजार लीटर की है, जो बमुश्किल ही पूरी हो पाती है। इसमें 45 हजार लीटर की खपत शहर की डेयरियों से हो जाती है, और 20 हजार लीटर दूध रूरल एरिया से आता है। पर जब दूध की सप्लाई ही यहां पूरी नहीं हो पाती है, तो सबसे बड़ा सवाल यह है कि दूध की सप्लाई ही पूरी नहीं है तो मावा कहां से आ रहा है।इनमें भी हो सकता है अडल्ट्रेशनहोली के मौके पर अडल्ट्रेशन की गिरफ्त में मावा ही नहीं, वरन नमकीन, एडिबिल ऑयल्स, बेसन आदि भी आते हैं। पैकिंग में होने पर इनकी पहचान करना आसान नहीं होता है, पर बेसन में मटर या मक्का का आटा मिलाने पर यह ज्यादा हार्ड हो जाता है। ऑयल्स को स्मेल के जरिए पहचाना जा सकता है। अगर ऑयल में चिकनापन कम है तो यह मिलावटी हो सकता है।रात में बनाते हैं मावानकली मावा तैयार करने के लिए सिटी में चुनिंदा स्थानों पर ऐसी दुकानें बनाईं हैं, जो शाम ढलने के बाद ही खुलती हैं, और सुबह बाजार खुलने से पहले ही बंद हो जाती हैं। मंडी के आस-पास रहने वाले सूत्रों के मुताबिक रात में खुलने वाली इन स्वीट शॉप्स में मावा तैयार करने का काम किया जाता है। ये शॉप्स सिटी के कोहड़ापीर, गुलाबनगर, साहूकारा, कुंवरपुर, शाहबाद, बिहारीपुर में खुलेआम चल रही हैं।मावा खरीदें तो रहें alert

अगर आप मावा खरीदने जा रहे हैं तो कुछ बातों का ख्याल रखें। ऐसे में आप सिथेंटिक मावा खरीदने से बच जाएंगे। -सिंथेटिक मावा पिंडी के रूप में बना होता है, जबकि शुद्ध मावा कभी पिंडी के रूप में नहीं हो सकता है।-शुद्ध मावा दानेदार होता है और उसमें घी का चिकनापन भी होता है। जबकि सिंथेटिक मावा हाथ में लेते ही चूर-चूर होने लगता है।-सिंथेटिक मावे की पिंडी सफेद रंग की होती है और ज्यादा आकर्षक दिखती है, वहीं शुद्ध मावा हल्के बादामी रंग का होता है। और वह प्लेट में ही रखा जा सकता है।-शुद्ध मावे को कड़ाही में गर्म करने पर उसमें घी होने की वजह से वह चिपकता नहीं हैं, वहीं सिंथेटिक मावा कड़ाही में चिपकता रहता है।मिलावट से हो सकती है तकलीफ
फिजीशियन डॉ। जेके भाटिया के मुताबिक को भी मिलावटी खाद्य पदार्थ खाने से सबसे पहले इसका असर इंटेस्टाइन पर पड़ता है। ऐसे खाद्य पदार्थ का सेवन करने पर बार-बार वॉमिटिंग सेंशेसन होता है और पेट में अल्सर बन जाते हैं। जब बार-बार अडल्ट्रेड फूड पेट में जाता है तो इसका कुछ पार्ट ब्लड में भी मिल जाता है। इसके बाद डायबिटीज के पेशेंट्स को डायबिटीज बढ़ सकती है, हाइपरटेंशन इन्क्रीज हो सकता है। वहीं कई केसेज में अडल्ट्रेड फूड स्किन एलर्जी की वजह भी बन जाता है। Report by: nidhi.gupta@inext.co.in

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