- फ्रीगंज की हाउसवाइफ तनुजा ने चलाई 120 किलोमीटर साइकिल

- गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए लिया रैली में हिस्सा

AGRA। हौंसलों में उड़ान होनी चाहिए, कोई भी मंजिल दूर नहीं होती, कुछ इसी तरह के जज्बे के साथ एक हाउसवाइफ गृहस्थी की तमाम जिम्मेदारियों से थोड़ा ब्रेक लेकर निकली और अपने साथ ताउम्र की यादों का पिटारा लेकर लौटी। क्ख्0 किलोमीटर साइकिल चलाई और गरीब बच्चों के लिए धन जुटाने की पहल में अपना सहयोग दिया।

फ्7 साल की उम्र में जी लिए सपने

फ्रीगंज में रहने वाली तनुजा मांगलिक बहुत ही शांति से अपना जीवन जी रही थीं। अपने बच्चों और पति के साथ जिंदगी के हर रंग का मजा ले रही थीं। बच्चों को संस्कार दे रही थीं। पति का उनके बिजनेस में साथ दे रही थीं। लेकिन दिल में कहीं एक कसक थी। उस कसक को, अपने सपनों को पूरा करने की ललक उन्हें पहाड़ों में ले गई। तनुजा के जीजा जी के माध्यम से वो आरोही संस्था के संपर्क में आईं और बन गई साइकिल रैली का हिस्सा।

क्या करती है आरोह संस्था

आरोही एक एनजीओ है। इस एनजीओ का मकसद ग्रामीण हिमालय कम्यूनिटी को उच्च स्तरीय चिकित्सा सुविधाएं, महिला सशक्तिकरण, बच्चों की शिक्षा, नेचुरल रिसोर्सेज को मैनेज करना है। इसके लिए संस्था पिछले कई सालों से अलग-अलग गतिविधियां करती रही है। इन्हीं गतिविधियों की एक कड़ी है कुमाऊं हिमालय राइड।

क्भ्फ् किलोमीटर की रही साइकिल रैली

यह साइकिल रैली दो दिन की थी। क्भ्फ् किलोमीटर का सफर दो दिन में पूरा करना था। इस सफर की शुरुआत अल्मोड़ा से हुई। इस रैली में पूरे इंडिया से ख्क् राइडर्स थे। जिनमें से दो विदेशी भी थे। इन ख्क् राइडर्स में पांच या छह ही प्रोफेशनल्स थे। बाकी के सभी राइडर्स ऐसे थे, जिन्होंने स्कूल-कॉलेज के समय में ही साइकिल चलाई थी।

यादगार रहेंगे अनुभव

तनुजा ने बताया कि जैसे ही रैली शुरू हुई वो लोग दो-तीन किलोमीटर आगे बढ़े कि बारिश शुरु हो गई। लेकिन राइडर्स ने रुकने की कोशिश नहीं की। सभी राइडर्स म्0 किलोमीटर तक बारिश में ही साइकिल चलाकर कोसी, सोमेश्वर होते हुए कौसानी पहुंचे। इस दूरी को तय करने में तनुजा को साढ़े पांच घंटे का समय लगा। दूसरे दिन की शुरूआत सुबह 7.फ्0 बजे हुई। दो किलोमीटर साइकिल चलाने के बाद तनुजा गिर गईं और उन्हें काफी चोट लगी, लेकिन बिना किसी ब्रेक के वो लगातार आगे बढ़ती रहीं। कौसानी से ब्0 किलोमीटर साइकिल चलाते हुए बागेश्वर पहुंची। इसके बाद क्ख् किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई थी। यहां सभी को बिनसार पहुंचना था।

प्रकृति ने मोह लिया मन

पहली बार इतना लंबा सफर साइकिल से तय करने की थकान को प्रकृति के रंगों ने चुरा लिया। चारों तरफ बर्फ से ढके पहाड़, देवदार के पेड़, हरी भरी छोटी पहाडि़यां। गोमती नदी का पानी देख सभी खुश थे।

पति ने दिया पूरा साथ

तनुजा के इस यादगार पल को उनकी यादों में बसाने के लिए उनके पति रितेश ने भी उनका पूरा साथ दिया। रितेश दोनों बच्चों के साथ पूरा रास्ता अपनी कार में उनके साथ चलते रहे। उनका हौसला बढ़ाते रहे। तनुजा के बच्चों यानि बेटी वरीजा और बेटे आदित्य को भी मम्मी की इस उपलब्धि पर नाज है। दोनों अपनी मम्मी को साइकिल चलाते देख उन्हें पूरे रास्ते बकअप करते रहे।

लेना चाहिए ऐसा ब्रेक

ढर्रे पर चल रही जिंदगी में अगर कुछ ऐसा करने का मौका मिले तो उसे खोना नहीं चाहिए। यह कहते समय तनुजा के चेहरे पर जो चमक थी। वो उनकी उस सपने के पूरा होने की थी। जिस पर सिर्फ उनका अधिकार है। वे कहती हैं कि हाउसवाइफ बहुत काम करती हैं। लेकिन इस तरह के काम करने से उनका आत्मविश्वास बहुत मजबूत हो जाता है। मेरे इस काम में तो एक नोबेल कारण भी था।

मुझे नाज है अपनी पत्नी पर। शादी के बाद से ही तनुजा ने कभी मेरे परिवार को किसी भी तरह की दिक्कत नहीं होने दी। इसलिए उसके इस सपने को पूरा करने में मैंने उसका पूरा साथ दिया।

- रितेश, तनुजा के पति

मैं भी बड़ा होकर अपनी मम्मी की तरह हिल्स पर साइकिल चलाऊंगा। बहुत मजा आएगा।

- आदित्य, तनुजा का बेटा

Posted By: Inextlive