छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र: टाटा स्टील की ओर से आयोजित 'संवाद-2018' का सोमवार को समापन हो गया। समापन समारोह में शहर भर से गोपाल मैदान में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। जनजातीय समुदाय की जीवनशैली व संस्कृति से रूबरू होने का यह समारोह आदिवासी नृत्य संगीत को ग्लोबल पहुंच देने का अहम मंच साबित हुआ।

सोमवार की शाम को 23 राज्यों के 130 जनजातीय समुदाय और नौ देशों के कलाकारों ने फैशन शो प्रस्तुत किया। पारंपरिक परिधान में कैटवॉक कर गोपाल मैदान में जनजातीय कलाकारों ने सबका मन मोह लिया। इस दौरान झारखंड के हो, उरांव, संथाल, मुंडा, अरुणाचल प्रदेश के वांचो, असम के राभा, कार्बी, बोडो व बुद्धा समुदाय, हिमाचल के किन्नूर, जम्मू एंड काश्मीर से बोटा, कर्नाटक के कुदिया व सोलिका, मनीपुर के थांगुखुल, मेघालय से खासी व ओ, महाराष्ट्र से भील, मणिपुर से मरम, नागालैंड से कोनयक, जेमा नागा, सुमी, ओडिसा से धुर्वा व त्रिपुरा के नोटिया, रेनग व जमातिया समुदाय के कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी।

सरकार पर लगाए आरोप

सोमवार को संवाद के अलग-अलग सत्रों में विविध कार्यक्रम हुए। सोनारी स्थित ट्राइबल कल्चर सेंटर में संघर्ष व उसके समाधान के उपाय विषय पर परिचर्चा हुई। इसमें असम के बोडो समुदाय के युवकों ने सरकार पर आरोप लगाए कि बोडो समुदाय ने अलग राज्य मांगा तो सरकार ने उन्हें आतंकवादी घोषित कर दिया। यहां अब भी ऊंची जाति के लोगों के साथ हम न तो बैठ सकते हैं और न ही उनके कुएं से पानी पी सकते हैं। आवाज उठाई तो पुलिस व सेना ने हम पर अत्याचार किए। आदिवासी दिवस के दिन उनके गांव की महिलाओं के साथ बलात्कार किए गए।

बदल दी त्रिपुरा की तस्वीर

त्रिपुरा से आए जमातिया समुदाय के विचित्रो मोहन का कहना है कि जमातिया परंपरागत कानून ने गांव की व्यवस्था को बदल दिया है। 16 सितंबर 2017 में सरकार ने समुदाय की व्यवस्था को मान्यता दी। हमारे लिए अगल जमातिया परंपरागत कानून बना। इसके आधार पर ही हर विवाद का निष्पक्ष तरीके से हल किया जाता है। सरकार से समुदाय को यह अधिकार मिला है कि हम अपने गांव में जन्मे बच्चे या किसी की मृत्यु पर प्रमाण पत्र जारी कर सकते हैं।

परंपरा-संस्कृति से समाप्त हुआ युद्ध

अफ्रीका के सूडान से आए चार समुदाय के लोगों का कहना है कि जीविकापार्जन के लिए उनका अरब समुदाय के साथ 30 वर्षो तक संघर्ष हुआ। सरकार ने भी आर्मी की मदद से इसे रोकने के बजाए दोनो समुदाय को लड़वाया। इसमें एक लाख लोग मारे गए। लेकिन जब शांति की पहल पर कुछ लोगों ने पहल की और वे अपनी परंपरा और संस्कृति की तरह वापस चलने का आह्वान किया तो युद्ध बंद हो गया। इसलिए हमें अपनी परंपरा और संस्कृति को बचाकर रखने की जरुरत है।

लघु नाटिका की प्रस्तुति

परिचर्चा के दौरान न्यूजीलैंड, अफ्रीका, इंडोनेशिया, श्रीलंका सहित अन्य देशों से आए कलाकारों ने मूक लघु नाटिका का मंचन किया। इसमें एकता की ताकत को दर्शाया गया। वहीं, कलाकारों द्वारा सामूहिक रूप से एक गीत भी प्रस्तुत किया जिसका विषय था, हम दुनिया में बदलाव देखना चाहते हैं।

दूसरों की बातों को दें तरजीह : पिट्रिशा

परिचर्चा के अंत में पद्मश्री पिट्रिशा मुखीम ने कहा कि जीवन में भी विवाद खत्म नहीं होगा। इसलिए जीवन में हमेंशा संघर्ष करते रहें। किसी भी विवाद को सुलझाना है तो कोशिश करें कि सामने वाले की बातों को तरजीह दें। उसे ध्यान पूर्वक सुने और उनकी भावनाओं को समझें। विवाद सुलझ जाएगा।

हिमाचल प्रदेश की संस्कृति की पहचान है शेणी नृत्य

भारत के सबसे ठंड राज्य वालों में से एक है हिमाचल प्रदेश। ठंड के समय छह-छह माह तक यहां का संपर्क देश-दुनिया से टूट जाता है। तब राज्य के लाहौल, स्पीति स्थानों पर रहने वालों के मनोरंजन का एकमात्र साधन होता है शेणी नृत्य। गोपाल मैदान में लायुल सुर संगम ग्रुप ने पारंपरिक वेश-भूषा और वाद्य यंत्रों द्वारा शेणी नृत्य से समां बांधा।

मुलुकुरुम्बा ने की प्रकृति की पूजा

नीलगिरी की पहाडि़यों में रहने वाले मुलुकुरुम्बा समुदाय के लोगों ने संवाद की अंतिम शाम सबसे मनमोहन नृत्य प्रस्तुत किया। इस नृत्य के द्वारा समुदाय के लोगों ने अपने पूर्वज और प्रकृति के पूजा को पारंपरिक नृत्य व संगीत के माध्यम से दर्शाया।

Posted By: Inextlive