जिनसे मिली डांट, वही आते हैं याद-दीपिका
वैसे तो ज़्यादातर लोग उन टीचर्स को याद रखते हैं जो उन्हें सबसे ज़्यादा पसंद थीं या जिनके वो ‘फ़ेवरिट’ थे। लेकिन अभिनेत्री दीपिका पडुकोण से जब पूछा कि वो किन टीचर्स को आज भी याद करती हैं, उनका कहना था, “जो टीचर मुझे सबसे ज़्यादा डांटते थे मैं उन्हीं को सबसे ज़्यादा याद करती हूं, जैसे मेरे हिंदी और संगीत के टीचर.”
अपने स्कूली दिनों को याद करते हुए संजीव ने बताया, “मैं जब नवीं कक्षा में था तो मैंने बायोलॉजी क्लास में ‘इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप’ का डायग्राम बनाया था जो शायद सारी क्लास में सबसे अच्छा था। मैं बहुत उम्मीद के साथ टीचर के पास लेकर गया। लेकिन उन्होंने लाल पेन से उस पर लिख दिया, ‘लेबल इट’ क्योंकि मैंने उत्साह में उसे लेबल नहीं किया था। मेरे हिसाब से ये लिख कर उन्होंने उस डायग्राम को पूरा-का-पूरा ख़राब कर दिया। उस बात से मेरा सारा उत्साह ख़त्म हो गया और मुझे उस विषय से नफ़रत हो गई। अगर वो किस्सा नहीं होता तो शायद आज आप डॉक्टर संजीव कपूर से बात कर रहे होते.”
संजीव मानते हैं कि इंसान के माता-पिता ही उसके सबसे बढ़िया गुरु होते हैं क्योंकि वो आपको ज़िंदगी के बारे में सीख देते हैं। संजीव कहते हैं, “माता-पिता आपको कभी भी ग़लत सीख नहीं देंगे। उनसे जो सीखने को मिलता है वो बेशक़ीमती है क्योंकि उसके लिए आपको स्कूल नहीं जाना पड़ता, सुबह जल्दी उठकर तैयार नहीं पड़ता, कोई इम्तिहान नहीं देना पड़ता। इसलिए उनकी जितनी भी इज़्ज़त की जाए कम है.”संजीव कपूर की ही तरह गायक कैलाश खेर भी अपने माता-पिता को अपना पहला गुरु मानते हैं। कैलाश का कहना था, “मैं अपना पहला गुरु, अपने माता-पिता, को मानता हूं, ख़ासकर अपने पिता को। मैं बचपन में उनके साथ यात्रा करता था। पिताजी शौकिया तौर पर गाते भी थे तो मैं उनका सत्संग सुनता था। प्रथम संस्कार वहीं से आए हैं। उसके बाद आए मेरे पढ़ाई और संगीत के गुरु। मैं जो भी हूं और जो भी काम करता हूं, वो हर बात मेरे गुरुओं की ही देन है। मेरा जो भी गाना है, मेरे गुरुओं की ही कृपा है.”
फ़ारुख़ आगे कहते हैं, “जो गुरु-शिष्य का रिश्ता था उसके कुछ हिस्से हमारे ज़माने तक रह गए थे। अब छात्र सोचता है कि मैं पैसे देता हूं, ये कौन सा मुझ पर एहसान कर रहे हैं और टीचर सोचते हैं कि मुझे पैसे लेने हैं, मुझे कौन सी इसकी ज़िंदगी बनानी है। आज टीचरों जैसे टीचर और शिष्यों जैसे शिष्य कम नज़र आते हैं। हमारे समाज में जो नैतिक गिरावट आने लगी है, ये सारी चीज़ें उसका मिला-जुला असर है.”
हाल ही में विश्व चैंपियनशिप में महिला युगल में कांस्य और 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में इसी वर्ग में स्वर्ण पदक जीतने वाली बैडमिंटन खिलाड़ी ज्वाला गुट्टा अपने कोच एसएम आरिफ़ को अपना गुरु मानती हैं।ज्वाला कहती हैं, “मैं बैडमिंटन की वजह से ज़्यादा स्कूल नहीं जा पाई इसलिए मैं अपने कोच, श्री एसएम आरिफ़, को ही अपना फ़ेवरिट टीचर मानती हूं। उन्होंने मुझ पर बहुत मेहनत की है। वो रमज़ान और छुट्टी के दिन भी ट्रेनिंग देने के लिए आते थे। उनकी मेहनत और समर्पण का मेरी सफलता में अहम रोल है.”ज्वाला मानती हैं कि किसी भी व्यक्ति की ज़िंदगी में शिक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होता है और एक छात्र तभी ऊपर जा सकता है जब वो अपने गुरु को महत्व और इज़्ज़त दे। लेकिन उन्हें इस बात का अफ़सोस है कि भारत में शिक्षक या कोच को ज़्यादा महत्व नहीं दिया जाता।अभिनय से राजनीति में कदम रखने वाली स्मृति ईरानी कहती हैं कि उनकी बहुत सी शिक्षिकाएं हैं जिन्होंने अपने अनोखे ढ़ंग से उनके जीवन में छाप छोड़ी और उन्हें प्रभावित किया।उनका कहना था, “मैं चाहूंगी कि शिक्षक दिवस हम अपने उन टीचर्स को समर्पित करें जिन्होंने हमारे जीवन को नई दिशा दी और हमें प्रोत्साहित किया कि हम उस नए पथ पर चल कर अपने लिए एक नया इतिहास लिखें.”