स्‍वामी विवेकानंद की बातें असरदार होती थीं। उनकी बातें लोग ध्‍यान से सुनते थे। उनकी शिक्षाएं जीवन में बिताए उनके अनुभव पर आधारित होती थीं। यही वजह थी कि सुनने वाले पर वे बातें गहराई से असर करती थीं। जो भी उन्‍हें एक बार सुन लेता था उनका मुरीद हो जाया करता था। आइए जानते हैं उनके संस्‍मरणों पर आधारित कुछ बातें जो जिनपर अमल करके आप सफलता पा सकते हैं।


डर के आगे जीतस्वामी विवेकानंद अकसर अपने संबोधन में युवाओं से कहते थे कि डर के आगे ही जीत होती है। मुसीबत से डर कर भागने की बजाए उसका डट कर सामना करना चाहिए। इसके लिए वे अपना एक अनुभव भी साझा करते थे। एक बार बनारस में उन्हें बंदरों ने घेर लिया था। वे डर कर भागने लगे तो बंदर पीछे पड़ गए। तभी एक संन्यासी ने उन्हें टोका और कहा कि रुको और उनका सामना करो। बस फिर क्या था स्वामी विवेकानंद रुक गए और पलट कर बंदरों की ओर दौड़ पड़े। अब डरने की बारी बंदरों की थी और वे पलट कर तितर-बितर हो गए।ईश्वर कौन है? स्वामी विवेकानंद के गुरू के विचारों से समझिएनजर ही नहीं ध्यान भी लक्ष्य पर


आजकल युवा कई तरह की डिग्रिया बटोरने में लगे रहते हैं। सफलता उन्हें मिलती नहीं और मिलती भी है तो बहुत देर से। इसके लिए स्वामी विवेकानंद युवाओं से कहा करते थे लक्ष्य पर नजर ही नहीं ध्यान भी होना चाहिए। इससे जुड़ी अमेरिका में उनके साथ एक घटना घटी थी। एक बार वे अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे कि उन्होंने देखा कि एक नदी के किनारे कुछ बच्चे एयरगन से अंडों के छिलकों पर निशाना लगा रहे थे। बच्चों के हर बार निशाना चूक जाते थे। स्वामी जी ने उनसे बंदूक ली और एक के बाद एक 12 सटीक निशाने लगाए। बच्चों ने आश्चर्य से पूछा आपने यह कैसे किया। इसपर स्वामी जी ने कहा आपकी नजर तो अंडों पर थी लेकिन ध्यान कहीं और था। सफलता के लिए नजर ही नहीं ध्यान भी लक्ष्य पर ही होना चाहिए। फिर क्या था सभी ने निशाना लगाया और सबके निशाने लक्ष्य भेदी साबित हुए।युवा चाहें तो महाशक्ति बन जाएगा भारतआपकी संस्कृति दर्जी बनाता है और हमारा चरित्र

आज हर कोई चरित्र से ज्यादा अपने लुक पर ध्यान देता है। लेकिन स्वामी विवेकानंद हमेशा चरित्र निर्माण पर जोर देते थे। उनका मानना था कि अच्छे चरित्र से ही देश की संस्कृति का निर्माण होता है। इसके लिए उन्होंने अपना एक अनुभव बताया। एक बार वे विदेश गए थे। वहां उनके भगवा वस्त्रों को देखकर लोग हंसने लगे और कुछ तो उनके पीछे-पीछे चलकर उन्हें ऐसे घूरने और चिढ़ाने लगे जैसे वे किसी दूसरे ग्रह से आ गए हों। तभी एक ने अपने कॉलर को हाथ से उठाते हुए व्यंग्य किया कि आपके कपड़े कहां हैं। ये आपने क्या पहना है। इस पर स्वामी जी ने विचलित हुए बिना कहा कि भाइयों-बहनों आपकी संस्कृति दर्जी बनाता है और हमारी संस्कृति को लोगों का चरित्र बनाता है। इस बात पर सबक चुप हो गए। तभी एक बुजुर्ग ने आगे बढ़कर स्वामी जी का परिचय कराया तो लोगों ने उनका अभिवादन किया और अपने किए के लिए क्षमा भी मांगी।घर घर में विवेकानंद, बस रामकृष्ण चाहिये

Posted By: Satyendra Kumar Singh