नेपियर में पहला वनडे जीतने के बाद टीम इंडिया दूसरे मैच के लिए माउंटगनर्इ पहुंच गर्इ है। यहां भारतीय टीम का अलग तरह से स्वागत किया गया। विराट सेना के वेलकम के लिए यहां 800 साल पुराने लोग आए। आइए जानें कौन हैं ये लोग आैर कहां से आते हैं...

कानपुर। भारत बनाम न्यूजीलैंड के बीच पांच मैचों की वनडे सीरीज का दूसरा मैच टौरंगा के माउंटगनई में खेला जाएगा। टीम इंडिया यहां बुधवार को ही पहुंच गई। विराट सेना का इस बार काफी अलग तरह से स्वागत किया। भारतीय खिलाड़ियों के वेलकम के लिए न्यूजीलैंड के 800 साल पुरानी संस्कृति के लोग आए, जिन्हें इन्हें माओरी कहा जाता है। न्यूजीलैंड में माओरी समूह के लोगों की संख्या लाखों में है। इनका रहन-सहन काफी अलग है। इन्हें देखकर आपको किसी आदिवासी समूह की याद आ जाएगी मगर माओरी को इस श्रेणी में नहीं रखा जाता।
कहां से आए थे ये लोग
न्यूजीलैंड के माओरी समूह के लोगों को पाॅलनेशियन भी कहा जाता है। न्यूजीलैंड की एक वेसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, ये लोग प्रशांत महासागर पर बने पाॅलीनेशिया आईलैंड पर रहते थे मगर 13वीं सदी में ये पलायन करके न्यूजीलैंड में आकर बस गए। हालांकि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूके में भी माओरी समूह के लोग मिल जाते हैं। माओरी सभ्यता को दुनिया की सबसे नवीन सभ्यता भी माना जाता है।
नहीं लिखी जा सकती इनकी भाषा
माओरी सभ्यता के लोग शुरुआत में इशारों में बात करते थे। मगर बाद में इन्होंने अपनी एक भाषा की खोज की जिसे Te Reo कहा जाता है। बता दें ये भाषा सिर्फ बोली जाती है, इसे लिख नहीं सकते।

#TeamIndia received a traditional welcome at the Oval Bay from the Maori community.
Full video coming up soon on https://t.co/CPALMGgLOj pic.twitter.com/FEbSuwHEZ8

— BCCI (@BCCI) 25 January 2019

मिलने पर हाथ नहीं नाक मिलाते हैं
माओरी समुदाय के लोग आपस में मिलने पर हाथ या गले नहीं मिलते हैं। इनका ग्रीटिंग का एक अलग तरीका है जिसे होंगी कहते हैं। इसमें जो भी व्यक्ति मिलते हैं वे आपस में अपनी नाक और माथे को एक-दूसरे के साथ मिलाते हैं। इस दौरान दोनों व्यक्तियों को 'ha' बोलना होता है।

जमीन के नीचे पकाते हैं खाना
माओरी समूह के लोग आम इंसानों की तरह किचन में खाना नहीं पकाते। ये लोग नैचुरल भट्टी बनाते हैं। इसके लिए इन्हें जमीन पर एक गड्ढा खोदना होता है उसके बाद नीचे गरम पत्थर रखे जाते हैं जिसकी आंच में खाना पकाया जाता है। इस प्रक्रिया को हैंगी कहा जाता है।
टैटू से होती है इनकी पहचान
माओरी समुदाय के लोगों का सोशल स्टेटस और फैमिली बैकग्राउंड जाने के लिए उनके शरीर पर बने टैटू को ध्यान से देखना होता है। दरअसल यहां लोगों में भिन्नताएं उनके अलग-अलग टैटू होते हैं।

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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari