Jamshedpur: सिटी स्थित एमजीएम हॉस्पिटल में रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट का हाल कुछ ऐसा है कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया एमसीआई ने इसे डिफंक्ट माना है. हॉस्पिटल में हर रोज बड़ी संख्या में एक्स-रे सिटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड जैसे टेस्ट होते हैं पर इनमें से कई टेस्ट ऐसे हैं जिनकी रिपोर्टिंग तक नहीं होती. अब ऐसे में सवाल उठता है कि जब डायग्नोसिस ही सही तरीके से नहीं हो पा रही है तो फिर यहां बेहतर ट्रीटमेंट की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

Defunct है department
एमजीएम मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल स्टेट के तीन मेडिकल कॉलेजेज में से एक है। एमबीबीएस के 100 सीट्स के साथ-साथ कॉलेज में कुछ डिपार्टमेंट्स में पीजी की पढ़ाई भी होती है, लेकिन हैरानी की बात है कि यहां ऐसा डिपार्टमेंट भी है जो बगैर फैकल्टी के चल चल रहा है। जी हां, एमजीएम के रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट में एक भी फैकल्टी नहीं है। डिपार्टमेंट का काम सिर्फ एक मेडिकल ऑफिसर के सहारे चल रहा है। एमसीआई ने अपने असेसमेंट में कॉलेज के रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट को डिफंक्ट माना है। मैनपावर की इस कमी का असर हॉस्पिटल के काम-काज पर भी दिख रहा है।

फिर कैसे होगी reporting?  
हॉस्पिटल के रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट के कर्मचारियों के अनुसार डेली यहां 70 से 80 एक्स-रे होते हैैं। क्लिनिकल इस्टैŽिलशमेंट एक्ट के स्टैैंडड्र्स के अनुसार इस तरह के इस्टैŽिलशमेंट में टेस्ट के इंटरप्रेटेशन और रिपोर्टिंग के लिए क्वालिफाइड रेडियोलॉजिस्ट या रिलेटेड मेडिकल प्रैक्टिशनर का होना जरूरी है, पर हॉस्पिटल के रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट में सिर्फ एक मेडिकल ऑफिसर है, जिन पर एक्स-रे सहित सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड की भी जिम्मेदारी है। मैनपावर की कमी का असर हर रोज होने वाले एक्स-रे की रिपोर्टिंग पर पड़ता है।

ज्यादातर X-Ray की नहीं होती reporting
सिटी के एमजीएम हॉस्पिटल के ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट में रोज औसतन 100 पेशेंट्स आते हैं, इनमें से बड़ी संख्या में ऐसे पेशेंट्स भी होते हैं, जिनके ट्रीटमेंट में एक्स-रे रिपोर्ट की जरूरत पड़ती है। एचओडी डॉ जीएस बड़ाईक ने बताया कि उनके पास आने वाले ज्यादातर एक्स-रे के साथ उसकी रिपोर्ट नहीं होती। उन्होंने कहा कि इससे ट्रीटमेंट में भी परेशानी होती है। रिपोर्टिंग का इम्पॉर्टेंस बताते हुए डॉ जीएस बड़ाईक ने बताया कि हड्डी का डॉक्टर अपने जरूरत के हिसाब से टेस्ट प्रिस्क्राइब करता है, लेकिन हो सकता है कि पेशेंट को कोई और भी बीमारी हो। ऐसे में अगर प्रॉपर रिपोर्टिंग हो तो डॉक्टर को दूसरे कॉम्प्लीकेशन्स के बारे में भी पता चलेगा, जिसके आधार पर ट्रीटमेंट तय करने में आसानी होगी।

Technical staff को भी होती है परेशानी
डिपार्टमेंट में डेली दर्जनों सीटी स्कैन, एक्स-रे और अल्ट्रा-सोनोग्राफी की जाती है। पर इन सारे टेस्ट्स के लिए डिपार्टमेंट में सिर्फ चार रेडियोग्राफर हैं। एक रेडियोग्राफर ने बताया कि मैनपावर की कमी की वजह से वर्कलोड काफी बढ़ जाता है। साथ ही डॉक्टर्स के ना होने की वजह से टेस्ट की पूरी जिम्मेदारी टेक्निकल स्टाफ पर ही आ जाती है। वहीं, डिपार्टमेंट के मेडिकल ऑफिसर डॉ दुर्गाचरण बेसरा ने भी मैनपावर कमी की वजह से वर्कलोड काफी बढऩे की बात कही।

 

Report by: abhijit.pandey@inext.co.in

Posted By: Inextlive