वारंट तामिल कराने में पुलिस विभाग कर देता है लाखों खर्च

आम जनता की जेब से टैक्स के रूप में निकाले गए रुपयों की बर्बादी का यह अपने आप में एक अनूठा मामला है। हैरत की बात तो ये है कि आज तक किसी का इस ओर ध्यान तक नहीं गया। बात यह है कि पुलिस विभाग हर साल लाखों रुपये वारंट तामिल कराने के नाम खर्च कर देता है, जबकि यह काम विभाग कहीं कम खर्च में कर सकता है। अब इसे विभाग की लापरवाही कहें या सुस्ती यह आप ही तय कर लें

- महज ए-4 साइज के कागज को एक जगह से दूसरी भेजने में होते हैं सैकड़ों खर्च

- कोरियर और डाक सेवा से सस्ते और आसानी से हो सकता है काम

- मैनपॉवर को लगाया जा सकता है आपराधिक मामलों को सुलझाने में

sharma.saurabh@inext.co.,in

Meerut : वारंट तामील या दस्तावेज भेजने के नाम पर पुलिस डिपार्टमेंट द्वारा लुटाए जा रहे बजट की तरफ न तो सरकार का ध्यान गया है और न ही पुलिस विभाग के आला अफसरों का। हैरत की बात ये है कि हर साल इस तामील के चक्कर में लाखों रुपए खर्च होते हैं, जबकि ये काम इससे कई गुना कम खर्च में और ज्यादा आसानी से किया जा सकता है। आईनेक्स्ट ने इस पूरे मामले को जब तह तक खंगाला तो सामने आया कि जिले के हर थाने से औसतन एक या दो जवान वारंट या अन्य किसी तरह के दस्तावेज की तामील में उलझे रहते हैं। इस तरह करीब ब्0 से भ्0 जवान रोजाना सिर्फ कागजों को यहां से वहां पहुंचाने में झोंके जा रहे हैं। यदि इन्हें इस काम की बजाय अपराध के मामले सुलझाने में लगाया जाए तो थानों में पेंडिंग पड़े सैकड़ों केस निपट सकते थे।

कैसे की खर्च की गणना

जब आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने पुलिस विभाग द्वारा जवान को भेजने पर होने वाले खर्च की गणना के लिए जरूरी तथ्य जुटाए तो पता चला कि आरक्षी की तनख्वाह क्भ्000 रुपए प्रतिमाह के आसपास होती है। इस तरह आरक्षी को प्रतिदिन करीब भ्00 रुपए मिलते हैं। यदि वह पुलिस विभाग के काम से बाहर जाता है तो ख्00 रुपए प्रतिदिन टीए-डीए दिया जाता है। ऐसे में यदि वह वारंट तामील के लिए दो दिन तक बाहर रहता है तो इन दो दिनों में उसे क्000 रुपए बतौर तनख्वाह व ब्00 रुपए टीए-डीए दिया जाता है। इस बीच जिस जिले में वो वारंट देने गया है वहां आसपास उसका घर हुआ तो एक-दो दिन वो वहां रुक जाता है, जबकि इन दिनों की तनख्वाह भी वो पाता है। ऐसे में अलग-अलग दूरी के वारंट तामील करवाने में विभाग के क्000 से लेकर फ्भ्00 रुपए तक भी खर्च हो जाते हैं। सिटी में मौजूद कोरियर कंपनियां महज ख्0 से ब्0 रुपए में पुलिस के लिफाफे को पूरे उत्तर प्रदेश उत्तराखंड में पहुंचा सकती हैं। इनकी सर्विस में समय भी बहुत कम लग सकता है।

गोपनीयता भंग का सवाल नहीं

वारंट तामील को लेकर आई नेक्स्ट ने पुलिस डिपार्टमेंट के अधिकारी से बात की तो उसने डिपार्टमेंट का आतंरिक मामला बताते हुए जानकारी तो दी, लेकिन नाम न छापने की बात की। उनका कहना था 'जवानों को वारंट तामील के लिए इसलिए भेजा जाता है क्योंकि ये मामला सीधे कानून व्यवस्था से जुड़ा होता है.' इस पर कोरियर कंपनी के प्रतिनिधियों से बात की तो उन्होंने साफ कहा कि वे किसी तरह के लिफाफे या अन्य डॉक्यूमेंट्स को खोलते ही नहीं तो गोपनीयता भंग होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।

पुलिस बल की कमी का रोना

अपराध के केस सुलझाने में विफल होने या कानून व्यवस्था बिगड़ने पर पुलिस अधिकारी अक्सर बल की कमी का रोना रोते है। जबकि दूसरी ओर उनके ये जवान वारंट तामील के काम में उलझे रहते हैं। यदि वारंट तामील डाक विभाग या कोरियर कंपनियों को सौंप दी जाए तो ये इन जवानों को अपराध रोकने या आपराधिक केस सुलझाने में लगाए जा सकते हैं। जाहिर है, इससे जिले में पेंडिंग पड़े सैकड़ों केसेस के सुधरने की रफ्तार बढ़ जाएगी।

वारंट तामील करवाना कानूनी प्रक्रिया है और ये जिम्मेदारी का मामला है। इस कारण जवान भेजना जरूरी हो जाता है। वारंट में रिसीविंग रिसिप्ट भी जरूरी होती है इसलिए जवान को भेजना पड़ता है।

- के सत्यानारायण, डीआईजी

किसी का भी कोई भी डॉक्यूमेंट हो, कोई भी सामन हो उसकी सेफ्टी का पूरा ध्यान रखा जाता है। किसी के भी सामान को न तो खोलकर देखा जाता है।

- करन कसाना, ऑपरेशन डिपार्टमेंट, ट्रैक ऑन

फैक्ट एंड फिगर

- पड़ोसी जिले तक कोई कागज में भेजने में पुलिस खर्च 800 रुपए तक होता है और पूरा एक दिन लगता है। जबकि कुरियर और डाक सेवा में क् दिन क्भ् से ख्0 रुपए ही लगते हैं।

- क्00 किमी दूर स्थित थाने तक पुलिस खर्च के हिसाब से क्000 रुपए और डेढ़ दिन लगता है। जबकि कुरियर और डाक सेवा कमे थ्रू क्भ् से ख्0 रुपए व एक दिन ही लगता है।

- ख्00 किमी दूर स्थित थाने तक क्म्00 रुपए तक व दो दिन पुलिस के हिसाब से लगते हैं। जबकि कुरियर कंपनी और डाक सेवा के अनुसार ख्0 रुपए व एक दिन लगते हैं।

- जिले के ख्8 थानों के ब्0-भ्0 जवानों को लगाया हुआ है वारंट तामील कराने में।

Posted By: Inextlive