- एमसीआई के नियमों को ताक पर रखकर कराया जा रहा काम

- साथी डॉक्टर्स ने कहा काम के दबाव में थी डॉ। मनीषा

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रुष्टयहृह्रङ्ख: मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई)) के सख्त निर्देश हैं कि रेजीडेंट डॉक्टर्स से इमरजेंसी में एक बार 8 घंटे से अधिक काम न लिया जाए। इसके अलावा हफ्ते में 48 घंटे से अधिक काम नहीं लिया जाना चाहिए। लेकिन केजीएमसी एमसीआई के नियमों को ताक पर रखकर एक बार में 24 घंटे या उससे भी अधिक काम लिया जा रहा है। जिसके कारण ही रेजीडेंट डॉक्टर्स डिप्रेशन में आने के कारण सुसाइड जैसा कदम उठाने को मजबूर होते हैं।

डिप्रेशन में आ रहे रेजीडेंट डॉक्टर

रविवार को ट्रॉमा सेंटर में रेजीडेंट डॉक्टर्स ने बताया कि पीजी कर रहे डॉक्टर इतने कमजोर नहीं कि किसी बात पर ऐसा कदम उठा लें। परिवार और अपनी उम्मीदें पूरी करने के लिए आते हैं लेकिन यहां पर काम के बोझ तले दब जाते हैं। लगातार काम क केकारण डॉक्टर डिप्रेशन में आ रहे हैं। मनीषा आब्स एंड गाइनी विभाग में तैनात थी यहां पर 24 घंटे लगातार इमरजेंसी चलती है। विभाग की ज्यादातर सीनियर डॉक्टर गायब रहती हैं। खासकर रविवार को डॉक्टर देखने तक नहीं आती। क्वीन मेरी में आकर वे अपने कमरे में बैठकर अपना काम निपटाती हैं। जबकि मरीजों का प्रेशर रेजीडेंट डॉक्टर्स को ही झेलना पड़ता है। यदि सीनियर फैकल्टी मरीजों पर ध्यान देने लगे तो ये नौबत न आए।

90 फीसद बीमार

रेजीडेंट डॉक्टर्स का अरोप है कि 90 फीसद इमरजेंसी में काम कर रहे रेजीडेंट डॉक्टर किसी न किसी मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं। डिप्रेशन और नशे की चपेट में आ रहे हैं। जिसका सबसे मेन कारण है 24 से 36 घंटे तक लगातार काम लिया जाना। एक रेजीडेंट डॉक्टर ने बताया कि कई बार 24 घंटे तक टायलेट जाने का भी समय नहीं मिलता। जो भी आता है रेजीडेंट्स को ही डाट फटकार जाता है। मरीजों का प्रेशर और और काम का बोझ के कारण वार्ड में ही झपकी लेना और पढ़ाई भी करने की मजबूरी बनी हुई है।

मरीजों पर आती है आफत

रेजीडेंट के प्रेशर और नींद न पूरी होने के कारण ही अक्सर इलाज में गलती होती है। कुछ वर्ष पहले हड्डी के ही एक रेजीडेंट ने नींद में बाएं पैर की हड्डी टूटी होने के बावजूद दाएं में ड्रिल मशीन चला दी थी। ऐसी घटनाएं अक्सर होती हैं। खबर पर बात करने के लिए न तो वीसी प्रो। एमएलबी भट्ट ने फोन उठाया और न ही केजीएमयू के प्रवक्ता प्रो। नर सिंह वर्मा ने। सभी मामले से अपना पल्ला झाड़ते दिखे।

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मई में एक रेजीडेंट ने किया था सुसाइड

इससे पहले सात मई को ऑर्थोपेडिक विभाग के रेजीडेंट डॉक्टर विवेक ने भी हाथ की नसें काटकर सुसाइड का प्रयास किया था। समय रहते उनके भाई और साथी पहुंच गए थे जिससे ट्रॉमा सेंटर में भर्ती करके इलाज द्वारा बचा लिया गया। बाद में पता चला था कि बिना छुट्टी दिए लगातार काम के बोझ तले दबने के कारण ही डॉक्टर डिप्रेशन में चले गए थे और इसी कारण उन्होंने ये घातक कदम उठा लिया था।

Posted By: Inextlive