- काम के दौरान ही गंभीर बीमारियों का हो रहे शिकार

- अवसाद व तनाव की वजह से जान को बढ़ रहा खतरा

GORAKHPUR: बिना वतकली ऑफ के 365 दिन, 24 घंटे ड्यूटी करने वाले पुलिस कर्मियों पर लगातार काम का बोझ बढ़ता जा रहा है। इसका खामियाजा आए दिन पुलिस अधिकारियों से लेकर पब्लिक तक को भुगतना पड़ रहा है। काम के बोझ से दबे पुलिसकर्मी चिड़चिड़े व बीमार से हो गए हैं। लिहाजा आए दिन वह इसका गुस्सा कभी पब्लिक पर उतार रहे हैं तो कभी खुद की जान देने को तैयार हैं। इसका अभी सबसे ताजा उदहरण लखनऊ एटीएस मुख्यालय में देखने को मिला। जब मंगलवार को एटीएस दफ्तर में बैठकर एएसपी राजेश साहनी ने खुद को गोली से उड़ा दिया। हालांकि मौत के बाद एटीएस अधिकारी व कर्मचारी भी यह बात स्वीकार रहे हैं कि एएसपी साहनी पर इन दिनों का काफी अधिक काम का बोझ था। इसी वजह से उनकी छुट्टी तक कैंसिल कर उन्हें बुला लिया गया। ऐसे में जानकारों का मानना है कि अगर पुलिसकर्मियों के ऊपर जल्द ही अगर यह बोझ कम नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में समस्या बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

बढ़ता जा रहा काम का बोझ

दरअसल, पुलिसकर्मियों पर काम का अधिक बोझ होता है। इसके अलावा उनके ऊपर कानून व्यवस्था से लेकर पब्लिक की समस्या, जाम, वीआईपी ड्यूटी, घटनाएं, विवेचना और अधिकारियों का भी प्रेशर होता है। वहीं, उन्हें आराम करने के लिए किसी तरह का कोई वक्त नहीं मिलता। ऐसे में वह ड्यूटी के दौरान चिड़चिड़ेपन का शिकार होते जा रहे हैं।

छुट्टी के लिए कड़ी मशक्कत

पुलिस कर्मियों को छुट्टी लेने में अधिकारियों के चक्कर काटने पड़ते हैं। वहीं, इसके लिए उन्हें अपना ईएल व सीएल भी गवाना पड़ रहा है। दरअसल 24 घंटे, 365 दिन काम करने वाली यूपी पुलिस के लिए बीते दिनों वीकली ऑफ देने की योजना शुरू हुई थी। इसके लिए आईजी मोहित अग्रवाल ने सभी पुलिस कप्तानों को निर्देश भी जारी किया था। जिसमें यह साफ तौर पर कहा गया था कि प्रत्येक दस दिन के कार्य के बाद जवानों को एक दिन का वीकली ऑफ दिया जाएगा। बावजूद इसके कर्मियों को वीकली नहीं दिया गया।

केस-1

- 25 मार्च को कैंट एरिया के हरिओम नगर तिराहे पर ट्रैफिक पुलिस का एक जवान ड्यूटी कर रहा था। ट्रैफिक एक ओर रुकी हुई थी। इस दौरान एक युवक जबरिया बाइक लेकर निकलने लगा। ड्यूटी कर रहे जवान ने उस पकड़ लिया। पहले तो युवक ने अपनी गलती स्वीकारते हुए माफी मांगी, लेकिन बात न बनने पर उसने पुलिसकर्मी से मोबाइल पर अपने किसी परिचित से बात करने को कहा। इतने पर ट्रैफिक पुलिस का जवान बिफर पड़ा और युवक का मोबाइल पटक कर तोड़ दिया। यह देख युवक के पक्ष से भी कई लोग आ गए और मामला अधिकारियों के संज्ञान तक आ गया। हालांकि बाद में जवान को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने स्वीकार किया कि काम के दबाव में उससे यह गलती हो गई। बाद में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की पहल पर मामला शांत हुआ।

केस-2

28 अप्रैल को गोरखनाथ स्थित आनंदलोक अस्पताल में एक पुलिसकर्मी अपनी मां का इलाज कराने आया था। पुलिसकर्मी लखनऊ कारागार में तैनात था। शाम के वक्त अस्पताल से निकलते समय कर्मी की बाइक एक युवक की बाइक से टकरा गई। फिर क्या था सिपाही ने अपना आपा खो दिया और युवक की बुरी तरह पिटाई शुरू कर दी। बिना गलती की पिटाई देख आसपास के लोगों से भी रहा नहीं गया और पब्लिक ने पुलिस कर्मी को ही दौड़ा लिया। हालत यह हुई कि पुलिसकर्मी को अस्पताल में छिपकर अपनी जान बचानी पड़ी। काफी देर तक दोनों पक्षों में हंगामा चला। हालांकि देर रात दोनों में समझौता हो गया।

Posted By: Inextlive