RANCHI : एजूकेशन और साइंस ने हम इंसानों को इतना मजबूत कर दिया है कि आज हम चांद और मंगल ग्रह पर अपना घर बनाने का हौसला रखने लगे हैं। मगर, जब धरती पर ही एक ही मुहल्ले या कॉलोनी में एक साथ बसने की बात आती है, तो हमारी सोसाइटी की हिन्दू और मुस्लिम कम्युनिटीज के हौसले पस्त हो जाते हैं। ग्लोबल होती इस दुनिया में माना जा रहा है कि संप्रदाय, धर्म और जाति की दीवारें टूट रही हैं। सभी तरह के डिफरेंसेज मिट रहे हैं। पहले की रूढि़वादी परंपराएं अब खत्म हो रही हैं। लोगों का न सिर्फ रहन-सहन बदल रहा है, बल्कि समय के साथ लोगों की सोच भी बदल रही है। लेकिन, इन सबके बावजूद क्या सच में सोसाइटी बदल रही है? क्या हिन्दू और मुस्लिम के बीच रहन-सहन के स्तर पर जो डिफरेंसेज थे, वो मिट गए हैं? अगर आपका जवाब हां में है, तो शायद आपका जवाब गलत है, क्योंकि हम आपको आज सोसाइटी की एक ऐसी हकीकत से परिचय कराने जा रहे हैं, जिसे जानकर आप भी यह कहने पर मजबूर हो जाएंगे कि आखिर हम किस सदी में जी रहे हैं।

यह दीवार है कि टूटती नहीं

रांची का कांके रोड शहर का पॉश एरिया माना जाता है। शहर के ज्यादातर बिजनेसमेन और हाईप्रोफाइल लोग यहां पर बने दर्जनों अपार्टमेंट में अपना आशियाना बनाए हुए हैं, लेकिन इन अपार्टमेंट्स में सिर्फ हिन्दू ही रहते हैं। कोई मुस्लिम फैमिली इन अपार्टमेंट्स में नहीं रहती है। कांके रोड स्थित उमा अपार्टमेंट में 63 फ्लैट्स हैं, लेकिन 11 मंजिला इस अपार्टमेंट में एक भी मुस्लिम फैमिली का फ्लैट नहीं है। यह हाल अकेले सिर्फ हिन्दू बहुल क्षेत्रों में बने अपार्टमेंट्स का नहीं है, बल्कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी ऐसा ही हाल है। हिंदपीढ़ी, डोरंडा, कांटाटोली और कडरू आदि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बननेवाले अपार्टमेंट्स में आपको हिन्दू फैमिलीज नहीं मिलेंगी। कडरू स्थित परफेक्ट सर्विसिंग सेंटर गली में इमाम कोठी है। चार मंजिला इस अपार्टमेंट में 8 फ्लैट्स हैं, लेकिन यहां एक भी हिन्दू फैमिली का फ्लैट नहीं है। आज भी जब घर खरीदने और बसने की बात आती है, तो हिन्दू अपने एरिया में और मुस्लिम अपने एरिया में अपनी सुविधा के अनुसार अपना आशियाना बनाते हैं। यह एक कड़वी सच्चाई है कि पढ़े-लिखे होने के बावजूद कहीं न कहीं लोगों के दिलो-दिमाग में धर्म के बहाने अलगाव की भावना घर कर चुकी है। अलगाव की यह भावना सोसाइटी में हिन्दू और मुस्लिम कम्युनिटीज के बीच आज भी दीवार बनी खड़ी है, जो टूट नहीं रही है।

हिन्दू और मुसलमान में बंटी हैं बस्तियां

धर्म के आधार पर भले ही भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ हो, लेकिन इसके बावजूद हमारा देश सांप्रदायिक सौहा‌र्द्र का अनूठा नमूना है। हम इसपर गर्व भी करते हैं। लेकिन, यह तस्वीर का एक ही पहलू है। इसका दूसरा पहलू यह है कि आज भी जब बात रहने और घर खरीदने की आती है, तो हम हिन्दू और मुसलमान में बंटे हुए नजर आते हैं। रांची में आज भी कांटाटोली, डोरंडा, हिन्दपीढ़ी, बरियातू बस्ती, आजाद बस्ती, मौलाना आजाद कॉलोनी, जामिया नगर ऐसे इलाके हैं, जिनका नाम आते ही जेहन में पहली बात यही आती है कि यहां पर मुस्लिम रहते हैं, हिन्दू यहां पर नहीं रहते। ठीक इसी तरह कोकर, चुटिया, हिनू और रातू रोड ऐसे इलाके हैं, जहां खोजने पर भी कोई मुस्लिम का घर नहीं मिलेगा। इसके साथ ही इन इलाकों में मुसलमानों को किराए पर भी घर जल्दी नहीं मिलता है।

पॉलिटिक्स है इसके लिए जिम्मेदार

हिन्दू और मुसलमानों में मेलजोल न बढ़े, इसके लिए पॉलिटिक्स जिम्मेदार है। पॉलिटिक्स ने हिन्दू और मुसलमानों के बीच ऐसा फासला पैदा किया है कि चाहकर भी ये दोनों कम्युनिटीज एक ही जगह पर एक साथ नहीं बसती हैं। हालांकि, रोजमर्रा की जिंदगी में आपस में मेलजोल बना रहता है, फिर भी जब बात घर बनाने या बसने की आती है, तो हिन्दू उस जगह बसना पसंद करते हैं, जहां उनकी कम्युनिटी के लोग रहते हैं और मुस्लिम भी अपनी कम्युनिटी के बीच बसना चाहते हैं। यह कहना है डॉ शीन अख्तर का। झारखंड के जाने-माने एकेडमिशियन और रांची यूनिवर्सिटी के वीसी रह चुके डॉ शीन अख्तर का कहना है कि इस बंटवारे के पीछे का एक मनोवैज्ञानिक कारण भी है। क्योंकि, दुनिया में जो कम्युनिटी अल्पसंख्यक होती है, उसके अंदर इनसिक्योरिटी की भावना रहती है, खासकर दंगों को लेकर उसके अंदर डर रहता है कि अगर दंगे हुए, तो वह कैसे अपने को सेफ रखेगी। इसलिए, ऐसे लोग अपनी ही कम्युनिटी के साथ बसना पसंद करते हैं। यह एक ग्लोबल ट्रेंड रहा है। हालांकि, कहीं-कहीं इसमें बदलाव भी देखने को मिला है, लेकिन अभी भी यह सोच जिंदा है।

बिल्डर्स भी पूछते हैं- आपका धर्म क्या है

रांची में किसी अपार्टमेंट बनाने वाले बिल्डर के पास अगर आप फ्लैट बुक कराने या खरीदने जा रहे हैं, तो आपसे आपकी जाति तो नहीं पूछी जाएगी, लेकिन आपसे आपका धर्म जरूर पूछा जाएगा। अगर आप किसी खास धर्म से ताल्लुक रखते होंगे, तो हो सकता है बिल्डर आपको उस जगह फ्लैट खरीदने को कहे, जहां पर आपके धर्म के लोग ही रहते हों। धर्म के अलावा रांची में कुछ खास कम्युनिटीज के लिए ही अलग से बिल्डर्स ने अपार्टमेंट बनाए हैं और नए बना भी रहे हैं, जहां पर एक ही कम्युनिटी के लोगों के घर होंगे।

1967 से पहले रांची में नहीं था ऐसा बंटवारा

रांची के सबसे पुराने मुहल्लों में शुमार हिंदपीढ़ी का नाम आते ही लोग यही सोचते हैं कि यह मुसलमानों का इलाका है। कुछ हद तक इसमें सच्चाई भी है, लेकिन साल 1967 से पहले रांची में कोई ऐसा नहीं कह सकता था। क्योंकि, तब यहां पर हिन्दू और मुस्लिम आबादी बराबर हुआ करती थी। लेकिन, इसके बाद जब दंगे होने शुरू हुए, तो यहां की तस्वीर बदल गई। रांची यूनिवर्सिटी के ही वीसी रहे डॉ एए खान कहते हैं कि देश में जब धर्म के नाम पर बंटवारा हुआ, उसके बाद भी यहां पर लोग मिलजुलकर एक ही मुहल्ले में रहते थे। लेकिन, उसके बाद पॉलिटिक्स और कुछ खास लोगों ने ऐसा माहौल बनाया, जिसकी वजह से अलग-अलग पॉकेट बनने शुरू हुए और दुर्भाग्य से यह सिलसिला अब भी जारी है। अलग-अलग कम्युनिटीज के अलग अपार्टमेंट्स और कॉलोनीज बन रहे हैं। यह ठीक संकेत नहीं हैं। सवाल है कि इसको खत्म कैसे किया जाए। इसके लिए एक ऐसे पॉलिटिकल सिस्टम की जरूरत है, जिसमें हर एक इंडिविजुअल खुद को गवर्नमेंट का पार्ट समझे। किसी के साथ किसी तरह का भेदभाव न हो। अगर ऐसा हो गया, तो ये चीजें खत्म हो जाएंगी। इसके लिए देश में ऐसे लीडर की जरूरत है, जो विजन के साथ काम करके दिखा सके कि इस देश में सभी को बराबरी से उनका हक मिलेगा।

सबकुछ बदल रहा, पर सोच नहीं बदल रही है

सोसाइटी में आज बदलाव तो तेजी से हो रहे हैं। बनी-बनाई व्यवस्थाएं टूट रही हैं, लेकिन इसके बाद भी सोच के स्तर पर जो बदलाव होना चाहिए, वह नहीं दिख रहा है। यही चीज लोगों को सेक्शंस में बांट रही है। हाल के दिनों में यह देखने में आ रहा है कि रांची में अलग-अलग कम्युनिटीज के लिए अलग-अलग अपार्टमेंट्स और कॉलोनीज बसाए जा रहे हैं। एक खास धर्म के लोगों का किसी दूसरे धर्म के लोगों के साथ बसना कम हो रहा है। यह सोसाइटी के लिए खतरनाक ट्रेंड है। दिलों में बंटवारा हो रहा है। यह कहना है झारखंड के फेमस फिल्मकार मेघनाथ का। मेघनाथ कहते हैं कि धर्म के नाम पर जो बंटवारा देखने को मिल रहा है, उसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार पॉलिटिक्स है। कुछ खास नेता और उनकी विचारधारा चाहती है कि यह बंटवारा बढ़ता जाए, जिससे उनको फायदा मिलता रहे। इसके साथ ही दंगों के दौरान होनेवाली इनसिक्योरिटी भी एक खास वजह है, जो हिन्दू और मुसलमानों को एक ही जगह पर एक साथ बसने से रोकती है।

Posted By: Inextlive