- सरकारी अनुदान न मिलने से दिव्यांग स्कूल में बच्चों का पेट भरने का संकट

- अनुदान के झमेले से तंग आकर एक संस्था ने प्रपोजल ही नहीं भेजा

- कंप्यूटर शिक्षा की चाह दिव्यांग मासूमों के लिए बनी दूर की कौड़ी

ALLAHABAD: अक्षम से ये अब दिव्यांग हो गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इनका नाम तो बदल दिया, लेकिन सरकारी मशीनरी की सोच नहीं बदल पाए। यही वजह है कि सरकारी दाव-पेंच के चलते अनुदान न मिल पाने से दिव्यांग स्कूलों के बच्चों को उधार के दाने पर जिंदगी काटनी पड़ रही है। इन स्कूलों को चलाने वाली संस्थाएं इस कदर हताश हो चुकी हैं कि एक संस्था ने तो इस बार अपना प्रपोजल भी नहीं भेजा।

क्रेडिट पर मंगाया जा रहा अनाज

जार्जटाउन स्थित मूक-बधिर विद्यालय में इस समय 353 बच्चे पढ़ रहे हैं। इन दिव्यांगों के प्रति सरकार की बेरुखी का यह आलम है कि दो साल 2014-15 और 2015-16 का इस विद्यालय को सरकारी अनुदान नहीं मिला। हॉस्टल में रहने वाले सौ बच्चों को उधार लेकर दो वक्त का खाना दिया जा रहा है। मूलभूत सुविधाओं की तो बात करना ही बेमानी होगा।

फजीहत से हारकर नहीं भेजा प्रपोजल

इसी तर्ज पर सिविल लाइंस में राज अंध विद्यालय को भी पिछले दो साल से केंद्र सरकार ने अनुदान जारी नहीं किया है। इसके चलते यहां एडमिशन लेने वाले नेत्रहीन बच्चों की स्ट्रेंथ आधी कर दी गई है। पैसा नहीं होने से बच्चे कम्प्यूटर एजूकेशन को तरस रहे हैं। विद्यालय प्रशासन का कहना है कि तीन-तीन साल में अनुदान मिलता था। इसके लिए बार-बार चक्कर काटना पड़ता था। इसलिए हमने तय किया है अब सरकार को प्रपोजल ही नहीं भेजेंगे। दूसरे संसाधनों से विद्यालय को अपने दम पर चलाएंगे।

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ऑनलाइन के फेर में सिस्टम का कबाड़ा

कुछ साल पहले केंद्र सरकार ने दिव्यांगों के लिए चलाए जाने वाले स्कूलों के अनुदान की व्यवस्था ऑनलाइन कर दी। इसके बाद पूरे सिस्टम का ही कबाड़ा हो गया। संस्थाओं ने ऑनलाइन आवेदन तो कर दिया लेकिन पैसे का भुगतान फंस गया। संस्थाओं का कहना है कि पूरी प्रक्रिया से गुजरने के बाद भी फंडिंग रुक जाना वाकई समझ से परे है।

अपनों का ही भरोसा

राज अंध विद्यालय में इस समय 50 बच्चे पढ़ रहे हैं। यह सभी पूरी तरह नेत्रहीन हैं। विद्यालय प्रबंधन का कहना है कि समाज से जुडे़ कई लोग और इन स्कूल से पढ़कर निकले कई बच्चे बैंक, हॉस्पिटल सहित दूसरे प्रोफेशन में बेहतर जॉब कर रहे हैं। वह इस स्कूल को संचालित करने में आर्थिक सहायता करते हैं। उनका यह योगदान वाकई सरकारी तंत्र के लिए एक सबक हो सकता है।

राज अंध विद्यालय को चाहिए सुविधाएं

- समय से मिलना चाहिए अनुदान।

- बच्चों के पास स्टिक नहीं है, उन्हें स्मार्ट केन की दरकार है

- विद्यालय में केवल एक कम्प्यूटर है, जिससे बच्चों को आधुनिक शिक्षा नहीं मिल पा रही है

- लड़कियों को संगीत शिक्षा के लिए प्रयाग संगीत समिति जाना पड़ता है। उन्हें म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स चाहिए

- बच्चों के लिए ब्रेल लिपि की किताबें काफी महंगी पड़ती हैं। इसके लिए सरकार चाहे तो यूपी का पहला ब्रेल प्रेस स्थापित कर सकती है

- नेत्रहीनों की पढ़ाई के लिए डेजी प्लेयर सर्वाधिक उपयुक्त है। इसकी कमी भी संस्थान में है

मूक-बधिर विद्यालय को चाहिए सुविधाएं

- समय से मिलना चाहिए सरकारी अनुदान

- ग‌र्ल्स के लिए सेपरेट हास्टल बनना बेहद जरूरी है

- सुनने और बोलने में असमर्थ बच्चों के लिए विद्यालय में आडियोमीटर, हियरिंग आटोमेटिक मशीन और स्पीक थेरेपी के उपकरण बेहद जरूरी हैं

- बिजली के लिए जनरेटर की आवश्यकता है। लाइट जाने पर क्लास रूम में नहीं हो पाती पढ़ाई

- कमरों की कमी के चलते खुले आसमान के नीचे चलानी पड़ती है क्लास

- शासन आई नेक्स्ट के इस अभियान के साथ है। निशक्त को सशक्त बनाने के लिए जिस चीज की दरकार होगी उसे पूरा किया जाएगा। दिव्यांगों के विवाह का कार्यक्रम करवाया गया है। बाकी कमियों को पूरा करने का प्रयास किया जाएगा।

अनुग्रह नारायण सिंह, विधायक, शहरी उत्तरी

हाल ही में मेरी इन संस्थाओं के लोगों से मुलाकात हुई थी। इन्हें कुछ चीजों की मांग की है, जिसे पूरा करने की दिशा में प्रयास जारी है। आई नेक्स्ट के इस अभियान के जुड़कर दिव्यांगों के लिए बेहतर करने का प्रयास किया जाएगा। जल्द ही मैं शहर आने वाला हूं।

केशव प्रसाद मौर्य, फूलपुर सांसद

दो साल से अनुदान नहीं मिलने से विद्यालय चलाने में काफी दिक्कत आ रही है। दिव्यांग बच्चों के प्रति प्रेम होने से इसे बंद भी नहीं कर सकते। जैसे-तैसे क्रेडिट पर बच्चों को दो वक्त का भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। सरकार या सोसायटी सहायता करे तो बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सकती है।

केएन मिश्रा, प्रिंसिपल, मूक-बधिर विद्यालय

तीन-तीन साल में अनुदान दिया जाता है। यही कारण है मैंने इस साल प्रपोजल ही नहीं भेजा है। अपने रिसोर्स और कुछ लोगों की सहायता से विद्यालय का संचालन किया जा रहा है। बच्चों की स्ट्रेंथ आधी हो गई है। हमारे यहां से निकले कुछ बच्चे भी विद्यालय को सहायता प्रदान करते हैं।

डॉ। बीना सिंह, संचालिका, राज अंध विद्यालय

Posted By: Inextlive