शुक्रवार 30 जनवरी 1948 की शुरुआत एक आम दिन की तरह हुई. हमेशा की तरह महात्मा गांधी तड़के साढ़े तीन बजे उठे. प्रार्थना की दो घंटे अपनी डेस्क पर कांग्रेस की नई ज़िम्मेदारियों के मसौदे पर काम किया और इससे पहले कि दूसरे लोग उठ पाते छह बजे फिर सोने चले गए.


काम करने के दौरान वह आभा और मनु का तैयार किया हुआ नींबू और शहद का गरम पेय और मीठा नींबू पानी पीते रहे. दोबारा सो कर आठ बजे उठे.दिन के अख़बारों पर नज़र दौड़ाई और फिर ब्रजकृष्ण ने तेल से उनकी मालिश की. नहाने के बाद उन्होंने बकरी का दूध, उबली सब्जियां, टमाटर और मूली खाई और संतरे का रस भी पिया.शहर के दूसरे कोने में पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे और विष्णु करकरे अभी भी गहरी नींद में थे.डर्बन के उनके पुराने साथी रुस्तम सोराबजी सपरिवार गांधीजी से मिलने आए. इसके बाद रोज़ की तरह वो दिल्ली के मुस्लिम नेताओं से मिले. उनसे बोले, ''मैं आप लोगों की सहमति के बगैर वर्धा नहीं जा सकता.''


उधर बिरला हाउस के लिए निकलने से पहले नाथूराम गोडसे ने कहा कि उनका मूंगफली खाने का जी चाह रहा है. आप्टे उनके लिए मूंगफली ढ़ूढ़ने निकले लेकिन थोड़ी देर बाद आकर बोले- ''पूरी दिल्ली में कहीं भी मूंगफली नहीं मिल रही. क्या काजू या बादाम से काम चलेगा?''

लेकिन गोडसे को सिर्फ़ मूंगफली ही चाहिए थी. आप्टे फिर बाहर निकले और इस बार वो मूंगफली का बड़ा लिफ़ाफ़ा लेकर वापस लौटे. गोडसे मूंगफलियों पर टूट पड़े. तभी आप्टे ने कहा कि अब चलने का समय हो गया है.चार बजे वल्लभभाई पटेल अपनी पुत्री मनीबेन के साथ गांधी से मिलने पहुंचे और प्रार्थना के समय यानी शाम पांच बजे के बाद तक उनसे मंत्रणा करते रहे.सवा चार बजे गोडसे और उनके साथियों ने कनॉट प्लेस के लिए एक तांगा किया. वहां से फिर उन्होंने दूसरा तांगा किया और बिरला हाउस से दो सौ गज पहले उतर गए.उधर पटेल के साथ बातचीत के दौरान गांधी चर्खा चलाते रहे और आभा का परोसा शाम का खाना बकरी का दूध, कच्ची गाजर, उबली सब्जियां और तीन संतरे खाते रहे.दस मिनट की देरीआभा को मालूम था कि गांधी को प्रार्थना सभा में देरी से पहुंचना बिल्कुल पसंद नहीं था. वह परेशान हुई, पटेल को टोकने की उनकी हिम्मत नहीं हुई, आख़िरकार वो भारत के लौह पुरुष थे. उनकी ये भी हिम्मत नहीं हुई कि वह गांधी को याद दिला सकें कि उन्हें देर हो रही है.यह बात करते करते गांधी प्रार्थना स्थल तक पहुंच चुके थे. दोनों बालिकाओं के कंधों से हाथ हटाकर गांधी ने लोगों के अभिवादन के जवाब में उन्हें जोड़ लिया.

बाईं तरफ से नाथूराम गोडसे उनकी तरफ झुका और मनु को लगा कि वह गांधी के पैर छूने की कोशिश कर रहा है. आभा ने चिढ़ कर कहा कि उन्हें पहले ही देर हो चुकी है, उनके रास्ते में व्यवधान न उत्पन्न किया जाए. लेकिन गोडसे ने मनु को धक्का दिया और उनके हाथ से माला और पुस्तक नीचे गिर गई.वह उन्हें उठाने के लिए नीचे झुकीं तभी गोडसे ने पिस्टल निकाल ली और एक के बाद एक तीन गोलियां गांधीजी के सीने और पेट में उतार दीं.उनके मुंह से निकला, "राम.....रा.....म." और उनका जीवनहीन शरीर नीचे की तरफ गिरने लगा.सन्नाटे में स्तब्ध भीड़आभा ने गिरते हुए गांधी के सिर को अपने हाथों का सहारा दिया. बाद में नाथूराम गोडसे ने अपने भाई गोपाल गोडसे को बताया कि दो लड़कियों को गांधी के सामने पाकर वह थोड़ा परेशान हुए थे.
उन्होंने बताया था, ''फायर करने के बाद मैंने कसकर पिस्टल को पकड़े हुए अपने हाथ को ऊपर उठाए रखा और पुलिस.... पुलिस चिल्लाने लगा. मैं चाहता था कि कोई यह देखे कि यह योजना बनाकर और जानबूझ कर किया गया काम था. मैंने आवेश में आकर ऐसा नहीं किया था. मैं यह भी नहीं चाहता था कि कोई कहे कि मैंने घटनास्थल से भागने या पिस्टल फेंकने की कोशिश की थी. लेकिन यकायक सब चीजे जैसे रुक सी गईं और कम से कम एक मिनट तक कोई इंसान मेरे पास तक नहीं फटका.''सिर पर वारनाथूराम को जैसे ही पकड़ा गया वहाँ मौजूद माली रघुनाथ ने अपने खुरपे से नाथूराम के सिर पर वार किया जिससे उनके सिर से ख़ून निकलने लगा. लेकिन गोपाल गोडसे ने अपनी किताब 'गांधी वध और मैं' में इसका खंडन किया. बकौल उनके पकड़े जाने के कुछ मिनटों बाद किसा ने छड़ी से नाथूराम के सिर पर वार किया था जिससे उनके सिर से ख़ून बहने लगा था.बर्नाड शॉ ने गांधी की मौत पर कहा, ''यह दिखाता है कि अच्छा होना कितना ख़तरनाक होता है.''दक्षिण अफ़्रीका से गांधी के धुर विरोधी फ़ील्ड मार्शल जैन स्मट्स ने कहा, ''हमारे बीच का राजकुमार नहीं रहा.''किंग जॉर्ज षष्टम ने संदेश भेजा, ''गाँधी की मौत से भारत ही नहीं संपूर्ण मानवता का नुकसान हुआ है.''महात्मा गांधी की शवयात्रा में पंडित जवाहर लाल नेहरूमोहम्मद अली जिन्ना ने अपने शोक संदेश में कहा, ''वो हिंदू समुदाय के महानतम लोगों में से एक थे.''
जब जिन्ना के एक साथी ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि गांधी का योगदान एक समुदाय से कहीं ऊपर उठकर था, जिन्ना अपनी बात पर अड़े रहे और बोले, ''देट इज़ वॉट ही वाज़- ए ग्रेट हिंदू.''जब गांधी के पार्थिव शरीर को अग्नि दी जी रही थी, मनु ने अपना चेहरा सरदार पटेल की गोद में रख दिया और रोती चली गईं. जब उन्होंने अपना चेहरा उठाया तो उन्होंने महसूस किया कि सरदार अचानक बुज़ुर्ग हो चले हैं.

Posted By: Satyendra Kumar Singh