10 साल पहले चार साल का एक बच्‍चा 65 किमी दौड़ने के बाद भी नहीं थका तो लोगों को काफी आश्‍चर्य हुआ। चारों तरफ उसकी तारीफ होने लगी लोग जानना चाहते थे कि इतनी कम उम्र में किस बच्‍चे ने यह कारनामा किया। स्‍पोर्ट्स कमेटी को भी लगा कि शायद उन्‍हें ओलंपिक में मेडल दिलाने वाला एक इंडियन एथलीट मिल गया। लेकिन यह बच्‍चा इतनी जल्‍दी गुमनामी में खो जाएगा किसी ने न सोचा था। आज बुधिया की याद फिर आई जब उसके जीवन पर बनी फिल्‍म 'Budhia Singh: Born To Run' इस शुक्रवार को रिलीज हुई। तो आइए रील लाइफ से इतर रियल लाइफ में जानें बुधिया कहां है और क्‍या कर रहा है। पढ़ें पूरी स्‍टोरी...

7 घंटे लगातार दौड़ा था बुधिया
साल 2006 में मीडिया चैनलों व अखबारों में चार साल का बच्चा बुधिया सिंह काफी छाया हुआ था। हो भी क्यों न आखिर बुधिया ने पुरी से लेकर भुवनेश्वर तक 65 किमी की दूरी 7 घंटे 2 मिनट में पूरी कर ली थी। बुधिया ने जब दौड़ खत्म की तो उसे थकान का बिल्कुल भी एहसास नहीं हुआ। लोगों को लगा कि यही वो एथलीट है जो भारत को आगे चलकर ओलंपिक मेडल जीताएगा। खैर समय बीतता गया और बुधिया अब 14 साल का हो गया है। वह भुवनेश्वर के कलिंग स्टेडियम स्थित स्पोर्ट्स हॉस्टल में रहकर पढ़ाई के साथ-साथ दौड़ भी लगा रहा है। हालांकि इस दौड़ के अब कोई मायने नहीं क्योंकि इसका कोई लक्ष्य नहीं।
कोच बीरांची दास ने दिया था नया जीवन
बुधिया सिंह की जिदंगी कभी भी आसान नही रही। बुधिया सलाईसाही नाम की झोपड़पट्टी में रहता था। बचपन में पिता की मौत हो जाने के बाद घर कैसे चलता तो मां ने एक हॉकर से 800 रुपये लेकर बुधिया को बेच दिया था। बिरांची दास जोकि उस समय स्लम एरिया के अध्यक्ष हुआ करते थे उन्होंने हॉकर को पैसे देकर बुधिया को वापस खरीद लिया और उसे बुधिया के मां सुकांति के पास छोड़ आए। सुकांति ने उसी समय बिरांची से बुधिया के पालन-पोषण को लेकर असमर्थता जताई तब आखिर में बिरांची को बुधिया को गोद लेना पड़ा।

सजा के साथ शुरु हुआ मैराथन सफर
बिरांची दास ने बुधिया की प्रतिभा को तब पहचाना जब उन्होंने गाली देने पर बुधिया को सजा के तौर पर मैदान का चक्कर लगाने को कहा था। कुछ घंटो बाद जब बिरांची वापस लौटे तो देखा बुधिया अभी भी दौड़ लगा रहा था। पूछने पर बुधिया ने कहा कि, उसे दौड़ना अच्छा लगता है। बिरांची ने उसके बाद बुधिया को कड़ी ट्रेनिंग देना शुरु कर दिया और तब जाकर चार साल का बुधिया दुनिया के सामने एक अच्छा धावक बनकर आया। 65 किमी की दौड़ लगाने के बाद बिरांची बुधिया को एक अच्छा रनर बनाने का प्रशिक्षण देने लगे। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था साल 2008 में बिरांची दास की कुछ अज्ञाज हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। बस यहीं से बुधिया के सपने को झटका लग गया और धीरे-धीरे वह गुमनामी में खो गया।
अब सिर्फ समय काट रहा
14 साल का बुधिया आज भी बिरांची सर को याद कर मायूस हो जाता है। स्पोर्ट्स हॉस्टल में उसे न तो पर्याप्त ट्रेनिंग मिलती है और न ही उसके खान-पान का ध्यान रखा जाता है। ऐसे में वह अब सिर्फ समय काट रहा है। दौड़ने की इच्छा आज भी उसके मन में है लेकिन उन इच्छाओं को उड़ान देने वाला कोई नहीं। फिलहाल उड़ीसा बेस्ड फिल्म मेकर सौमेंद्र पाढी ने बुधिया के जीवन पर फिल्म बनाकर एक बार फिर उसे चर्चा में ला दिया। लेकिन बुधिया को इससे कोई मतलब नहीं और वह यह फिल्म भी नहीं देखना चाहता।

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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari