उत्तर प्रदेश राज्य में आज़मगढ़ ज़िले के कई ऐसे युवा हैं जिनके ख़िलाफ़ कथित चरमपंथी गतिविधियों से जुड़े होने के मामले दर्ज हैं.


इन्हीं में से एक हैं रानी की सराय नाम के गाँव के पास रहने वाले हक़ीम तारिक़.देवबंद से मौलवी की पढ़ाई करने के बाद तारिक़ ने मुज़फ्फरपुर से हक़ीम बनने की डिग्री प्राप्त की और अपने गांव में यूनानी दवाओं की दुकान चलाते थे.उनके परिवार के मुताबिक़ हक़ीम तारिक़ को 12 दिसंबर, 2007 की शाम आज़मगढ़ की महमूदपुर चेक पोस्ट से पकड़ लिया गया.हालांकि उनके परिवार में किसी को भी इस बात की जानकारी नहीं मिली.गुमशुदगी की एफ़आईआर दर्ज कराई गई, आला अफ़सरों के पास शिकायत दर्ज हुई लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं मिला.22 दिसंबर, 2007 को उत्तर प्रदेश पुलिस के स्पेशल टास्क फ़ोर्स ने एक प्रेस वार्ता में जानकारी दी कि बाराबंकी ज़िले से हक़ीम तारिक़ और जौनपुर निवासी ख़ालिद मुजाहिद को असलहों के साथ गिरफ़्तार किया गया है.
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार इन दोनों का हाथ सितंबर, 2007 में लखनऊ, फैज़ाबाद और गोरखपुर की अदालतों में हुए बम धमाकों में था और दोनों प्रतिबंधित संगठन हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी यानी हुजी के लिए काम कर रहे थे.लंबी लड़ाईहक़ीम तारिक़ के चाचा बताते हैं कि मुकदमे पर हर महीने तक़रीबन 50,000 रुपए ख़र्च होते हैं.उनके गाँव में माता-पिता, बीवी और तीन छोटे बच्चे रहते हैं.


बहुत मनाने पर तारिक़ की पत्नी आयशा ने परदे के पीछे से बीबीसी हिन्दी से बात की.उन्होंने कहा, "हमारे पति बहुत भले आदमी हैं, अपने बच्चों को प्यार करते थे. जब उन्हें पकड़ने को लेकर ही ग़लत बयानी हुई है तो कैसे मान लें वे गुनहगार हैं. जब उन्हें गिरफ़्तार किया गया हमारी छोटी बेटी छह महीने की थी. अब सातवां साल पूरा करेगी लेकिन रोज़ पूछती है, अब्बू गए कहाँ हैं जो घर ही नहीं लौटते. क्या जवाब दें".हक़ीम तारिक़ के हिरासत में रहने के अलावा परिवार पर एक लंबी क़ानूनी लड़ाई का ज़िम्मा भी आ गया है.तारिक़ के चाचा मुमताज़ अहमद ने बताया, "हर महीने चार अदालतों में जिरह कराने में क़रीब 50,000 रुपए ख़र्च होते हैं. हमारे देश में ऐसे मामलों में वकील भी ढूंढना मुश्किल है. दो बार हमारे वकीलों पर हमले भी हुए हैं".मामलाहालांकि तमाम लोग ऐसे हैं जो मानते हैं कि केस में अब ज़्यादा दम नहीं बचा.राज्यसभा सांसद मोहम्मद अदीब इस मामले को संसद में भी उठा चुके हैं.

उन्होंने कहा, "ये तब की घटना है जब सुरक्षा एजेंसियां ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां कर रहीं थीं. कई दूसरे मामलों की तरह आज़मगढ़ के भी कुछ बेगुनाह इस ऑपरेशन की चपेट में आ गए."आज़मगढ़ में ही हक़ीम तारिक़ की ससुराल भी है. उनके ससुर मोहम्मद असलम बताते हैं कि तारिक़ के जेल जाने के बाद से परिवार को तीन-चार लाख रुपए की तो दवाइयाँ फेंकनी पड़ी हैं जिनका प्रयोग हक़ीम अपनी क्लीनिक में करते थे.उन्होंने बताया, "हमारे परिवारों पर जो बीती है हम ही जानते हैं. उम्मीद करते हैं कि केंद्र में आई नई सरकार ऐसे मामलों के निबटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखेगी".क्योंकि मामला बहुत पुराना है और न्यायालय में है इसलिए ज़िला पुलिस ने इस पर टिप्पणी करने से मना कर दिया.आज़मगढ़ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अनंत देव ने कहा कि इस पर जांच एजेंसियां बेहतर जानकारी दे सकतीं हैं.लेकिन हक़ीम तारिक़ के परिवार वालों में निमेश कमीशन की रिपोर्ट और अक्षरधाम मंदिर हमले के मामले में सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फ़ैसले के बाद उम्मीद की एक नई किरण ज़रूर जगा दी है.

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari