शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले वतन पे मिटने वालो का यही बाकी निशाँ होगा... लेकिन गोरखपुर में एक शहीद का स्मृति स्थल ऐसा है जहां शहीद का निशां तो हैं लेकिन कोई मेला नहीं लगता है...

GORAKHPUR : देश की आजादी में अपना जीवन अर्पित करने वाले महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और रोशन सिंह को 19 दिसंबर, 1927 को फांसी पर चढ़ा दिया गया था। इस दिन को हम बलिदान दिवस के रूप में मनाते हैं। इन लोगों ने देश को आजाद कराने में क्रांतिकारियों की मदद के लिए काकोरी में एक ट्रेन के खजाने को लूटा था। इसे हम लोग काकोरी कांड के नाम से जानते हैं। इसी आरोप में तीनों को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था।

फांसी से पहले यूं बताए दिल के अरमान

आजादी की लड़ाई के दौरान चर्चित काकोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल को जब गोरखपुर जेल में फांसी के फंदे चढाने के लिए लाया गया था तब उन्होंने फांसी के तख्ते पर खडे होकर कहा था 'I wish the downfall of British Empire! अर्थात मैं ब्रिटिश साम्राज्य का पतन चाहता हूँ!' उसके वाद एक शेर कहा - ?

'अब न अह्ले-वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,

एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है!'


 

गोरखपुर जेल की दीवारों में कैद है बिस्मिल का स्मारक
इसके बाद फांसी की रस्सी खींची और रामप्रसाद बिस्मिल फाँसी पर लटक गये।" इसके बाद देश में आजादी का आंदोलन तेज हुआ, क्रांतिकारियों का संघर्ष् रंग लाया और देश आजाद हुआ। लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल आजाद भारत में गोरखपुर के जेल से अभी भी आजाद नहीं हो पाए। जी हां यह हकीकत है। गोरखपुर जेल के उस स्मृति स्थल की जहां बिस्मिल को फांसी दी गई थी, वहां आम पब्लिक नहीं जा सकती है। यह जेल की चाहरदिवारी में ही कैद है। अब इसे पब्लिक के लिए सहज आवागमन के लिए आवाज उठने लगी है। कई संगठन यह मांग करने लगे हैं कि इस ऐतिहासिक स्थान को आम आदमी के लिए आजाद किया जाए।

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Posted By: Chandramohan Mishra