- ऑपरेशन रक्षक के दौरान शहीद हुए 14 राष्ट्रीय राइफल्स के जवान हर्षवर्धन सिंह बिसेन की पत्नी ने दोनों बेटों को सेना में भेजने की जताई इच्छा

- परिवार और सरकार से मिली उपेक्षा भी बेअसर, पाकिस्तान से दो-दो हाथ करने सीमा पार जाने को भी तैयार

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LUCKNOW : पति के शहीद होने के बाद ससुरालीजनों ने घर से निकाल दिया। सरकार से भी मदद के नाम पर उपेक्षा ही मिली, लेकिन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद दिल में देशभक्ति का जज्बा बरकरार है। हम बात कर रहे हैं कश्मीर के बांदीपोरा में आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद हुए 14 राष्ट्रीय राइफल्स के जवान हर्षवर्धन सिंह बिसेन की पत्‍‌नी शमा सिंह की। अपनी मां के घर रहकर जीवन-यापन कर रहीं शमा इन सबके बावजूद अपने दोनों बेटों को सेना में भेजने की इच्छा जताती हैं। इतना ही नहीं, वे अपने पति और शहीद हुए भारत मां के दूसरे बेटों का बदला लेने के लिये सीमा पार जाने को भी तैयार हैं।

कैंप पर हमला करने वाले थे आतंकी

फरुर्खाबाद स्थित भरतपुर के मूल निवासी हर्षवर्धन सिंह ने वर्ष 2000 में राष्ट्रीय राइफल्स ज्वाइन की। ट्रेनिंग के बाद उन्हें कश्मीर के बारामूला जिले में तैनाती मिली। बांदीपोरा इलाके में राष्ट्रीय राइफल्स का कैंप था। 23 जुलाई 2005 को सूचना मिली कि हिज्बुल मुजाहिदीन के तीन फिदायीन आतंकी कैंप के करीब एक घर में छिपे हैं और देररात कैंप पर हमला करने वाले हैं। सूचना मिलते ही राष्ट्रीय राइफल्स की टुकडि़यों ने उस मकान को घेर लिया। जवानों को घेराबंदी करता देख मकान के भीतर मौजूद आतंकियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। जवानों ने भी आतंकियों की फायरिंग का भरपूर जवाब दिया। पर, आतंकी काबू में नहीं आ पा रहे थे।

2 आतंकियों को ढेर कर हुए शहीद

इसी बीच हर्षवर्धन सिंह बिसेन ने मकान के भीतर घुसकर आतंकियों से निपटने का निर्णय किया और वे सामने से बरसती गोलियों की परवाह किये बगैर किसी तरह मकान में दाखिल हो गए। भीतर घुसते ही उन्होंने बेहद सावधानी से मकान का जायजा लिया और एक-एक कर दो आतंकियों को गोली मारकर ढेर कर दिया। हालांकि, इसके बाद उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया और मकान में मौजूद आतंकी ने हर्षवर्धन को छिपकर गोली मार दी। गोली लगते ही वे खून से लथपथ होकर जमीन पर गिर पड़े। इसके बाद उस आतंकी ने उनके सीने में दर्जनों गोलियां उतार दीं, जिससे वे मौके पर ही शहीद हो गए।

टूटा दुखों का पहाड़

जिस वक्त हर्षवर्धन सिंह शहीद हुए उस वक्त उनकी शादी को महज दो साल और कुछ महीने ही बीते थे। पत्नी शमा सिंह बिसेन बताती हैं कि उस वक्त उनका डेढ़ साल का बेटा अमन था जबकि, पेट में उनकी दूसरी संतान पल रही थी। हर्षवर्धन के शहीद होने की सूचना मिलने के छह दिन बाद उनके दूसरे बेटे यशवर्धन ने जन्म लिया। कुछ महीनों तक सबकुछ ठीक चला लेकिन, इसी बीच केंद्र सरकार की ओर से 7.50 लाख रुपये की आर्थिक मदद शमा सिंह को मिली। उन्होंने यह रकम दोनों बेटों के भविष्य की जरूरतों के मद्देनजर बैंक में जमा कर दी। यह बात उनके ससुरालीजनों को नागवार गुजरी। शमा ने बताया कि उनके बेटों को जमीन में हिस्सा न देना पड़े, इसके लिये उन्हें घर से ही निकाल दिया गया। पति की जुदाई के साथ ही शमा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।

माता-पिता ने दी पनाह

आखिरकार उन्हें राजधानी के वृंदावन कॉलोनी में रहने वाले माता-पिता ने शमा को पनाह दी। जहां वे अब तक रह रही हैं। शमा ने बताया कि उन्होंने वर्ष 2005 से अब तक कई बार प्रदेश के मुख्यमंत्रियों व केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात कर मृतक आश्रित कोटे की नौकरी या आर्थिक मदद मांगी लेकिन, किसी ने भी उनकी मदद नहीं की। सेना की ओर से हर्षवर्धन को मरणोपरांत सेना मेडल का सम्मान प्रदान किया गया। साथ ही उनकी पत्नी को शहीदों के परिजनों को दी जाने वाली गैस एजेंसी देने की अनुशंसा की गई। पर, तमाम ऑयल कंपनियों में दरख्वास्त लगाने के बावजूद उन्हें किसी भी कंपनी ने गैस एजेंसी नहीं दी।

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बदला लेने के लिये सीमापार जाने को तैयार

तमाम विपरीत परिस्थितियों और सरकार व परिवार से मिली उपेक्षा के बावजूद शमा सिंह के दिल में देशभक्ति का ज्वार ठंडा नहीं पड़ा है। आर्मी पब्लिक स्कूल में पढ़ रहे दोनों बेटों अमन व यशवर्धन को शमा देश की रक्षा के लिये सेना में भेजना चाहती हैं। इतना ही नहीं, शमा का कहना है कि अगर सरकार व सेना उन्हें इजाजत दे तो वह पाकिस्तान के भीतर जाकर पति की शहादत का बदला लेना चाहती हैं।

Posted By: Inextlive