ALLAHABAD: एक थे भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान था. उन्होंने भी कसम ली थी कि जब तक परिवार पूरी तरह सुरक्षित हाथों में नहीं चला जाएगा वे अंतिम सांस नहीं लेंगे. ठीक वैसी ही कसम ली है यमुना पर बने नैनी पुल ने. पिछले 152 साल से सैकड़ों बाढ़ के थपेड़े और भूकंप के झटके झेलने के बावजूद सीना ताने हुए है.

200 ट्रेनों से पर डे तीन से चार लाख पैसेंजर करते हैं इसी पुल से होकर सफर
balaji.kesharwani@inext.co.inALLAHABAD: एक थे भीष्म पितामह, जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान था। उन्होंने भी कसम ली थी कि जब तक परिवार पूरी तरह सुरक्षित हाथों में नहीं चला जाएगा, वे अंतिम सांस नहीं लेंगे। ठीक वैसी ही कसम ली है यमुना पर बने नैनी पुल ने। पिछले 152 साल से सैकड़ों बाढ़ के थपेड़े और भूकंप के झटके झेलने के बावजूद सीना ताने हुए है। इसके मेंटेनेंस का भार उठाने वाले रेलवे अधिकारियों का मानना है कि आने वाले 100 साल तक यह पुल यूं ही सलामत रहेगा। गौरतलब है कि इस पुल से पर डे 200 से अधिक पैसेंजर, मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों के साथ ही मालगाडि़यां गुजरती हैं।

1855 में प्लान, 1865 में तैयार
दिल्ली और हावड़ा को एक दूसरे से जोड़ने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1855 में यमुना नदी पर पुल का प्लान बनाया था। 1865 में पुल बनकर तैयार हुआ। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि ब्रिज को अब भी कोई खतरा नहीं है। क्योंकि पुल के नींव की गहराई 42 फीट तक है। इसके पिलर आज भी बहुत मजबूत हैं। यमुना पुल वैसे तो 14 पिलर पर खड़ा है, लेकिन 13 पिलरों से अलग 14वां पिलर हाथी पांव की तरह पैर जमाए हुए है।

तीन से चार लाख पैसेंजर करते हैं सफर
यमुना नदी पर बने पुराने पुल से पर डे करीब 200 से ज्यादा ट्रेनें गुजरती हैं। इससे तीन से चार लाख से अधिक पैसेंजर पर डे सफर करते हैं। पुराने हो चुके यमुना पुल के अस्तित्व पर कई बार सवाल उठ चुके हैं, लेकिन रेलवे द्वारा यही दावा किया जाता है कि पुल पुरी तरह से ठीक है।

डीएफसी के निर्माण के बाद घटेगा लोड
दिल्ली-हावड़ा रूट पर मालगाडि़यों का लोड कम करने के लिए ही रेलवे द्वारा डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर बनाया जा रहा है। इसका काम पूरा होने के बाद दिल्ली हावड़ा रूट के साथ ही यमुना ब्रिज पर भी ट्रेनों का लोड कम हो जाएगा। बम्हरौली से सुबेदारगंज होते हुए बाहर-बाहर ही ट्रैक बनाया जा रहा है। इसकी वजह से मालगाड़ी यमुना पुल की तरफ आएगी ही नहीं।

फैक्ट फाइल

ब्रिटिश शासन काल के सबसे पुराने पुलों में से एक गऊघाट यमुना पुल नायाब इंजीनियरिंग का नमूना है। ये हावड़ा-दिल्ली रेल मार्ग के प्रमुख पुलों में शामिल है।

3150 फीट लंबा है यमुना पुल

1855 में पुल बनाने की डिजाइन के साथ तैयारी शुरू हुई थी।

1859 में पुल बनाने का काम शुरू हुआ।

15 अगस्त 1865 में पुल तैयार हुआ

44 लाख 46 हजार 300 रुपए की लागत आई थी पुल बनाने में

190 ट्रेनें हर दिन गुजरती हैं इस पुल से

14 लाख, 63 हजार 300 रुपए के लोहे के ठोस गार्डर लगे हैं पुल में

1913 में दोहरीकरण किया गया, पहले एक ही लेन में था पुल।

1929 में पुल की रीगार्डरिंग हुई थी

यह है इसकी मजबूती का राज
इस पुल में 61 मीटर के त्रिकोणीय गार्डर वाले 14 स्पैन, प्लस 12.20 मीटर के प्लेट गार्डरों के 2 स्पैन, 9.18 स्पेन आर्ज के हैं। पुल के नीचे का ढांचा लाइन मोटा रेट की राजगिरी वाले वेल फाउंडेशन पर है। इसकी गहराई 42 से 27.55 फीट तक है।

वर्जन

यमुना पुल पुराना जरूर हो चुका है, लेकिन इसके मेंटेनेंस और देखरेख में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं बरती जाती। इसकी वजह से पुल आज भी पूरी तरह से फिट है। डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर बनने के बाद मालगाड़ी यमुना पुल से नहीं गुजरेंगी। इससे पुल पर लोड भी कम हो जाएगा।

-गौरव कृष्ण बंसल

सीपीआरओ, एनसीआर

Posted By: Inextlive