कक्षा 7 और 11 से ड्रापआउट होने के बाद दरिंदे के संपर्क में आई 'दुर्गा और देवी'

केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का जिला स्तर पर नहीं हो रहा सफल क्रियान्वयन

योजनाओं के मद में आ रही करोड़ों की धनराशि का हो रही बंदरबांट

Meerut. कक्षा 7 और कक्षा 11 की ड्रापआउट 'दुर्गा' और 'देवी' को भविष्य के सपने दिखाकर दरिंदे ने अपने जाल में फंसाया था. कहते हैं कि सरकारी सहायता यदि मासूमों को मिल जाती तो वे दरिंदे के चंगुल में न फंसती. इसका खुलासा होने के बाद सिस्टम उंगली उठना लाजिमी है. दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की मेरठ में महिला एवं बाल संरक्षण के संचालित योजनाओं की पड़ताल में निकलकर आया कि 'दुर्गा' और 'देवी' का गुनाहगार वो दरिंदा (विमल चंद) ही नहीं बल्कि सिस्टम भी है.

कागजों में स्पांसरशिप योजना

केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के मद में आ रहे करोड़ों रुपए का हर साल प्रोबेशन विभाग बंदरबांट कर रहा है, वहीं बालक-बालिका की शिक्षा के लिए संचालित स्पांसरशिप योजना के लाभार्थी की संख्या शून्य है. केंद्र सरकार की इस योजना के तहत उन बालक-बालिकाओं की शिक्षा का बंदोबस्त किया जाता है जो धनभाव के चलते आगे पढ़ाई करने में असमर्थ होते हैं. 'दुर्गा और देवी' को स्पांसरशिप योजना का लाभ इसलिए नहीं मिल पाया था, क्योंकिजिला बाल संरक्षण कमेटी (डीसीपीसी) की इन पर नजर नहीं थी. और नजर भी कैसे होती? जागरूकता केनाम पर खानापूर्ति हो रही है योजनाओं का प्रचार-प्रसार पात्र लाभार्थी तक नहंी पहुंच रहा है.

दम तोड़ रही आईसीपीएस

गौरतलब है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से एक विस्तृत योजना समेकित बाल संरक्षण योजना (आईसीपीएस) का संचालन हर जनपद में किया जा रहा है. स्कीम का उद्देश्य देश में बच्चों के लिए एक संरक्षणकारी वातावरण तैयार करना है. यह योजना केंद्रीय रूप से प्रायोजित योजना है जो न केवल गलीकूचों और कामकाजी बच्चों के लिए है बल्कि किशोर न्याय का प्रशासन आदि जैसी मंत्रालय की मौजूदा सभी बाल संरक्षण योजनाओं को एक प्लेटफार्म पर लेकर आती है. स्पांसरशिप योजना का संचालन भी आईसीपीएस के तहत किया जा रहा है. इस योजना के सफल क्रियान्वयन में जिला बाल संरक्षण कमेटी नाकाम साबित हो रही है. देश में 2010 मे आईसीपीसी लांच हुई थी तो मेरठ में 2012 में जिला बाल संरक्षण कमेटी का गठन हुआ था.

जिला स्तर पर

जिला बाल संरक्षण सोसाइटी (डीसीपीएस)

जिला बाल संरक्षण कमेटी (डीसीपीसी)

स्पांसरशिप एंड फोस्टर केयर एप्रूवल कमेटी (एसएफसीएसी)

ब्लाक स्तर बाल संरक्षण कमेटी

ग्राम स्तर बाल संरक्षण कमेटी

स्टेट स्तर पर..

स्टेट बाल संरक्षण सोसाइटी (एससीपीएस)

स्टेट बाल संरक्षण कमेटी (एससीपीसी)

स्टेट एडॉप्टेशन रीसोर्स एजेंसी

स्टेट एडॉप्टेशन एडवाइजरी कमेटी

रीजनल सेंटर लेवल पर..

चाइल्ड प्रोटेक्शन डिवीजन फॉर 4 रीजन

चाइल्ड लाइन इंडिया फाउन्डेशन फॉर 4 रीजन

नेशनल लेवल पर..

चाइल्ड लाइन इंडिया फाउन्डेशन

चाइल्ड प्रोटेक्शन डिवीजन फॉर नेशनल लेवल

सेंट्रल एडॉप्टेशन रीसोर्स एजेंसी (सीएआरए)

मेरठ में..

आईसीपीएस के तहत मेरठ में बाल संरक्षण अधिकारी समेत 11 कर्मचारियों की तैनाती है.

स्कीम के तहत सालाना करोड़ों रुपए की ग्रांट केंद्र सरकार द्वारा रिलीज की जा रही है जिससे अवेयरनेस कैंपेन, फर्नीचर, वाहन, कर्मचारियों का वेतन, फर्नीचर आदि पर खर्च किया जाता है.

मेरठ में स्कीम के तहत मिले वाहन को डीपीओ प्रयोग में ला रहे हैं तो वहीं इन्फ्रास्ट्रक्चर और मैन पॉवर का भी सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है.

20 सदस्यीय है डीसीपीसी

जिलाधिकारी, अध्यक्ष

जिला प्रोबेशन अधिकारी, सदस्य सचिव

जिला विकास अधिकारी

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक

जिला मुख्य चिकित्साधिकारी

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी

जिला कार्यक्रम अधिकारी

जिला दिव्यांग जन कल्याण अधिकारी एवं अन्य जिला स्तरीय अधिकारी.

बैठकों में होती है खानापूर्ति

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के तहत अवेयरनेस कैंपेन के नाम पर महज खानापूर्ति. स्लम एरिया और जरूरतमंदों तक केंद्र सरकार की योजना का लाभ नहीं पहुंच रहा.

बाल संरक्षण की उत्तरदायी बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) भी पूर्ण रूप से कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर पा रही है. संवेदनशील प्रकरणों में सीडब्ल्यूसी की संवेदनहीनता पहले भी उजागर हो चुकी है.

कहां हैं शिक्षा विभाग?

8-14 वर्ष तक के बालक-बालिकाओं के लिए 'राइट टू एजुकेशन' के तहत कक्षा 8 तक निशुल्क शिक्षा के संवैधानिक अधिकारों का हनन हुआ है. 'दुर्गा और देवी' ने अपनी शिक्षा को निरंतर रखने के प्रयास में दरिंदे के चंगुल में फंसी. ऐसे में शिक्षा विभाग भी बराबर का दोषी है, जबकि शिक्षा विभाग द्वारा समय-समय पर ड्रॉपआउट स्टूडेंट्स को ट्रैस करने के लिए अभियान भी चलाया जाता है.

डीसीपीसी की बैठक को अब नियमित किया जाएगा. 'दुर्गा' और 'देवी' के गुनाहगारों के साथ-साथ बाल संरक्षण के लिए जिम्मेदार विभागों और समितियों की जबावदेही तय होगी. इस प्रकरण पर एक जांच कमेटी बना दी गई है. कमेटी की रिपोर्ट के बाद संबंधित के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित होगी.

अनिल ढींगरा, जिलाधिकारी, मेरठ

आमतौर पर केंद्र सरकार की स्कीम के संचालन के लिए डीसीपीसी को हर 3 माह में बैठक के निर्देश किशोर न्याय समिति, उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ की ओर से दिए गए हैं. बैठक की कार्यवृत्ति को भी उच्च न्यायालय को भेजना होता है. किंतु आश्यर्चजनक है कि इन बैठकों में महज खानापूर्ति होती है. आलम यह है कि कमेटी के अध्यक्ष डीएम अनिल ढींगरा एक भी बैठक में शामिल नहीं हुए हैं. वहीं जिला प्रोबेशन अधिकारी शत्रुघन कनौजिया को आईसीपीएस के मद में हो रहे खर्च की जानकारी नहीं है.

गुनाहगारों में शामिल यह भी..

मेरठ के पॉश इलाके में गत 8 माह से मासूमों के साथ दरिंदगी हो रही थी और केंद्र सरकार द्वारा ऐसे अपराधों की रोकथाम के लिए संचालित एनजीओ चाइल्ड लाइन को इसकी भनक तक नहीं लगी. इससे स्पष्ट होता है कि चाइल्ड लाइन अपनी भूमिका का सही से निर्वहन नहीं कर रही है.

घटनास्थल से महज 200 मीटर दूसरी पर राज्य सरकार द्वारा संचालित आशा ज्योति केंद्र और केंद्र सरकार द्वारा संचालित वन स्टाप सेंटर भी बालिकाओं को सुरक्षा देने में नाकाम रहा.

Posted By: Lekhchand Singh