-1988 में तालनदोर में गन्ना शोध संस्थान के लिए पास हुआ था प्रस्ताव

-स्थानीय लोगों के विरोध पर फिर सेवरही में बना गन्ना शोध संस्थान

-इसी जमीन पर 2003 में एयरपोर्ट बनाने के लिए हुआ था सर्वे

GORAKHPUR: पैसा कमाने की चाहत में प्रकृति से खिलवाड़ कोई नई बात नहीं है। काफी समय से शहर में ये खेल चल रहा है। गोरखपुर में जब से प्लाटिंग और बिल्डिंग बनाने का बिजनेस शुरू हुआ है तब से न जाने कितने पोखरे और ताल अचानक से गायब हो गए। यही हाल तालनदोर का भी हुआ। बनारस रोड के ठीक बगल का ये ताल शुरू से ही बहुत लोगों की नजरों में गढ़ा हुआ था। इन लोगों ने जैसे ही मौका पाया इसपर जहां-तहां अपना कब्जा जमा लिया। कब्जा जमाने वाले लोग इतने शक्तिशाली थे कि करीब दो सौ ऐसे मूल काश्तकार जिनकी जमीन ताल के किनारे थी उस पर भी कब्जा जमा लिए। जिन लोगों की जमीन पर कब्जा हुआ वे लोग आज भी इस पाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। साथ ही उन्हें इस बात का इंतजार है कि जिस दिन ताल की जमीन की चकबंदी होगी उसी दिन उसके अगल-बगल के मूल काश्तकारों को भी अपना हक मिल जाएगा।

17-18 सौ एकड़ में था ताल

बेलीपार इलाके के वो लोग जिन्होंने इस ताल को देखा है। वे बताते हैं कि एक समय था जब ताल 17-18 सौ एकड़ में फैला हुआ था। जिसमे से 514 एकड़ जमीन केवल ताल के नाम पर थी। बाकी जमीन इस इलाके के रहने वालों के नाम से थी। मौजूदा समय में ताल तो कब्जा हुआ ही साथ में कई ऐसे लोग जिनकी जमीन ताल के अगल-बगल थी उसे भी कब्जा कर प्लाटिंग शुरू कर दी गई।

बांध बनने के बाद ताल में कम होने लगा पानी

तालनदोर के आस-पास के लोगों का कहना है कि 1980 के करीब भौवापार- बेला बांध बनाया गया था। जिसके बाद ताल और नदी के बीच का कनेक्शन कट गया। इसके बाद ताल में नदी का पानी तो आ नहीं पाता था केवल बरसात में के भरोसे इसका अस्तित्व था। लेकिन आखिर तक ताल में पानी मौजूद था जिसे बिल्डरों ने पाट-पाट कर खत्म कर दिया और वहां कालोनी बनाना शुरू कर दी।

गन्ना शोध संस्थान बनाने का बना था प्रस्ताव

इस इलाके के लोगों का कहना है कि जब वीर बहादुर सिंह यूपी के सीएम बने थे तब तालनदोर में गन्ना शोध संस्थान बनाने का प्रस्ताव पास हुआ था। इसके बाद बकायदा ट्रैक्टर लगाकर जमीन को बराबर करने का काम भी शुरू हो गया था। जिसे स्थानीय लोगों के विरोध में रोकना पड़ा और बाद में इसे कुशीनगर सेवरही में शिफ्ट किया गया। इसी तरह मुलायम सिंह की सीएम बनने के बाद इसी जमीन पर एयरपोट बनाने की भी बात चली थी। जिसमे एयरपोर्ट अथारिटी ने चार से पांच दिन तक सर्वे भी किया था। जो बाद में किसी कारण से नहीं पूरा हो पाया।

ताल के बगल में ही मेरी भी जमीन थी जिस पर अवैध कब्जा हो गया। इसकी कंपलेन भी दर्ज करा दी है। चकबंदी होगी तो सच्चाई का खुलासा होगा।

संजय सिंह

ताल पर कब्जे को लेकर इस इलाके के सभी लोग एक हो रहे हैं। ताल को खाली कराने के लिए हम लोग अधिकारियों से मिलेंगे।

आलोक शुक्ला

मेरी जमीन भी ताल के पास ही थी। ताल के साथ ही इस पर भी लोगों ने कब्जा कर लिया है। ताल की चकबंदी होगी तो हमारी भी जमीन हमे मिल जाएगी।

दिवाकर

ताल का अस्तित्व 10 साल पहले समाप्त होना शुरू हुआ। जब इस पर प्लाटिंग कर बिजनेस शुरू किया गया। इसे पाट-पाटकर खत्म कर दिया गया।

सीमा सिंह

Posted By: Inextlive