होली भारत के लगभग हर राज्‍य और संप्रदाय में बड़े उत्‍साह से मनायी जाती है। कई जगह पर इसे अलग नाम से मनायी जाती है। आइये आज आपका परिचय कराते हैं होली के ऐसे ही कुछ रीजनल नामों से।

लठ्ठमार होली
कृष्ण और होली का गहरा रिश्ता है और उसी का प्रतीक है ब्रज के बरसाना गांव में की लठ्ठमार होली। कहते हैं नंदगांव की टोलियां जब पिचकारियां लिए बरसाना पहुंचती हैं तो उन पर बरसाने की महिलाएं खूब लाठियां बरसाती हैं। पुरुषों को लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है।

दुल्हंडी होली
हरियाणा में होली मौज और मस्ती का त्योहार है यहां देवर और भाभी के बीच रंग खेलने की परंपरा है और इसे दुल्हंडी कहते हैं। 

रंगपंचमी
महाराष्ट्र में होली के बाद पंचमी के दिन रंग खेलने की परंपरा है। यह रंग सामान्य रूप से सूखा गुलाल होता है। विशेष भोजन बनाया जाता है जिसमे पूरनपोली अवश्य होती है।

बसंत उत्सव
जब पूरा देश होली मनाता है उस समय पश्चिम बंगाल के सिल्लीगुड़ी में वसंत महोत्सव मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में बसंत उत्सव यानि होली की शुरूआत बंगाली कवि और लेखक रविन्द्रनाथ टैगोर ने की थी। इस आयोजन को देखने के लिए बंगाल ही नहीं, बल्कि देश के दूसरे हिस्सों और विदेशों तक से भी भारी भीड़ उमड़ती है। इस मौक़े पर एक जुलूस निकाल कर अबीर और रंग खेलते हुए विश्वविद्यालय परिसर की परिक्रमा की जाती है।

दोल पुर्णिमा
दोल जात्रा या दोल पूर्णिमा बंगाल में होली से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन महिलाएँ लाल किनारी वाली पारंपरिक सफ़ेद साड़ी पहन कर शंख बजाते हुए राधा-कृष्ण की पूजा करती हैं और प्रभात-फेरी का आयोजन करती हैं। इसमें गाजे-बाजे के साथ, कीर्तन और गीत गाए जाते हैं।

होला मोहल्ला
सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनन्दपुर साहिब मे होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है। सिखों के लिये यह धर्मस्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहाँ पर होली पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनाई जाती है। इसीलिए दशम गुरू गोविंद सिंह जी ने होली के लिए पुल्लिंग शब्द होला मोहल्ला का प्रयोग किया।

शिमगो  
गोवा के निवासी होली को कोंकणी में शिमगो या शिमगोत्सव कहते हैं। वे इस अवसर पर वसंत का स्वागत करने के लिए रंग खेलते हैं। इसके बाद भोजन में तीखी मुर्ग या मटन की करी खाते हैं जिसे शगोटी कहा जाता है। मिठाई भी खाई जाती है। गोआ में शिमगोत्सव की सबसे अनूठी बात पंजिम का वह विशालकाय जलूस है जो होली के दिन निकाला जाता है। यह जलूस अपने गंतव्य पर पहुँचकर सांस्कृतिक कार्यक्रम में परिवर्तित हो जाता है। 

फगु पूर्णिमा
बिहार में वसंत पंचमी के बाद ही पूर्वांचल के जनपदों में होली के गीत गाए जाने लगते हैं और ये सिलसिला होली तक बरकरार रहता है। होली वाले दिन फगु पूर्णिमा होती है लेकिन अंग प्रदेश में इसे फगुआ कहते हैं। फगुआ मतलब फागुन, होली। इस दिन की परम्परा यह है कि सुबह सुबह धूल-कीचड़ से होली खेलकर, दोपहर में नहाकर रंग खेला जाता है, फिर शाम को अबीर लगाकर हर दरवाजे पर घूमके फगुआ गाया जाय। फगुआ का विशेष पकवान पिड़की (गुझिया) हर घर में बनता है।

 

कमन पोडिगई
तमिलनाडु में होली का दिन कामदेव को समर्पित होता है। इसके पीछे कहानी है कि तपस्या लीन शिव के मन में उनके लिए तपस्या कर रही पार्वती का प्रेम जगाने के लिए कामदेव तीर चलाया और क्रोधित शिव ने उन्हें भस्म कर दिया पर काम का तीर लगने से पावर्ती से विवाह भी कर निया। बाद में पार्वती के अनुरोध और कामदेव की पत्नी के विलाप से द्रवित शिव ने कामदेव को जीवित कर दिया। तब से यह दिन होली का होता है। आज भी रति के विलाप को लोक संगीत के रुप मे गाया जाता है और चंदन की लकड़ी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को भस्म होने मे पीड़ा ना हो। साथ ही बाद मे कामदेव के जीवित होने की खुशी मे रंगो का त्योहार मनाया जाता है।

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Posted By: Molly Seth