Lucknow: अभी तक हम व्हाइट ब्रेड का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन अब लोग धीरे-धीरे ब्राउन ब्रेड और होल ग्रेन ब्रेड की ओर टर्न हो रहे हैं. कहने को यह चलन नया हो सकता है लेकिन यूरोपियन कंट्रीज में पहले से ही लोगों ने व्हाइट ब्रेड को खाना बंद कर दिया यही नहीं स्वीडन की गवर्नमेंट ने तो व्हाइट ब्रेड पर भारी टैक्स भी लाद दिए हैं. इंडिया में व्हाइट ब्रेड जितनी सस्ती है उतना ही स्वीडन में महंगी है. डॉटक्र्स की मानें तो रिसर्चेज में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि व्हाइट ब्रेड सेहत के लिए हार्मफुल है. जिसके कारण लोग अब इसे अवायड कर रहे हैं.

लखनऊ में बढ़ी ब्राउन ब्रेड की मांग

ग्रेटर नोएडा, गुडग़ांव, बंगलुरु जैसे मेट्रो सिटीज के बाद अब लखनऊ में भी ब्राउन ब्रेड और होल ग्रेन ब्रेड का चलन तेजी से बढ़ रहा है। सिटी की फेमस बेकरीज पर लोग व्हाइट ब्रेड की जगह ब्राउन ब्रेड की डिमांड कर रहे हैं। संजय गांधी पीजीआई के गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी डिपार्टमेंट के एक्स-एचओडी व गुडग़ांव स्थित फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ। जी चौधरी ने बताया कि पहले हम जो घर में खाते था उसमें नेचुरल ग्रेन्स प्रोडक्ट अधिक होते थे। लेकिन पिछले 30 से 40 सालों में हमारा फूड रिफाइन या महीन होता गया। जिसके कारण ही इसमें व्हाइटनेस बढ़ती गई। आज भोजन में मैदा ज्यादा होता है और फाइबर कम। जिसके कारण डायबिटीज, वहन, हार्ट डिजीज की समस्याएं बढ़ी हैं। इंडिया में मेट्रो सिटीज में अब लोग ब्राउन ब्रेड या होल ग्रेन ब्रेड को ज्यादा प्रिफर कर रहे हैं। इन्हें खाने पर ब्लड शुगर लेवल धीरे-धीरे बढ़ता है।

बढ़ता है कैंसर का खतरा

डॉ। जी चौधरी ने बताया कि रिफाइंड फूड व उनसे बने प्रोडक्ट्स को खाने से कोलनका कैंसर का खतरा बढ़ा है। वेस्टर्न कंट्रीज में तो व्हाइट ब्रेड को धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। क्योंकि यह पूरी तरह से मैदा से बनती है जो बहुत ही महीन होता है। नोएडा, गुडग़ांव, में मल्टी नेशनल कम्पनियों में काम करने वाले लोग व्हाइट ब्रेड को बहुत तेजी से अवायड कर रहे हैं। लखनऊ में यह कल्चर अब शुरू हो रहा है।

काफी हार्मफुल है

रिसर्चेज में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि व्हाइट ब्रेड हमारी बॉडी के लिए हार्मफुल है। इसीलिए डॉक्टर्स, और डाइटीशियन होल ग्रेन्स ब्रेड या फिर ब्राउन ब्रेड को खाने की सलाह देते हैं।

एक साल में बढी डिमांड

मेट्रो सिटीज के बाद अब लखनऊ में ब्राउन ब्रेड या होल ग्रेन ब्रेड की डिमांड बढ़ रही है। पिछले एक साल में इसकी डिमांड तेजी से बढ़ी है। हालांकि इसकी डिमांड करने वालों में हाई क्लास के हेल्थ कांशियस लोग और पढ़े खिले लोग ही है जो मिस्टर ब्राउन या जेजे बेकर्स में जाकर ब्राउन ब्रेड या होल ग्रेन ब्रेड की डिमांड करते हैं।

ब्राउन ब्रेड है फायदेमंद

डॉक्टर्स की मानें तो ब्राउन ब्रेड डायबिटीज ओवरवेट, कांस्टीपेशन के लिए अच्छा है। लंाग टर्म में कोरोनरी आर्टरी डिजीज और कोलन कैंसर कम होता है। जबकि व्हाइट ब्रेड एजिंग को बढ़ाता है। रिसर्चर्स की माने तो जो लोग डायबिटिक हैं या वेट लूज करना चाहते हैं उन्हें ग्रेन्स को अवायड करना चाहिए।

बढ़ता है शुगर लेवल

ब्रेड को बनाने के लिए अनाज के दानों को बहुत अधिक पीस लिया जाता है। जितना महीन होगा वह उतना अधिक सफेद होता जाएगा। गेहूं का आटा जब बहुत अधिक महीन पीस दिया जाता है तो वह मैदा बन जाता है। इसी मैदा से ही व्हाइट ब्रेड बनाई जाती हैं। इसमें पोषक तत्व बचे रहते हैं। यह प्रोडक्ट तेजी से डाइजेस्ट हो जाते हैं।

मोटापे का बनता है कारण भी है कारण

डॉक्टर्स की माने तो व्हाइट ब्रेड या फाइन ग्रेन फूड प्रोडक्ट्स को खाने के बाद ब्लड शुगर लेवल और इंसुलिन तेजी से बढ़ता है। साथ यह तेजी से नीचे भी आता है। ब्लड शुगर लेवल तेजी से कम होने के कारण हमें फिर से भूख लगती है और हम फिर खाते हैं। ज्यादा एनर्जी लेने के कारण हम मोटे होते जाते हैं।

ब्रेड का ग्लूटिन है खतरनाक

अधिकतर ब्रेड फाइन व्हीट से बनाया जाता है। यह इजली डाइजेस्ट हो जाते हैं और तेजी से ब्लड शुगर लेवल और इंसुलिन लेवल को इंक्रीज करते हैं। यह ओवरइटिंग को भी स्टीमुलेट करते हैं।

व्हाइट ब्रेड में ग्लूटिन नामक प्रोटीन बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती है। इस प्रोटीन में ग्लू की तरह की प्रापर्टीज पाई जाती है इसीलिए इसे ग्लूटीन कहते हैं। रिसर्चेज की माने तो ग्लूटिन हमारी डाइजेस्टिव ट्रैक्ट की वाल को डैमेज करता है जिससे पेन और कांस्टीपेशन होता है। ग्लूटिन आंत की लाइनिंग्स को डैमेज करके न्यूट्रिएंट्स के एब्जार्पशन को रोकता है। ग्लूटिन की सेंसिटीविटी ब्रेन से जुड़ी बीमारियों स्क्रीजोफ्रेनिया और सेरेबेलर अटैक्सिया का कारण होता है।

न्यूट्रिएंट्स का नहीं हो पाता एब्जार्पशन

व्हाइट ब्रेड में सिर्फ न्यूट्रिएंट ही कम नहीं होते बल्कि यह अन्य फूड प्रोडक्ट्स में से न्यूट्रिएंट्स के एब्जार्पशन को भी कम कर देता है। इसमें कुछ एंटीन्यूट्रिएंट्स भी होते हैं जो कैल्शियम, आयरन और जिंक के एब्जाब्र्शन को रोकती हैं। यही नहीं मिनरल्स की उपलब्ध भी कम होती है। इस व्हाइट ब्रेड में वेजीटेबल्स की अपेक्षा होल ग्रेन ब्रेड्स में कम न्यूट्रिएंट होते हैं। डॉक्टर्स कहते हैं कि

कोई भी व्यक्ति जो वेट लूज करना चाहता है, या फिर वेस्टर्न डाइट से अफेक्टेड है उसे अपनी डाइट से ब्रेड को रिमूव कर देना चाहिए। व्हाइट ब्रेड तो बिलकुल न लें। यदि आंत की डैमेज्ड वाल, ब्लड शुगर स्तर का उतार-चढ़ाव, टायर्डनेस, और बैड कोलेस्ट्रॉल में बढ़ोत्तरी होती है तो हमें ब्रेड खाना से ही बचना चाहिए।

स्वीडन में व्हाइट ब्रेड पर लाद दिया टैक्स

स्वीडन में व्हाइट ब्रेड पर टैक्स का बोझ लाद दिया है जबकि ब्राउन ब्रेड पर ऐसा नहीं है। गवर्नमेंट का मानना है कि व्हाइट ब्रेड से लोग बीमार होंगे और मोटापे का भी शिकार होंगे। जिसके कारण गवर्नमेंट अब व्हाइट ब्रेड को अधिक से अधिक महंगा करने के पूरे प्रयास कर रही है। जिसके तहत गवर्नमेंट ने व्हाइट ब्रेड पर टैक्स लाद दिया है साथ ही ब्राउन और होल ग्रेन ब्रेड को टैक्स फ्री कर दिया है।

फिश एंड डक्स के लिए बैन

कुछ यूरोपियन कंट्रीज में व्हाइट ब्रेड को इंसानों के साथ-साथ डक्स और फिश के लिए भी बैन कर दिया गया है। वहां की गवर्नमेंट का कहना है कि व्हाइट ब्रेड के कारण डक्स के डाइजेस्टिव सिस्टम पर असर पड़ रहा है साथ ही वे मोटापे का शिकार हो रही हैं। फिश पर भी व्हाइट ब्रेड का एडवर्श इफेक्ट देखा गया है जिसके कारण फिश फीडिंग में भी व्हाइट ब्रेड न देने को कहा गया है।

यह भी जानें

ब्रेड बनाने के दौरान लगभग 50 परसेंट कैल्शियम, 70 परसेंट फॉस्फोरस, 80 परसेंट आयरन, 98 परसेंट मैग्नीशियम, 75 परसेंट मैग्नीज, 50 परसेंट पोटैशियम, 65 परसेंट कॉपर डिस्ट्राय हो जाता है। साथ ही 80 प्रतिशत थायमीन, 60 प्रतिशत राइबोफ्लोविन, 75 परसेंट नियासिन, 50 परसेंट पैन्टोथेनिक एसिड और लगभग 50 प्रतिशत पाइरीडॉक्सिन भी लॉस्ट हो जाती है। यह आंकड़े कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर की ओर से की गई स्टडी के हैं। इसलिए व्हाइट ब्रेड को अवायड कर सकते हैं।

क्या कहते हैं एक्सपटर्स

मैदे से बनी सभी चीजों को अवायड करना चाहिए। क्योंकि इसमें कार्बोहाइड्रेट बहुत होता है। जो मोटापे और डायबिटीज के लिए हानिकारक है। इनका सेवन करने से कब्जियत भी होती है। इसलिए व्हाइट ब्रेड की जगह पर ब्राउन ब्रेड या मल्टी ग्रेन ब्रेड फिर करें। ब्राउन ब्रेड और मल्टी ग्रेन ब्रेड में फाइबर अधिक होता है। जो सेहत के लिए अच्छा है।

डॉडी हिमांशु, केजीएमयू

 

पहले सबसे अधिक व्हाइट ब्रेड (मैदे की ब्रेड) ही बिकती थी। लेकिन पिछले एक दो सालों में ट्रेंड बदला है इसके स्थान पर लोग होल व्हीट (आटे की ब्रेड), मल्टी ग्रेन और गार्लिक ब्रेड प्रिफर कर रहे हैं। कस्टमर्स यही कहते हैं कि व्हाइट ब्रेड की अपेक्षा ये ज्यादा सेहतमंद हैं।

राजकुमार, बृजवासी बेकरी

 

कैसी कैसी ब्रेडस

व्हाइट ब्रेड- मैदे से बनती है

ब्राउन ब्रेड - आटे से बनाई जाती है

होल ग्रेन ब्रेड- इसमें बहुत से अनाजों को समूचा ही डाला जाता है.

मल्टी ग्रेन- इसमें कई अनाजों को मिक्स करे बनाया जाता है.

मसाला ब्रेड- इसमें मसाला भी डाला जाता है.

गार्लिक ब्रेड - इसमें मैदे या आटे के साथ गार्लिक भी डाला जाता है।

कैसे बनती है ब्रेड

ब्रेड को बनाने के लिए मैदा या आटा में यीस्ट, नमक और चीनी डालकर उसे मिक्स किया जाता है। फिर उसे मोल्डिंग मशीन में डाला जाता है जिससे लोब्स कटकर आते हैं। फिर उन्हें फर्मेंटेशन करके फुलाया जाता है और उसके बाद उसे बेक किया जाता है। बस ब्रेड खाने के लिए तैयार हो जाती है।

 

Posted By: Inextlive