Kanpur: फायर आम्र्स जैसे पटाखे दे रहे हैैं साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम्स. पिछले कुछ सालों में आई ऐसे पटाखों की बाढ़


गोविंद नगर के-ब्लॉक में रहने वाले आरबीआई कर्मी ज्ञानेंद्र सिंह भदौरिया का पांच साल का बेटा उनसे जबरन दिवाली में पटाखे छुड़ाने के लिए गन स्टाइल वाली बंदूक लाने की जिद कर रहा था। एक बार मना करने पर वह अपनी मां को मार भी बैठा। दरअसल पटाखे छुड़ाने के लिए मार्केट में आए नए-नए ब्रांड बच्चों को बहुत ज्यादा अट्रैक्ट कर रहे हैैं। इनमें रिवॉल्वर, माउजर, हैैंडग्रेनेड स्टाइल के ट्वॉयज और फॉयरक्रैकर्स की रेंज बच्चों को खूब भा रही है। लेकिन शॉकिंग फैक्ट ये है कि ये अट्रैक्शन बच्चों के अंदर की चंचलता को आपराधिक मनोभावों में बदलने की ताकत रखता है। यही वजह है कि अपनी जिद पूरी न होने पर बच्चे ने अपनी मां पर हाथ तक उठा दिया। ऐसे में आई नेक्स्ट ने साइकोलॉजिस्ट्स और साइकेट्रिस्ट से जानने की कोशिश की कि बच्चों पर इस तरह के पटाखों या फिर ट्वॉय गन का कितना असर पड़ रहा है। फ्यूचर में असर दिखते हैं


दिवाली में खूब इस्तेमाल होने वाले हथियारों की स्टाइल वाले पटाखे बच्चों के अंदर हिंसक मनोभावों को बढ़ा रहे हैैं। जिसका असर उनके आगे आने वाले भविष्य पर भी पड़ेगा। हिंसक तत्वों व मनोवृत्ति के बढऩे पर बच्चों के भी आगे हिंसक होने तथा गलत दिशा की ओर मुडऩे की संभावना अधिक होती है।न्यूट्रोल होता है जिम्मेदार मनुष्य के मस्तिष्क में न्यूट्रोल नामक हार्मोन होते हैैं। जो मनुष्य के मस्तिष्क में हिंसक प्रवृत्तियों को बढ़ावा देते हैैं। जब हम किसी हीरो को फिल्म में देखते हैैं, जो विलेन के साथ जबरदस्त टक्कर ले रहा होता है, तो हमारे मस्तिष्क में यही न्यूट्रोल हॉर्मोन सक्रिय हो जाता है मस्तिष्क हमें हिंसक होने का आदेश देता है। इसकी उत्तेजना के फलस्वरूप मनुष्य के मन में हिंसक मनोभाव पुष्ट होते हैैं। हथियार रूपी पटाखे भी बच्चों के अंदर इसी तरह के इनबैैंलेस को जन्म देते हैैं। बच्चा ओवर एक्टिव हो जाता है। ये स्थिति आगे बढऩे पर धीरे-धीरे मनोभावों को बदल देती है। आगे चलकर वही बच्चा स्वभाव से हिंसक हो जाता है। रुक सकता है डेवलपमेंट

साइकोलॉजिस्ट एलबी सिंह ने बताया कि इस तरह के बच्चों का विकास अवरोधित होता है। हिंसा मन: स्थिति से स्वभाव में घर कर जाती है जिससे व्यक्ति हिंसक कार्यो की ओर जल्दी उन्मुख होता है। दरअसल 5 साल से पहले तक बच्चे का माइंड नीट एंड क्लीन होता है। उसके मनोभावों में अच्छे-बुरे, किसी तरह के विचार नहीं होते। और न ही वह समाज, देश, काल यहां तक की स्वयं की भी अच्छी बुरी बात समझता है। हिंसक मनोभाव यदि मस्तिष्क के अंदर भरने लगेंगे तो बच्चे का संपूर्ण व स्वस्थ विकास नहीं हो पाएगा। बच्चा बड़ा होने के बाद भी आकाक्षाएं पूरी न होने पर उग्र होता जाएगा।हिंसक मनोभाव देते हैैं कई व्याधियों को जन्म हिंसक मनोभाव व्यक्ति में कई तरह की व्याधियों को जन्म देते हैैं। व्यक्ति क्रोध, उग्रता, ईष्र्या आदि जैसे विकारों से ग्रसित हो जाता है। मन को शांत करने के लिए वो नशे व गलत आदतों का लती हो जाता है। प्रॉपर पेरेंटिंग नहीं होतीसाइकोलॉजिस्ट एलबी सिंह ने बताया कि 85 परसेंट पेरेंट्स प्रॉपर पेरेंटिंग के बारे में जानते ही नहीं हैं। वे बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैैं कि उनमें हिंसक प्रवृत्ति बढ़ती है। जब बच्चा जिद करता है। तो पेरेंट्स उसे मारपीट कर उसकी इच्छाओं को मार देते हैं। जो बच्चों के मन में इस बात को भरता है कि हिंसा और उग्रता की मदद से ही दूसरों की इच्छाओं को खत्म किया जा सकता है। जबकि बच्चों के मनोभावों को समझने की जरुरत है। जो आमतौर पर ज्यादातर पेरेंट्स नहीं कर पाते हैं। देश में 85 परसेंट पेरेंट्स ही बच्चों के कुंठित मनोविकारों के जिम्मेदार हैैं। डेवलप करें पॉजिटिव थिंकिंग

बच्चों में सकारात्मक सोच का विकास करना बहुत जरुरी है। साइकोलाजिस्ट डॉ। आराधना ने बताया कि सकारात्मक सोच का विकास करने से ही बच्चों को अपराध भावों से बचाया जा सकता है। ये पेरेंट्स की ड्यूटी है कि वे बच्चों को बताएं कि क्या सही है और क्या गलत है? नेगेटिव करेक्टर्स को हीरो न बनाएं, उन्हें विलेन ही रहने दें। पॉजिटिव करेक्टर्स को हीरो बनाएं। जिन बच्चों की मनोस्थिति में अपराध भाव भर जाते हैैं। ऐसे बच्चे हाइपर एक्टिव कहे जाते हैैं। इन बच्चों को काउंसिलिंग करके सही किया जा सकता है। अन्य नुकसान भी होते हैंसाइकोलॉजिस्ट डॉ। आराधना ने बताया कि दिवाली के पटाखों से अन्य नुकसान भी होते हैैं। दिल्ली में हुए एक सर्वे के अनुसार एक लाख की पॉपुलेशन में एक व्यक्ति फायर बर्न केस का होता है। जिसमें सबसे अधिक संख्या 5-14 वर्ष की उम्र तक के बच्चों की होती है। इसके अलावा अत्यधिक पटाखा छुड़ाने वाले बच्चों की कॉन्सनट्रेशन, लिसनिंग, लर्निंग पॉवर भी प्रभावित होती है।

Posted By: Inextlive