Gorakhpur : हैलो भाई पेन है लेकिन रिफिल खत्म हो गई. दावत है तो टमाटर की भी जरुरत पड़ेगी. कुछ इस तरह की बात सामने आए तो समझ जाइए कि यह क्राइम की नई एबीसीडी है. जिसे क्रिमिनल्स ने तैयार की हैं. क्राइम की इस कोड लैंग्वेज का खुलासा तब हुआ जब टुंडा के पकड़े जाने के बाद आई नेक्स्ट ने गोरखपुर से टुंडा कनेक्शन का इन्वेस्टिगेशन किया. इन्वेस्टिगेशन के दौरान यह बात सामने आई कि टुंडा जैसे क्रिमिनल्स ने पुराने कोड लैग्वेंज को छोड़कर नई क्राइम की एबीसीडी तैयार कर ली है. यही कारण है कि अब क्रिमिनल्स को पकड़ने में पहले इस एबीसीडी को भेदना पुलिस और एसटीएफ के लिए बड़ी चुनौती है. एसीटीएफ के हत्थे चढ़े कुछ कुख्यात क्रिमिनल्स ने इस एबीसीडी के बारे में बताया है. जिसे आई नेक्स्ट आपके सामने लाने जा रहा है.?

90 के दशक से चल रहे कोड
एसटीएफ के अफसरों के अनुसार अपराधियों ने 80 के दशक में कोड वर्ड्स का सहारा लेना शुरू किया था। उनकी सारी बात कुछ खास शब्दों के जरिए होती थी। हालांकि पुलिस ने जल्द ही इसको भेद दिया और बाद में ये इतने कॉमन हो गए कि पब्लिक को भी यह भाषा समझ आने लगी। पहले तमंचे को घोड़ा, एक लाख रुपए को पेटी, एक करोड़ रुपए को खोखा कहा जाता था। जिसका मर्डर करना होता था उसे क्रिमिनल्स टारगेट कहते थे।
गोरखपुर का डी कनेक्शन
गोरखपुर इंटरनेशनल बार्डर से जुड़े होने के साथ बिहार से भी जुड़ा है। यही वजह है कि देश या विदेश में कोई क्रिमिनल्स पकड़ा जाता है तो इसकी गूंज गोरखपुर तक सुनाई देती है। लखनऊ में सीएमओ मर्डर केस हो या फिर आंतकियों की गिरफ्तारी का मामला हो क्रिमिनल्स और क्रिमिनल्स एक्टिविटी के लिए गोरखपुर हमेशा चर्चा में रहा है। हाल ही में एसटीएफ और पुलिस कर्मियों ने कई नामी क्रिमिनल्स को अरेस्ट किया। जो आर्म्स तस्करी से लेकर प्रदेश की कई बड़े आपराधिक मामलों में शामिल थे। कुछ अपराधियों के डी कनेक्शन होने की भी चर्चा थी। उनसे पूछताछ के बाद पुलिस को क्राइम की नई एबीसीडी की जानकारी हुई। पुलिस ने कुछ कोड वर्ड तोड़ लिए है। कुछ?को तोड़ने की जुगत में है।  
कोड  तोड़ने में लगता है टाइम
नेपाल से जुड़ा होने के चलते गोरखपुर मादक पदार्थोर्ं, अवैध आर्म्स और नकली नोटों का हब बन गया है। एसटीएफ से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि क्रिमिनल्स बहुत ही चालाक होते हंै हर बार कोड बदल देते हैं। कोड को तोड़ने के लिए कई बार उन्हें सुना जाता है और फिर लोकल लेवल में इसकी पड़ताल की जाती है। पकड़े गए क्रिमिनल्स ने पूछताछ में बहुत से कोड बताए लेकिन अरेस्टिंग और खुलासे के बाद क्रिमिनल्स पहले से ज्यादा एक्टिव हो जाते हैैं।
सर्विलांस की निकाली काट
90 के दशक में शुरु हुई क्राइम की एबीसीडी को पुलिस ने जल्द ही तोड़ लिया। यहीं नहीं पुलिस के सर्विलांस के आगे भी क्रिमिनल्स टूट गए। कई साल तक सर्विलांस के जरिए पकड़ने जाने वाले क्रिमिनल्स ने क्राइम की एबीसीडी बदल दी, ताकि पुलिस से बच सके। शुरुआती दौर में केवल बड़े गैैंग ही ऐसा करते थे लेकिन छोटे-छोटे गैैंग के जुड़ने पर इस लैंग्वेज का चलन आ गया। छोटे बदमाश भी इस भाषा का यूज करने लगे।
ये है कोड वर्ड्स
टमाटर- बम
पेन - तमंचा
रिफिल - कारतूस
माचिस - तमंचा
कंप्यूटर - पिस्टल
भैंया को देख लेना - मर्डर
कपड़ा कतरना- मौत के घाट उतारना
टेड़का - एके 47
कैसेट - मैगजीन
फाइल - हाईटेक वेंपस
छिलका - लूट से पहले रैकी
स्मैक  - सफेदा
विदेशी से स्मैक तस्करी - प्लास्टिक कोटेड
नकली नोट - पान का पत्ता

 

report by : mayank.srivastava@inext.co.in

Posted By: Inextlive